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गरीबी में पले मशहूर शायर राहत इंदौरी के कैसे थे अंतिम पल?, जानिए मशहूर शायर की जीवनगाथा..

rahat 2 गरीबी में पले मशहूर शायर राहत इंदौरी के कैसे थे अंतिम पल?, जानिए मशहूर शायर की जीवनगाथा..

देश ही नहीं दुनिया में अपनी शायरियों के दम पर एक अलग पहचान बनाने वाले मशहूर शायर राहत इंदौरी ने आज इंदौर के अस्पताल में अंतिम सांस ली। आज सुबह ही उन्होंने अपने कोरोना पॉजीटिव होने की बात कही थी।

rahat 1 गरीबी में पले मशहूर शायर राहत इंदौरी के कैसे थे अंतिम पल?, जानिए मशहूर शायर की जीवनगाथा..
अरबिंदो अस्पताल के डॉक्टर विनोद भंडारी ने कहा है कि अस्पताल में भर्ती होने के बाद उन्हें 2 बार दिल का दौरा पड़ा था। उसके बाद उनकी स्थिति बिगड़ती गई है। हम लोग उन्हें बचा नहीं सके। उन्हें 60 फीसदी निमोनिया था। डॉक्टरों ने कहा कि उन्हें पहले से निमोनिया था। डॉक्टर्स ने कहा कि उनका 70 प्रतिशत लंग खराब , कोविड पॉजीटिव, हाईपर टेशंन और डायबिटिक की दिक्कत थी।1 जनवरी 1950 को राहत साहब का जन्म हुआ था. वह दिन इतबार का था और इस्लामी कैलेंडर के अनुसार ये 1369 हिजरी थी और तारीक 12 रबी उल अव्वल थी. इसी दिन रिफअत उल्लाह साहब के घर राहत साहब की पैदाइश हुई जो बाद में हिन्दुस्तान की पूरी जनता के मुश्तरका ग़म को बयान करने वाले शायर हुए।

जब राहत साहब के वालिद रिफअत उल्लाह 1942 में सोनकछ देवास जिले से इंदौर आए तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन उनका राहत इस शहर की सबसे बेहतरीन पहचान बन जाएंगे. राहत साहब का बचपन का नाम कामिल था. बाद में इनका नाम बदलकर राहत उल्लाह कर दिया गया. राहत साहब का बचपन मुफलिसी में गुजरा. वालिद ने इंदौर आने के बाद ऑटो चलाया, मिल में काम किया, लेकिन उन दिनों आर्थिक मंदी का दौर चल रहा था. 1939 से 1945 तक चलने वाले दूसरे विश्वयुद्ध ने पूरे यूरोप की हालात खराब कर रखी थी. उन दिनों भारत के कई मिलों के उत्पादों का निर्यात युरोप से होता था. दूर देशों में हो रहे युद्ध के कारण भारत पर भी असर पड़ा. मिल बंद हो गए या वहां छटनी करनी पड़ी. राहत साहब के वालिद की नौकरी भी चली गई. हालात इतने खराब हो गए कि राहत साहब के परिवार को बेघर होना पड़ा।

राहत साहब को पढ़ने लिखने का शौक़ बचपन से ही रहा. पहला मुशायरा देवास में पढ़ा था।राहत इंदौरी की सबसे खास बात यह है कि वह अवाम के ख़यालात को बयां करते हैं। उसपर ज़बान और लहज़ा ऐसा कि क्या इंदौर और क्या लखनऊ, क्या दिल्ली और क्या लाहौर, हर जगह के लोगों की बात उनकी शायरी में होती है। इसका एक उदाहरण तो बहुत पहले ही मिल गया था। साल 1986 में राहत साहब कराची में एक शेर पड़ते हैं और लगातार पांच मिनट तक तालियों की गूंज हॉल में सुनाई देती है और फिर बाद में दिल्ली में भी वही शेर पढ़ते हैं और ठीक वैसा ही दृश्य यहां भी होता है।

मानों आज की पीढ़ी का शायद ही कोई शायरी को चाहने वाला हो जिसे याद न हो….नई पीढ़ी को राहत साहब के असआर जितने पसंद हैं उतनी ही उनके द्वारा फिल्मों के लिए लिखे गए गाने भी लोग पसंद करते हैं।

https://www.bharatkhabar.com/sachin-pilot-returns-to-congress-know-how-it-became/
राहत इंदौरी के अचानक से चले जाने से उनके दोस्त हो या दुश्मन सभी सदमें में है। राहत इंदौरी को हमेशा उनकी शायरियों और गीतों के लिए याद किया जाएगा।

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