नई दिल्ली। क्या आपको पता है, भाई और बहन के प्रेम के प्रतीक रक्षाबंधन को क्यों मनाया जाता है? या फिर इसको मनाने के पीछे ऐसी कौन सी पौराणिक कहानी है जिसके चलते ये पर्व पूरे देश में हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। तो चलिए आज हम आपको रक्षाबंधन से सबंधित एक पौराणिक कहानी से अवगत कराते है।
ये बात हैं उस समय की जब दानबेन्द्र राजा बलि अश्वमेध यज्ञ करा रहें थे तब नारायण ने राजा बलि को छलने के लिये वामन अवतार लिया और तीन पग में सब कुछ ले लिया तब उसे भगवान ने पाताल लोक का राज्य रहने के लिये दें दिया तब बलि ने प्रभु से कहा की कोई बात नहीँ मैं रहने के लिये तैयार हूँ पर मेरी भी एक शर्त होगी की मैं जब सोने जाऊँ तो जब उठूं तो जिधर भी नजर जाये उधर आपको ही देखूं तब नारायण ने अपना माथा ठोका और बोले इसने तो मुझे पहरेदार बना दिया हैं ये सब कुछ हार के भी जीत गया है पर कर भी क्या सकते थे वचन जो दें चुके थे।
ऐसे होते होते काफी समय बीत गया उधर बैकुंठ में लक्ष्मी जी को चिंता होने लगी जब नारद जी का आना हुआ तब लक्ष्मी जी ने कहा नारद जी आप तो तीनों लोकों में घूमते हैं क्या नारायण को कही देखा आपने? तब नारद जी बोले कि पाताल लोक में हैं राजा बलि के पहरेदार बने हुये हैं।
तब लक्ष्मी जी ने कहा मुझे आप ही राह दिखाये कि कैसे मिलेंगे? तब नारद ने कहा आप राजा बलि को भाई बना लो और रक्षा का वचन लो और पहले वचन ले लेना की दक्षिणा में जो मांगुगी वो देंगे और दक्षिणा में अपने नारायण को माँग लेना।
समय आया तो लक्ष्मी जी सुन्दर स्त्री के भेष में रोते हुये पहुँची बलि ने कहा, क्यों रो रहीं हैं आप? तब लक्ष्मी जी बोली की मेरा कोई भाई नहीं हैं इसलिए मैं दुखी हूँ। तब बलि बोले की तुम मेरी धरम की बहन बन जाओ। तब लक्ष्मी ने कहा कि में जो मांगूगी वो आप मुझे दोगे? बलि भी दानी थे उन्होंने वचन दिया की जो मांगोगी वो मिलेगा। तब लक्ष्मी बोली मुझे आपका ये पहरेदार चाहिये।
जब ये वचन माँगा तो बलि अपना माथा पीटने लगे और कहा धन्य हो माता पति आये सब कुछ लें गये और ये महारानी ऐसी आयी कि उन्हे भी लें गयीं, तब से ये रक्षाबन्धन का पर्व शुरू हुआ था। इसलिये जब कलावा बाँधते समय मंत्र बोला जाता है, येन बद्धो राजा बलि दानबेन्द्रो महाबला तेन त्वाम प्रपद्यये रक्षे माचल माचल:रक्षा बन्धन अर्थात बन्धन जो हमें सुरक्षा प्रदान करे सुरक्षा किस से हमारे आंतरिक और बाहरी शत्रुओं से रोग ऋण से।