नई दिल्ली। 27 साल से प्रदेश की राजनीति से दूर कांग्रेस इस बार नये अंदाज में उतरने को आतुर है। इसके लिए कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने एक नया अंदाज और नया नारा दिया 27 साल यूपी बेहाल। कांग्रेस की अलख जगाने के लिए सूबे के नेतृत्व में फेरबदल किये गये । गुलाम नबी आजाद और राजब्बर के हाथों में सूबे में पार्टी की कमान दी गई। शीला के तौर पर पार्टी ने नया चेहरा भी सूबे में उतार दिया ।
आखिरकार राहुल ने खुद पार्टी की कमान खुद संभाल ली। राहुल बाबा निकल पड़े 27 साल से सत्ता से दूर कांग्रेस की सत्ता वापसी की राह पर। प्रशांत किशोर की रणनीति के अनुसार राहुल बाबा खाट पंचायत के तौर पर यूपी के देवरिया से अपनी रैलियों का आगाज करते नजर आये। आखिरकार 27 साल के बाद सियासी जमीन तलाशने उतरे राहुल गांधी की खाट पंचायत की शुरूआत खाट पर चर्चा के बजाय खाट पर लूट पाट होते हुए दिखी।
जिसके बाद विरोधियों ने राहुल की खाट सूबे में जनता ने खड़ी कर दी जैसे बातें कहना शुरू कर दिया। लेकिन धीरे-धीरे राहुल बाबा की खाट पंचायत और 27 साल यूपी बेहाल यात्रा के जरिए कांग्रेस सूबे में अपनी सियासी जमीन तलाशने और विरोधियों पर निशाना लगाने निकल पड़ी। गाहे-बगाहे कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन की बात भी चर्चा में आती रही तो वहीं कांग्रेस और बसपा के मूक समर्थन की भी बातें समय-समय पर होती रही । राहुल गांधी की सभाओं में इन दलों को छोड़कर लगातार केवल केन्द्र सरकार और भाजपा को ही निशाना बनाया गया है।
यूपी के रण में कांग्रेस का प्रदर्शन साल 1989 के बाद से लगातार गिरता ही गया। फिर पार्टी का सियासी कुनबा भी प्रदेश में घटता ही गया कभी प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस का डंका बजता था तो अब पार्टी हासिए पर आ गई थी। प्रदेश में महज 21 सीटें ही पार्टी के खाते में दिखने लगी थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद राहुल को भी इस बात का एहसास था कि अगर दिल्ली की सत्ता पर काबिज होना है तो यूपी के रण में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करानी होगी।
लेकिन 27 साल बाद प्रदेश में अपने बिखरे हुए संगठन और वोटरों को एक सूत्र में पिरोने के लिए लगे राहुल बाबा प्रशांत किशोर की रणनीति पर कितने खरे उतरते हैं। ये बड़ी बात है लेकिन उससे पहले सबसे बड़ी बात है कि प्रशांत का जादू उत्तर प्रदेश में कितना चलेगा।
अजस्रपीयूष