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असहिष्णु शक्तियों से सख्ती से निपटने की जरूरत: राष्ट्रपति

Pranab असहिष्णु शक्तियों से सख्ती से निपटने की जरूरत: राष्ट्रपति

नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब ने रविवार को 70वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा कि पिछले चार वर्षों में कुछ अशांत, विघटनकारी और असहिष्णु शक्तियों ने सिर उठाया है और इसने राष्ट्रीय चरित्र के विरुद्ध कमजोर वर्गों पर हमले किए। उन्होंने कहा कि ऐसी शक्तियों से सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें भरोसा है कि ऐसे तत्वों को निष्क्रिय कर दिया जाएगा और भारत की शानदार विकास गाथा बिना रुकावट आगे बढ़ती रहेगी। महिलाओं और बच्चों को दी गई सुरक्षा और हिफाजत देश और समाज की खुशहाली सुनिश्चित करती है। एक महिला या बच्चे के प्रति हिंसा की प्रत्येक घटना सभ्यता की आत्मा पर घाव कर देती है। यदि हम इस कर्तव्य में विफल रहते हैं तो हम एक सभ्य समाज नहीं कहला सकते।

Pranab Mukharji

उन्होंने कहा, “आजादी के बाद हमारे संस्थापकों द्वारा न्याय, स्वतंत्रता, समता और भाईचारे के चार स्तंभों पर निर्मित लोकतंत्र के सशक्त ढांचे ने आंतरिक और बाहरी अनेक जोखिम सहन किए हैं और यह मजबूती से आगे बढ़ा है। संसद के अभी सम्पन्न हुए सत्र में निष्पक्षता और श्रेष्ठ परिचर्चाओं के बीच वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक का पारित होना हमारी लोकतांत्रिक परिपक्वता पर गर्व करने के लिए पर्याप्त है।”

राष्ट्रपति ने कहा, “हमारा संविधान न केवल एक राजनीतिक और विधिक दस्तावेज है बल्कि एक भावनात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक करार भी है। मेरे विशिष्ट पूर्ववर्ती डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने पचास वर्ष पहले स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर कहा था- ‘हमने एक लोकतांत्रिक संविधान अपनाया है। यह मानककृत विचारशीलता और कार्य के बढ़ते दबावों के समक्ष हमारी वैयक्तिता को बनाए रखने में सहायता करेगा.. लोकतांत्रिक सभाएं सामाजिक तनाव को मुक्त करने वाले साधन के रूप में कार्य करती हैं और खतरनाक हालात को रोकती हैं। एक प्रभावी लोकतंत्र में, इसके सदस्यों को विधि और विधिक शक्ति को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। कोई व्यक्ति, कोई समूह स्वयं विधि प्रदाता नहीं बन सकता।’ ”

बहुलवाद भारत की अनूठी विशेषता:-

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि एक-दूसरे की संस्कृतियों, मूल्यों और आस्थाओं के प्रति सम्मान एक ऐसी अनूठी विशेषता है, जिसने भारत को एक सूत्र में बांध रखा है। उन्होंने कहा कि बहुलवाद का मूल तत्व हमारी विविधता को सहेजने और अनेकता को महत्व देने में निहित है। प्रणब ने कहा कि आपस में जुड़े हुए वर्तमान माहौल में, एक देखभालपूर्ण समाज धर्म और आधुनिक विज्ञान के समन्वय द्वारा विकसित किया जा सकता है। स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था- ‘वभिन्न प्रकार के पंथों के बीच सहभावना आवश्यक है। यह देखना होगा कि वे साथ खड़े हों या एकसाथ गिरें, एक ऐसी सहभावना जो परस्पर सम्मान न कि अपमान, सद्भावना की अल्प अभिव्यक्ति को बनाए रखने से पैदा हो।

उन्होंने कहा, “यह सच है, जैसा कि 69 वर्ष पहले आज ही के दिन पंडित नेहरू ने एक प्रसिद्ध भाषण में कहा था कि एक राष्ट्र के इतिहास में ऐसे क्षण आते हैं, जब हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाते हैं, जब एक राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्ति प्राप्त होती है। परंतु यह अनुभव करना आवश्यक है कि ऐसे क्षण अनायास ही भाग्य की वजह से न आएं। एक राष्ट्र ऐसे क्षण पैदा कर सकता है और पैदा करने के प्रयास करने चाहिए। हमें अपने सपनों के भारत का निर्माण करने के लिए भाग्य को अपनी मुट्ठी में करना होगा। सशक्त राजनीतिक इच्छाशक्ति के द्वारा, हमें एक ऐसे भविष्य का निर्माण करना होगा, जो साठ करोड़ युवाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाए, एक डिजिटल भारत, एक स्टार्ट-अप भारत और एक कुशल भारत का निर्माण करे।”

राष्ट्रपति ने कहा, “हम सैकड़ों स्मार्ट शहरों, नगरों और गांवों वाले भारत का निर्माण कर रहे हैं। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे ऐसे मानवीय, हाईटेक और खुशहाल स्थान बनें जो प्रौद्योगिकी प्रेरित हों, परंतु साथ ही सहृदय समाज के रूप में भी निर्मित हों। हमें अपनी विचारशीलता के वैज्ञानिक तरीके से मेल न खाने वाले सिद्धांतों पर प्रश्न करके एक वैज्ञानिक प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देना चाहिए और उसे मजबूत करना चाहिए। हमें यथास्थिति को चुनौती देना और अक्षमता और अव्यवस्थित कार्य को अस्वीकार करना सीखना होगा।”

विदेश नीति में आई सक्रियता:-

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को कहा कि हाल के समय में हमारी विदेश नीति में काफी सक्रियता दिखाई दी है। उन्होंने कहा कि अफ्रीका और एशिया प्रशांत के पारंपरिक साझेदारों के साथ ऐतिहासिक संबंध फिर से सशक्त किए गए हैं, सभी देशों विशेषकर अपने निकटतम पड़ोसियों के साथ साझे मूल्यों और परस्पर लाभ पर आधारित नए रिश्ते स्थापित करने की प्रक्रिया जारी है। राष्ट्रपति ने कहा, ” ‘पड़ोसी प्रथम नीति’ से हम पीछे नहीं हटेंगे।”

उन्होंने कहा, “इतिहास, संस्कृति, सभ्यता और भूगोल के घनिष्ठ संबंध दक्षिण एशिया के लोगों को एक साझे भविष्य का निर्माण करने और समृद्धि की ओर मिलकर अग्रसर होने का विशेष अवसर प्रदान करते हैं। इस अवसर को बिना देरी किए हासिल करना होगा। विदेश नीति पर भारत का ध्यान शांत सहअस्तित्व और इसके आर्थिक विकास के लिए प्रौद्योगिकी और संसाधनों के उपयोग पर केंद्रित होगा।”

प्रणब ने कहा, “विश्व में उन आतंकवादी गतिविधियों में तेजी आई है, जिनकी जड़ें धर्म के आधार पर लोगों को कट्टर बनाने में छिपी हुई हैं। ये ताकतें धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या के अलावा भौगोलिक सीमाओं को बदलने की धमकी भी दे रही हैं, जो विश्व शांति के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। ऐसे समूहों की अमानवीय, मूर्खतापूर्ण और बर्बरतापूर्ण कार्यप्रणाली हाल ही में फ्रांस, बेल्जियम, अमेरिका, नाइजीरिया, केन्या और हमारे निकट अफगानिस्तान तथा बांग्लादेश में दिखाई दी है। ये ताकतें अब सम्पूर्ण राष्ट्र समूह के प्रति एक खतरा पैदा कर रही हैं। विश्व को बिना शर्त और एक स्वर में इनका मुकाबला करना होगा।”

प्रणब ने कहा, “हमारे देश की मूल भावना तथा जीने और उत्कृष्ट कार्य करने की जिजीविषा का कभी दमन नहीं किया जा सकता। अनेक बाहरी और आंतरिक शक्तियों ने सहस्राब्दियों से भारत की इस मूल भावना को दबाने का प्रयास किया है, परंतु हर बार यह अपने सम्मुख प्रत्येक चुनौती को समाप्त, आत्मसात और समाहित करके और अधिक शक्तिशाली और यशस्वी होकर उभरी है।”

उन्होंने कहा, “1970 में इतिहासकार आर्नोल्ड टॉयनबी ने समकालीन इतिहास में भारत की भूमिका के बारे में कहा था- ‘आज हम विश्व इतिहास के इस संक्रमणकारी युग में जी रहे हैं, परंतु यह पहले ही स्पष्ट होता जा रहा है कि इस पश्चिमी शुरुआत का, यदि इसका अंत मानव जाति के आत्मविनाश से नहीं हो रहा है तो समापन भारतीय होगा।’ टॉयनबी ने आगे यह भी कहा कि मानव इतिहास के मुकाम पर, मानवता की रक्षा का एकमात्र उपाय भारतीय तरीका है।”

उन्होंने इस अवसर पर सैन्य बलों, अर्धसैन्य और आंतरिक सुरक्षा बलों के उन सदस्यों को बधाई दी, जो मातृभूमि की एकता, अखंडता और सुरक्षा की चौकसी तथा रक्षा कायम रखने के लिए अग्रिम सीमाओं पर डटे हुए हैं।

प्रणब ने अंत में उपनिषद का उल्लेख करते हुए कहा, “ईश्वर हमारी रक्षा करे। ईश्वर हमारा पोषण करे। हम मिलकर उत्साह और ऊर्जा के साथ कार्य करें। हमारा अध्ययन श्रेष्ठ हो। हमारे बीच कोई वैमनस्य न हो। चारों ओर शांति ही शांति हो।”

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