दो सितंबर से सतरह सितंबर तक पितृपक्ष चलेगा, इस दौरान मांस-मदिरा का सेवन करने से बचें और तय तिथियों में ही अपने पितरों का तर्पण करें।
- धार्मिक डेस्क || भारत खबर
कोरोना काल के दौरान पितृपक्ष में जिस तरह से अन्य कार्यों में बाधा या रुकावट देखी गई है उसी तरह से पितरों के तर्पण में भी देखी जाएगी, कहने का तात्पर्य यह है कि वर्चुअल माध्यम से इस बार पितृपक्ष को तर्पण करने का नया अवसर मिलेगा। 2 सितंबर से शुरू होकर 17 सितंबर तक इस बार पितृपक्ष चलेगा और इस दौरान लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा आदि का सेवन करने से परहेज करना चाहिए। इस दौरान 15 दिनों तक अपने बाल और दाढ़ी नाखून आदि नहीं कटवाने चाहिए।
कोरोना महामारी का समय चल रहा है तो ऐसे में गंगा तट पर जाने से बचना चाहिए और उन जगहों पर भी जाने से बचना चाहिए जहां पर अक्सर पितृपक्ष में लोग जाया करते थे। पुराने ट्रेडिशन को इस बार थोड़ा सा रोकने का समय है और आप अगर दूर हैं अपने घर से तो वर्चुअल मीडियम से आप पितृपक्ष को तर्पण कर सकते हैं।
ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में जो पित्र देवता है यानी जो आपके पूर्वज हैं वो स्वर्ग लोक से धरती पर परिजनों से मिलने आते हैं। हिंदू धर्म में यह मान्यता काफी प्रगाढ़ है और ऐसा माना जाता है कि जिन प्राणियों की मृत्यु के बाद उनका विधि अनुसार तर्पण नहीं होता है उनकी आत्मा यहां से मुक्त नहीं हो पाती और बार-बार यही चक्कर काटते रहते हैं। जो व्यक्ति पितृपक्ष में पितरों का तर्पण याद नहीं करते हैं उनको पितृदोष का सामना भी करना पड़ता है पितृदोष के चलते कई सारे नुकसान और हानियां हमारे जीवन में देखने को मिलती हैं जिनमें सेहत, पद, प्रतिष्ठा को गंवाना आदि सभी सम्मिलित हैं।
हिन्दू धर्म में पितृपक्ष के 15 दिनों में श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण का अधिक महत्व मनाया गया है। इन दिनों में पितर धरती पर किसी न किसी रूप में अपने परिजनों के बीच में रहने के लिए आते हैं।
पितृ पक्ष से जुड़ी इन बातों को बांध लें गांठ-
- आत्महत्या, विष और दुर्घटना आदि से मृत्यु होने पर मृत पितरों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है।
- जिन लोगों के सगे संबंधियों और परिवार के सदस्यों की मृत्यु जिस तिथि पर हुई है पितृपक्ष में उसी तिथि पर उनका श्राद्ध करना चाहिए।
- जिस महिला की मृत्यु पति के रहते ही हो गयी हो उनका श्राद्ध नवमी तिथि में किया जाता है। ऐसी स्त्री जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं है तो उनका श्राद्ध मातृ नवमी वाले दिन करना चाहिए।
- अगर किसी कारणवश अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नही है तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना उचित होता है।
- पिता के लिये अष्टमी तो माता के लिये नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है।