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मोदी-शाह की जोड़ी को जीतने से रोकने के लिए बुआ-बबुआ लड़ेंगे साथ 2019 का समर

maya akhilash modi shah मोदी-शाह की जोड़ी को जीतने से रोकने के लिए बुआ-बबुआ लड़ेंगे साथ 2019 का समर

नई दिल्ली। ठीक 25 साल पहले जब देश में रामजन्मभूमि की लहर ने बीजेपी को एक मजबूत विपक्ष के साथ कई राज्यों में सत्ता दिलाई थी । लेकिन उत्तर प्रदेश में दलितों और पिछड़ी जातियों का गठजोड़ कर तत्कालीन नेताओं ने भाजपा को सत्ता से दूर कर दिया था। उस वक्त जब दलितों के नेता के तौर पर काशीराम और पिछड़ों के अगुवा मुलायम सिंह यादव की पार्टियों ने गठबंधन किया तो भाजपा को विपक्ष में ही बैठना पड़ा था। उस वक्त नारा लगा था मिले मुलायम-काशीराम हवा में उड़ गया जय श्री राम लेकिन इस गेस्ट हाउस कांड के बाद दोनों पार्टियां अलग हुई और अब 25 साल बाद एक साथ होकर 2019 का लोकसभा चुनावी रण साधेंगी।

maya akhilash modi shah मोदी-शाह की जोड़ी को जीतने से रोकने के लिए बुआ-बबुआ लड़ेंगे साथ 2019 का समर

क्या मोदी-शाह के डर से हुआ ये गठबंधन

देश में लगातार भाजपा और उसके सहयोगी पार्टियों का जादू लोगों के सर चढ़कर लगातार देश के चुनावों में भाजपा की जीत के बाद विपक्षी पार्टियां सकते में आ चुकी हैं। 2019 में लोकसभा चुनाव के पहले हर पार्टी अपने किले को चुनावी जंग के पहले मजबूत करने में जुटी है। इसी क्रम में एक दूसरे से ये पार्टियां गठजोड़ भी करने से नहीं कतरा रही हैं। कभी एक दूसरे के विरोध में जहां बसपा और सपा हमेशा से आग और जहर उगलती थी, आज एक साथ होकर भाजपा के खिलाफ खड़ी हो रही हैं। क्योंकि जहां भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता नहीं खुलने दिया वहीं सपा को भी केवल 5 सीटें ही जीतने दिया। कांग्रेस के पास महज 2 सीटें ही आई थी। बीते साल 2017 में हुए विधान सभा चुनाव में दहाई से आगे कोई पार्टी नहीं जा सकती और भाजपा ने बंपर रिकॉर्ड बना। ऐसे में देश में हो रहे चुनाव परिणाम भी भाजपा के पक्ष में आता देख विपक्ष को अपने अस्तित्व का भी डर सताने लगा है। एक बार फिर भाजपा को जातीय गणित के जरिए मात देने के लिए सपा और बसपा साथ हुए हैं।

बीजेपी को गठबंधन से कितना होगा नुकसान

उत्तर प्रदेश की राजनीति में जातीय गणित का प्रभाव बहुत ही ज्यादा होता है। यहां पर ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां जातीय वोटों के नाम पर अपनी राजनीति करती हैं। इस दम पर कई बार सत्ता का सुख भी इन पार्टियों ने प्राप्त किया है। बसपा और सपा उत्तर प्रदेश में जातीय गणित के नाम पर बड़े दल हैं। 25 साल पहले ये अलग हुए थे। तो दोनों के वोटों में बड़ा ट्रांस्फर हुआ था। इस पार्टियों को फिर सरकार बनाने के लिए दूसरे दलों का ही सहारा लेना पड़ा था। एक-एक बार खुद के दाम पर भी सरकार में आए लेकिन दुबारा आने की स्थिति नहीं बनी। अब जब विधान सभा और बीते लोकसभा में करारी हार इन दलों को झेलनी पड़ी है तो अब लम्बे वक्त के बाद फिर एक बार साथ हो गए हैं। भाजपा के लिए अब लोकसभा में जातीय गणित के हिसाब से सबसे मुश्किल स्थिति खड़ी होने वाली हैं। क्योंकि जहां माया के पास दलित और मुस्लिम वोटरों का बड़ां वोट बैंक हैं। वहीं अखिलेश के पास फेस और पिछड़ों के साथ मुस्लमानों का साथ भाजपा के लिए दोनों का एक होना निश्चित तौर पर एक बड़ा ही संकट खड़ा करने वाला है।

क्या सपा और बसपा का गठबंधन चुनाव तक रहेगा टिका

मायावती और अखिलेश का गठबंधन कितना प्रभावी है ये फूलपुर और गोरखपुर में हुए उपचुनाव में दिखाई पड़ा है। लेकिन मायावती को समाजवादी पार्टी के लोग कितना स्वीकारते हैं ये हाल में हुए राज्यसभा के चुनाव में साफ दिखाई पड़ गया है। जहां मायावती की पार्टी के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा है। अखिलेश ने खेद भी व्यक्त किया है, वहीं भाजपा लगातार मायावती और अखिलेश के बीच हुए गठबंधन को निशाने पर रखकर ये कहने में लगी है कि ये मौके का गठबंधन है और ये गठबंधन नहीं ठगबंधन है। यूपी ने भाजपा के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो सांप-छछूंदर का गठबंधन तक करार दे दिया है। क्योंकि मायावती का सपा से नाता जब टूटा तो कई बार भाजपा से जुड़ा लेकिन हर बार किसी ना किसी बात पर नाता टूटता रहा है। सीटों के बंटवारे को लेकर मायावती का तेवर और मिजाज सबको पता है। इसलिए इस गठबंधन का टिकाऊपन कितना रहता है ये अतीत के गर्भ में छिपा है।

भाजपा की ओर से इस पर क्या है प्रतिक्रिया

इस गठबंधन को लेकर भाजपा पहले से ही हमलावर की भूमिका में आ चुकी है। पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान में डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने मायावती को नसीहत देते हुए गेस्टहाउस कांड की याद भी दिलाई और बताया कि उस वक्त भाजपा ही साथ खड़ी हुई थी। वहीं भाजपा मायावती और अखिलेश के इस ताजा गठबंधन को बुआ-बबुआ के गठबंधन के तौर पर ठगबंधन भी बता रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जहां इसे सांप-छछूंदर का गठबंधन करार दिया है, वहीं लोग इस गठबंधन को लेकर लगातार निशाने पर सपा-बसपा को लिए हुए हैं। अन्दरखाने की खबरें है कि खुद बसपा और सपा में काडर बेस कई लोग इस गठबंधन से नाराज भी है। सपा में इसको लेकर खासा नाराजगी देखने को मिल रही है। बताया जा रहा है कि सपा में शामिल निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया बसपा सुप्रीमों मायावती के साथ पुरानी दुश्मनी के चलते अब सपा के साथ गठबंधन होने से नाराज हैं। सपा में राजा भैया का कद और समर्थकों का असर काफी बड़ा और मजबूत है। ऐसे में सपा के लिए आने वाले दिनों में उसके ही कार्यकर्ता बड़ी मुश्किलें पैदा कर सकते हैं।

मायावती ने भाजपा को दिया करारा जबाब

लगातार भाजपा की ओर से मायावती और अखिलेश पर वार के बाद मायावती ने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आड़े हाथों लेते हुए पलटवार किया है। पीएम मोदी की नीतियों को गरीब और दलित विरोधी बताते हुए माया ने कहा कि आने वाले वक्त में भाजपा सपा-बसपा के गठबंधन से डरी हुई है। क्योंकि गोरखपुर और फूलपुर जैसी सुरक्षित सीटों को वह उपचुनाव में नहीं बचा पाई है। जबकि माना जाता है कि उपचुनाव सत्तापक्ष का होता है। लेकिन इसमें मिली करारी हार के बाद भाजपा डर के कारण अपना मानसिक संतुलन खो गई है। इसके साथ ही माया ने 2019 में समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लडने और मोदी के विजय रथ को रोकना ही अपना उद्देश्य बताया है।

Piyush Shukla मोदी-शाह की जोड़ी को जीतने से रोकने के लिए बुआ-बबुआ लड़ेंगे साथ 2019 का समरअजस्रपीयूष

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