राजस्थान में टिड्डी टेरर ने पहले ही सरकार की नींद उड़ा रखी है और अब बदले मौसम ने इस चिन्ता को और बढ़ा दिया है।
जयपुर। राजस्थान में टिड्डी टेरर ने पहले ही सरकार की नींद उड़ा रखी है और अब बदले मौसम ने इस चिन्ता को और बढ़ा दिया है। अम्फान ओर निसर्ग जैसे तूफानों के असर से हुई बारिश से टिड्डियों का प्रकोप बढ़ सकता है। अभी रेगिस्तान में बड़े पैमाने पर टिड्डियों के अंडे दबे पड़े हैं। बारिश के चलते हुई नमी से इनसे हॉपर्स निकल सकते हैं।
एक टिड्डी एक साथ 80 से 125 तक अंडे देती है
बता दें कि राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान में कीट विज्ञान विभाग के प्रभारी डॉ. अर्जुन सिंह बालोदा के मुताबिक टिड्डियों को अंडे देने के लिए बालुई रेत सबसे अनुकूल होती है। एक टिड्डी एक साथ 80 से 125 तक अंडे देती है और जमीन के अंदर अंडे छोड़कर उन्हें रेत से ढक देती है। ये अंडे कई महीनों तक एक आवरण में रेत के अंदर सुरक्षित रहते हैं। अंडों से हॉपर्स निकलने के लिए नमी की आवश्यकता होती है। बारिश के बाद नमी होने से अंडों से हॉपर्स निकलना शुरू हो जाते हैं। अब बारिश होने से अंडों से हॉपर्स निकलने की आशंका बढ़ गई है।
जमीन में दबा है बड़ा खतरा
वहीं पिछले साल राजस्थान के 12 रेगिस्तानी जिलों में टिड्डियों का बड़े स्तर पर प्रकोप हुआ था। आशंका है कि रेगिस्तान में बड़े स्तर पर इनके अंडे जमीन में दबे पड़े हैं। अब नमी मिलते ही इन अंडों से हॉपर्स का बाहर आना शुरू हो जाएगा और कुछ ही दिनों में ये तबाही मचाना शुरू कर देंगे। भारत में बाहर से भी बड़ी संख्या में टिड्डियां आने की आशंकाएं हैं। अभी अफ्रीकन देशों में अनुकूल माहौल के चलते बड़े स्तर पर टिड्डियों का प्रजनन हो रहा है। कुछ ही दिनों बाद ये टिड्डियां भारत का रुख कर सकती है। ये खतरा उस आतंक से कई गुना बड़ा है जो अभी आसमान में मंडरा रहा है।
अंडे नष्ट करना है मुश्किल
विशेषज्ञों के मुताबिक टिड्डियों पर नियंत्रण का प्रभावी तरीका अंडों को नष्ट करना ही है क्योंकि कीटनाशकों से परिपक्व हो चुकी टिड्डियों को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता. कीट विज्ञानी डॉ. अर्जुन सिंह बालोदा के मुताबिक जमीन की जुताई कर और हेलीकॉप्टरों से कीटनाशकों का छिड़काव कर अंडों को नष्ट किया जा सकता है. लेकिन रेगिस्तान का इलाका इतना बड़ा है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ आये बिना यह काम मुमकिन नजर नहीं आता. इसके साथ ही यह इलाका कई देशों में फैला है लिहाजा भारत अपने स्तर पर इसमें कार्यवाही नहीं कर सकता. लेकिन खतरा अगर इसी तरह बरकरार रहा तो संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन को इस पर सोचना पड़ेगा.