नई दिल्ली। भगवान परशुराम का रामायण में एक अलग ही महत्व हैं औऱ जहां बात आती हैं उनकी शक्ति की तो हर उनकी शक्ति से परिचित हैं बता दे कि अक्षय तृतीया के दिन ही परशुराम जी का जन्म हुआ था। जिसकी वजह से अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती मनाई जाती हैं। बता दे कि परशुराम जी की गणना दशावतारों में होती है।
भगवान परशुराम स्वयं भगवान विष्णु के अंशावतार हैं। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर में उच्च के ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था। अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम का जन्म माना जाता है। इस तिथि को प्रदोष व्यापिनी रूप में ग्रहण करना चाहिए क्योंकि भगवान परशुराम का प्राकट्य काल प्रदोष काल ही है। इस बार 18 अप्रैल 2018 को परशुराम जयंती मनाई जाएगी।
भगवान परशुराम महर्षि जमदग्नि के पुत्र थे. पुत्रोत्पत्ति के निमित्त इनकी माता तथा विश्वामित्र जी की माता को प्रसाद मिला था जो देव शास्त्र द्वारा आपस में बदल गया था।
इससे रेणुका का पुत्र परशुराम जी ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे जबकि विश्वामित्र जी क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होकर भी ब्रह्मर्षि हो गए।
जिस समय इनका अवतार हुआ था उस समय पृथ्वी पर क्षत्रिय राजाओं का बाहुल्य हो गया था। उन्ही में से एक राजा ने उनके पिता जमदग्नि का वध कर दिया था, जिससे क्रुद्ध होकर इन्होंने 21 बार दुष्टों राजाओं से पृथ्वी को मुक्त किया।भगवान शिव के दिए हुए परशु अर्थात फरसे को धारण करने के कारण इनका नाम परशुराम पड़ा। तो पढ़ा आपने कि क्या महत्व हैं पशुराम जयंती का।