लखनऊ। मृतकों की राखों को गोमती नदी में प्रवाहित किया जा रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नियमों को नगर निगम के जिम्मेदारों ने दांव पर लगा दिया है। जबकि, नियंत्रण बोर्ड का साफ तौर पर कहना है कि गोमती नदी को किसी भी शर्त पर प्रदूषित करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है।
राजधानी के बैकुंठ धाम और गुलाला घाट पर रोज दर्जनों लाशें जलाईं जा रहीं है। कोरोना का पीक जब था तो सैकड़ों लाशें एक वक्त में जलाई जा रहीं थीं। 15-15 घंटे की वेटिंग थी। आलम यह था कि लाशों को जलाने के लिए जब चबूतरे कम पड़ रहे थे तो लोग बैकुंठ धाम के करीब एक किलोमीटर के दायरे तक लाशों को जलाने को मजबूर थे। जिसके कारण राखों का ढेर जमा हो गया था। इसको नगर निगम पिछले छह दिनों से सफाई करवा रहा है। लेकिन, राखों को कहीं और ले जाने के बजाय, उसको गोमती में ही प्रवाहित कराया जा रहा है।
राखों के ढेर में तलाश रहे आभूषण
बैकुंठ धाम की सफाई में लगे एक कर्मचारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि करीब पांच कर्मचारी रोज सफाई कर रहे हैं। इस दौरान वे राखों के ढेर से आभूषण तलाश रहे हैं। उसने बताया कि रोज कर्मचारियों को कुछ ना कुछ आभूषण मिल जा रहे हैं। गौरतलब है कि लाशों को परिजनों को दिया नहीं जाता है। ऐसे में उनके सारे आभूषण उतारे नहीं जाते हैं। कर्मचारी ने बताया कि किसी को नाक के आभूषण मिल रहे हैं तो किसी कान, पैर के। सोने और चांदी कई आभूषण कर्मचारी पा चुके हैं।
अधिकारियों की लापरवाही से लगातार प्रदूषित हो रही गोमती
गोमती नदी को प्रदूषित करने में अधिकारियों की लापरवाही बड़ी कारक है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक गोमती नदी में कुल 33 नाले गिरते हैं। इनमें से तो 26 पर सीवेटज ट्रीटमेंट प्लांट यानी एसटीपी लगे हुए हैं। जिनमें से 14 पर काम कर रहे हैं और 12 पर खराब हो चुके हैं। जबकि, सात नाले सीधे गोमती नदी में गिरते हैं। इनके लिए कोई रोकटोक नहीं है।
1800 मीट्रिक टन कचरा, 40 लाख लीटर गंदा पानी गोमती को रोज कर रहे बर्बाद
लखनऊ की आबादी की बात करें तो आज की तारीख में करीब 35 लाख लोग यहां रहते हैं। जिनके बीच से करीब रोज 1800 मीट्रिक टन कचरा रोज निकलता है। वहीं करीब 40 लाख लीटर गंदा पानी भी बहता है जो सीधे गोमती में ही जाता है। एक बड़ी संख्या में प्रतिदिन गोमती नदी में जहर फैल रहा है। अधिकारियों की सारी प्लानिंग कागजों तक ही रह गई है।
दो हजार करोड़ रूपए पानी में बहा दिए
गोमती नदी की दशा को सुधारने के लिए अब तक करीब दो हजार करोड़ रूपए पानी में बहा दिए गए लेकिन, गोमती लगातार जहरीली ही होती जा रही है। उत्तर प्रदेश की सरकारें अक्सर गोमती नदी को साफ रखने के लिए बजट जारी करतीं हैं लेकिन उससे गोमती के स्वास्थ्य पर कोई खास असर अभी तक देखने को नहीं मिला है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक गोमती पर कुल दो हजार करोड़ रूपए से ज्यादा का खर्च किया जा चुका है।
प्रदूषण बोर्ड की कार्रवाई व चेतावानी का नहीं है कोई असर
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अक्सर गोमती की सफाई को लेकर निरीक्षण करता है। कई बार अधिकारियों को चेतावनी भी दे चुका है। नगर निगम और जल निगम पर जुर्माने भी लगा चुका है। हाल ही में फरवरी माह में ही नगर निगम और जल निगम पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने छह लाख रूपए का जुर्माना ठोंका है।
विशेषज्ञ बोले- वायरस का रह सकता है असर
केजीएमयू के माइक्रोबॉयोलॉजी की विभागाध्यक्ष प्रो अमिता जैन ने कहा कि नदियों में शवों की राख को बहाने के बाद प्रदूषण फैलने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। लेकिन, यह माना जाता है बीमारियों के वायरस कुछ देर तक रह सकते हैं। हालांकि नदी प्रवाहित होती रहती है और पानी ज्यादा होता है, ऐसे में इसमें वायरस का असर कितना हो सकता है कुछ कहा नहीं जा सकता। इस पर कोई शोध नहीं है। लेकिन, वायरस कुछ देर तक रह सकता है।
अधिकारियों का दावा- नॉन कोविड लाशों की राखों की हो रही सफाई
नगर निगम के अधिकारियों का तर्क है जहां सफाई हो रही है वहां नॉन कोविड मरीजों को जलाया जाता है। साथ ही राख नहीं कंक्रीट आदि है। लेकिन, फोटो और विडियो में हकीकत कुछ और ही दिख रही है। हालांकि नॉन-कोविड लाशों की राखों को क्या नदी में प्रवाहित किया जा सकता है। इस पर अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं है।
जिम्मेदार बोले- होगी जांच
लखनऊ नगर आयुक्त अजय द्विवेदी ने कहा कि गोमती में लाश की राख प्रवाहित की जा रही है तो यह बड़ी लापरवाही है। इसकी जांच कराएंगे। अगर इसमें कोई दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा।