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जानिए: क्या है 24 साल पूरानी उस काली रात की सच्चाई, जिसकी भेट चढ़ गए थे सात उत्तराखंडी

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नई दिल्ली। 24 साल पहले की वो काली रात आज तक कोई नहीं भुला पाया। चारों तरफ आंदोलनकारियों की लाशें और बस चीख पुकार। फायरिंग में सात उत्तराखंडियों की मौत होने के साथ ही 17 जख्मी हो गए थे। 400 आंदोलनकारियों को पकड़कर सिविल लाइंस थाने ले जाया गया था। सुबह हुई तो महिलाओं की अस्मत लूटे जाने की बात सामने आई। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो पृथक राज्य की मांग को लेकर आंदोलनकारी 36 बसों में सवार होकर दिल्ली में दो अक्तूबर को प्रस्तावित रैली में भाग लेने जा रहे थे। गुरुकुल नारसन में आंदोलनकारियों के बैरियर तोड़कर आगे बढ़ जाने के बाद यूपी पुलिस ने रामपुर तिराहे पर उन्हें रोकने की योजना बनाई थी।

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पूरे इलाके को सील कर आंदोलनकारियों की बसों को रोक लिया था। आंदोलनकारियों ने सड़कों पर बैठकर नारेबाजी शुरू कर दी थी। आंदोलनकारी दिल्ली जाने की जिद पर अड़े थे। रात में बारह बजे के करीब पुलिस ने आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया। इसी बीच फायरिंग भी शुरू हो गई। करीब दो बजे तक पुलिस का दमन चक्र चलता रहा। आंदोलन के दौरान केंद्रीय तथ्य अन्वेषण कमेटी के अध्यक्ष सुरेंद्र कुमार ने बताया कि दो अक्तूबर की रैली में शामिल होने के लिए हम दिल्ली के रास्ते में थे। तब ही पता चला कि मुजफ्फरनगर में बर्बर कांड हो गया है। हर उत्तराखंडी की तरह ये खबर मेरे लिए भी विचलित करने वाली थी। उसके बाद का आक्रोश हम सबने देखा।

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राज्य आंदोलन से जुडे़ प्रमुख आंदोलनकारी प्रदीप कुकरेती का कहना है कि रामपुर तिराहा में बर्बर हत्याकांड और मातृ शक्ति के अपमान ने जैसे उत्तराखंड में आग लगा दी थी। मुझे अच्छे से याद है कि इसकी प्रतिक्रिया। सभी लोग पुलिस कंट्रोल रूम के बाहर जमा हो गए थे। एक हुजूम उमड़ पड़ा था। सभी को अपनों की चिंता थी। सब जानना चाहते थे कि उनका बेटा, बेटी, मां-पिता, भाई-बहन सुरक्षित है या नहीं। पुलिस प्रशासन के पास कोई जवाब नहीं था। हर तरफ बेचैनी थी। हर कोई विचलित था।

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जब शहीद पोलू का पार्थिव शरीर देहरादून पहुंचा, तो फिर हालात बेकाबू थे। उसके बाद नियंत्रण से बाहर हुई स्थिति सबने देखी है। यह उन आंदोलनकारियों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी, जो अपना हक मांगने और शांतिपूर्ण प्रदर्शन के लिए दिल्ली जाना चाहते थे। जिन्हें गांधी जयंती के दिन मौत और अपमान नसीब हुआ। आज इस बात पर दुख होता है कि शहीदों की शहादत और आंदोलनकारियों के संघर्ष को हर सरकार ने भुला दिया है।

रानी जानिए: क्या है 24 साल पूरानी उस काली रात की सच्चाई, जिसकी भेट चढ़ गए थे सात उत्तराखंडी रानी नक़वी

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