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सियासत से क्यों दूर रहना चाहते थे राजीव गांधी ? कहानी ‘राजीव’ युग की

कहानी 1984 के ‘राजीव’ युग की सियासत से क्यों दूर रहना चाहते थे राजीव गांधी ? कहानी ‘राजीव’ युग की

नई दिल्ली: राजीव गांधी मात्र 40 साल की उम्र में भारत के प्रधानमंत्री बने, 80 प्रतिशत सीटें जीत कर लोकसभा चुनाव की सबसे बड़ी जीत हांसिल की। राजीव ने देश में कंप्यूटर शिक्षा की शुरुआत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजीव गांधी भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री थे। राजीव गांधी का 20 अगस्त, 1944 को जन्म हुआ था। राजीव गांधी इंदिरा गांधी और फ़िरोज़ गांधी के सबसे बड़े पुत्र थे। उनकी माता इंदिरा गांधी और दादा जवाहरलाल नेहरू भारत के पूर्व प्रधानमंत्री थे। प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी ने भारतीय प्रशासन के आधुनिकीकरण में बहुमूल्य योगदान दिया। 21वीं सदी में सूचना प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका को समझते हुए उन्होंने इस क्षेत्र में भारत की क्षमता विकसित करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य किया।

कहानी ‘राजीव’ युग की
कहानी ‘राजीव’ युग की

प्रारंभिक जीवन

राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944 को भारत के सबसे प्रसिद्ध राजनैतिक परिवार में हुआ था। उनके दादा जवाहरलाल नेहरू ने भारतकी आज़ादी की लड़ाई में मुख्य भूमिका अदा की और स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने। उनके माता पिता अलग-अलग रहते थे अतः राजीव गांधी का पालन पोषण उनके दादा के घर पर हुआ जहाँ उनकी माँ रहती थीं। राजीव गांधी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मशहूर दून स्कूल से पूरी की और बाद में लंदन विश्वविद्यालय ट्रिनिटी कॉलेज और कैंब्रिज में पढाई की। कैंब्रिज में राजीव गांधी इटालियन विद्यार्थी सोनिया माइनो से मिले और दोनों को एक-दूसरे से प्रेम हो गया। वर्ष 1969 में दोनों का विवाह संपन्न हुआ।

राजनीति में प्रवेश किया

भारत लौटने के बाद राजीव गांधी एक कमर्शियल गए। इधर, उनके छोटे भाई संजय गांधी राजनीति में प्रवेश कर चुके थे और अपनी माँ इंदिरा गांधी के भरोसेमंद प्रतिनिधि बन गए। सन 1980 में एक विमान दुर्घटना में संजय की मृत्यु के बाद राजीव ने अनिच्छा से अपनी मां के कहने पर राजनीति में प्रवेश किया। उन्होंने अपने भाई के पूर्व संसदीय क्षेत्र अमेठी से अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता। जल्द ही वह कांग्रेस पार्टी के महासचिव बन गए। अक्टूबर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 40 साल की उम्र में वह भारत के प्रधानमंत्री बने।

देश की सबसे बड़ी जीत

1984 में उन्होंने आम चुनावों का आवाहन किया और सहानुभूति की लहर पर सवार होकर कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ी जीत दर्ज की। कांग्रेस पार्टी ने निचले सदन की 80 प्रतिशत सीटें जीत कर आजादी के बाद की सबसे बड़ी जीत हांसिल की। प्रधानमंत्री के रूप में अपने शुरुआती दिनों में राजीव गांधी बेहद लोकप्रिय थे। भारत के प्रधानमंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान वह प्रधानमंत्री के पद में थोड़ी गतिशीलता ले कर आये। उन्हें भारत में कंप्यूटर की शुरुआत करने का श्रेय जाता है। उन्होंने ने इंदिरा गांधी के समाजवादी राजनीति से हटकर अलग दिशा में देश का नेतृत्व करना शुरू किया। उन्होंने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधो में सुधार किया और आर्थिक एवं वैज्ञानिक सहयोग का विस्तार किया। उन्होंने विज्ञान, टेक्नोलोजी और इससे सम्बंधित उद्योगों की ओर ध्यान दिया और टेक्नोलोजी पर आधारित उद्योगों विशेष रूप से कंप्यूटर, एयरलाइंस, रक्षा और दूरसंचार पर आयात कोटा, करों और शुल्कों को कम किया।

उन्होंने दफ्तरशाही शासन को कम करने और प्रशासन को नौकरशाही घपलेबाजों से बचाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण काम किया। 1986 में राजीव गांधी ने भारत भर में उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के आधुनिकीकरण और विस्तार के लिए एक राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की। राजीव गांधी ने पंजाब में आतंकवादियों के खिलाफ व्यापक पुलिस और सेना अभियान चलाया। श्रीलंका सरकार और एल टी टी इ विद्रोहियोंके बीच शांति वार्ता के प्रयासों का उल्टा असर हुआ और राजीव की सरकार को एक बढ़ी असफलता का सामना करना पड़ा। 1987 में हस्ताक्षर किये गए शांति समझौते के अनुसार भारतीय शांति सेना को श्रीलंका में एल टी टी इ को नियंत्रण में लाना था पर अविश्वास और संघर्ष की कुछ घटनाओ ने एल टी टी इ आतंकवादियों और भारतीय सैनिकों के बीच एक खुली जंग के रूप में बदल दिया। हजारों भारतीय सैनिक मारे गए और अंततः राजीव गांधी ने भारतीय सेना को श्रीलंका से वापस बुला लिया। यह राजीव की एक बड़ी कूटनीतिक विफलता थी।

राजीव की हुई मौत

हालाँकि राजीव गांधी ने भ्रष्टाचार समाप्त करने का वादा किया था पर उनपर और उनकी पार्टी पर खुद भ्रस्टाचार के कई आरोप लगे। सबसे बड़ा घोटाला स्विडिश बोफोर्स हथियार कंपनी द्वारा कथित भुगतान से जुड़ा ‘बोफोर्स तोप घोटाला’ था। घोटालों के कारण उनकी लोकप्रियता तेजी से कम हुई और 1989 में आयोजित आम चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। एक गठबंधन की सरकार सत्ता में आई पर वह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और 1991 में आम चुनाव करवाये गए। 21 मई 1991 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनाव प्रचार के दौरान एल टी टी इ के आत्मघाती हमलावरों ने राजीव गांधी की हत्या कर दी।

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