प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 और 26 अप्रैल को अपने चुनाव क्षेत्र वाराणसी जा रहे हैं। वे रोड शो करेंगे और नामांकन दाखिल करेंगे। पिछली बार भी बड़े धूमधड़ाके से मोदी ने नामांकन किया था। तब विपक्ष में एकजुटता नहीं थी और कांग्रेस, सपा, बसपा और आप चारों ने अलग अलग उम्मीदवार उतारे थे। इस बार अभी तक किसी विपक्षी पार्टी ने अपने उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं किया है। तभी सस्पेंस है कि विपक्ष की ओर से मोदी को क्या साझा उम्मीदवार चुनौती देगा और अगर ऐसा है तो वह साझा उम्मीदवार कौन होगा?
कांग्रेस महासचिव पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने खुद वाराणसी से चुनाव लड़ने का संकेत दिया था। पर जब उनके भाई और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने केरल की वायनाड सीट से लड़ने का फैसला किया तो कांग्रेस के जानकार सूत्रों ने ही बताया कि राहुल अमेठी की सीट खाली करेंगे तो वहां से प्रियंका लड़ेंगी। इसके बाद प्रियंका के चुनाव लड़ने की अटकलें बंद हो गईं। अब एक बार फिर से उनकी चर्चा शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि वे जीतने के लिए नहीं, बल्कि मोदी को घेरने और कड़ी चुनौती देने के लिए वाराणसी लड़ेंगी। अगर वे चुनाव लडऩे का ऐलान करती हैं तो पूरा विपक्ष उनका साथ देगा।
वैसे वाराणसी की सीट महागठबंधन में समाजवादी पार्टी के खाते में गई है। और चर्चा है कि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी इस सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। वे पहले आजमगढ़ सीट से लड़ रहे हैं। खबर है कि विपक्षी खेमे में अखिलेश के नाम पर भी विचार हो रहा है। पर इतना तय माना जा रहा है कि विपक्ष साझा उम्मीदवार पर विचार कर रहा है और अगर साझा उम्मीदवार के तौर पर प्रियंका या अखिलेश ने लड़ने का फैसला किया तो मुकाबला आसान नहीं होगा।
इस बात को समझने के लिए पिछले चुनाव का आंकड़ा भी देखा जा सकता है, जब अपने नाम की सुनामी में नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ने उतरे थे। उस समय मोदी को पांच लाख 80 हजार वोट मिले थे। तब विपक्ष का साझा उम्मीदवार नहीं था पर आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को मतदाताओं ने मोदी विरोधी उम्मीदवार के तौर पर देखा था। वे बिना किसी तैयारी के उतरे थे फिर भी उनको दो लाख नौ हजार वोट मिला। प्रियंका गांधी ने अपने करीबी अजय राय को कांग्रेस की टिकट पर उतारा था, जिनको करीब 76 हजार वोट मिला था। बसपा के विजय जायसवाल को 60 हजार और सपा के कैलाश चौरसिया को 45 हजार वोट मिले थे।
यानी जब विपक्ष अलग अलग लड़ा था और मोदी की सुनामी थी तब उसको कुल तीन लाख 90 हजार वोट मिला था और मोदी एक लाख 90 हजार वोट से जीते थे। इसलिए अगर विपक्ष का साझा उम्मीदवार होता है और कांग्रेस, सपा और बसपा की साझा मशीनरी मेहनत करती है तो मुकाबला बहुत कड़ा होगा।
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