राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर के शहीद दिवस की पूर्व संध्या पर अपने संदेश में कहा, “गुरु तेग बहादुर के शहीद दिवस के पवित्र अवसर पर, मैं उन्हें आदरपूर्वक श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं।गुरु तेग बहादुर ने पूजा-अर्चना की आजादी, एकात्मकता, प्रेम और भाईचारे के मूल्यों पर जोर दिया। आइए मानवता के गौरव को बचाए रखने के लिए और सभी के कल्याण की उनकी प्रतिज्ञा और मूल्यों का अनुसरण करें।
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सिखों के नौवे गुरू तेग बहादुर के बारे में विस्तार-
तेग बहादुर सिख धर्म के 9वें गुरू थे।तेग बहादुर सिखों के प्रथम गुरु, गुरू नानक के बताए हुए मार्ग का अनुसरण करते रहे हैं। उनके द्वारा रचित 115 पद्य गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित हैं। तेग बहादुर ने काश्मीरी पण्डितों और दूसरे हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाने का विरोध किया।
इस्लाम स्वीकार न करने के कारण 1675 में मुगल शासक औरंगजेब ने तेगबहादुर को इस्लाम कबूल करने को कहा कि पर गुरु साहब ने कहा सीस कटा सकते है केश नहीं। बाद मे मुगल शासक ने गुरुजी का सबके सामने उनका सिर कटवा दिया। गुरुद्वारा शीश गंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब वो स्थान हैं जहां गुरुजी की हत्या की गयी थी। और जाहं उनका अन्तिम संस्कार किया गया।
विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है।गुरुजी का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए नहीं बल्कि सभी मानवीय सांस्कृतिक विरासत की खातिर बलिदान था।
गुरू तेग बहादुर के लिए धर्म सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वास्तव में सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था। आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग बहादुर की शहादत एक अद्वतीय इतिहासिक घटना है।