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जब पंडित जवाहरलाल नेहरू के एक कदम ने गोवा को बना दिया था भारत का हिस्सा

goa जब पंडित जवाहरलाल नेहरू के एक कदम ने गोवा को बना दिया था भारत का हिस्सा

नई दिल्ली। 19 दिसंबर, 1961 को भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव में प्रवेश करके इन इलाकों को साढ़े चार सौ साल के पुर्तगाली आधिपत्य से आजाद कराया था। ब्रिटिश और फ्रांस के सभी औपनिवेशिक अधिकारों के खत्म होने के बाद भी भारतीय उपमहाद्वीप गोवा, दमन और दीव में पुर्तगालियों का शासन था। भारत सरकार की बार-बार बातचीत की मांग को पुर्तगाली ठुकरा दे रहे थे, जिसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय के तहत सेना की छोटी टुकड़ी भेजी। 18 दिसंबर 1961 के दिन ऑपरेशन विजय शुरू हुआ था। भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ने गोवा के बॉर्डर में प्रवेश किया। 36 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक जमीनी, समुद्री और हवाई हमले हुए। इसके बाद पुर्तगाली सेना ने बिना किसी शर्त के भारतीय सेना के समक्ष 19 दिसंबर को आत्मसमर्पण किया।

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बता दें कि जैसा आप जानते हैं, गोवा पश्चिमी भारत में बसा एक छोटा सा राज्य है। अपने छोटे आकार के बावजूद यह बड़ा ट्रेड सेंटर था और मर्चेंट्स, ट्रेडर्स को आकर्षत करता था। प्राइम लोकेशन की वजह थे गोवा की तरफ मौर्य, सातवाहन और भोज राजवंश भी आकर्षत हुए थे। 1350 ई. पू में गोवा बहमानी सल्तनत के अधीन चला गया लेकिन 1370 में विजयनगर सम्राज्य ने इसपर फिर से शासन जमा लिया। विजयनगर साम्राज्य ने एक सदी तक इसपर तब तक आधिपत्य जमाए रखा जब तक कि 1469 में बहमानी सल्तनत फिर से इसपर कब्जा नहीं जमा लिया।

साथ ही 1954 में, निशस्त्र भारतीयों ने गुजरात और महाराष्ट्र के बीच स्थित दादर और नागर हवेली के विदेशी क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। पुर्तगाल ने इसकी शिकायत हेग में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में की। 1960 में फैसला आया कि कब्जे वाले क्षेत्र पर पुर्तगाल का अधिकार है। कोर्ट ने साथ में ये भी फैसला दिया कि भारत के पास अपने क्षेत्र में पुर्तगाली पहुंच वाले क्षेत्र पर उसके दखल को न मानने का पूरा अधिकार भी है। 1 सितंबर 1955 को, गोवा में भारतीय कॉन्सुलेट को बंद कर दिया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि सरकार गोवा में पुर्तगाल की मौजूदगी को बर्दाश्त नहीं करेगी। भारत ने पुर्तगाल को बाहर करने के लिए गोवा, दमन और दीव के बीच में ब्लॉकेड कर दिया। इसी बीच, पुर्तगाल ने इस मामले को अंतराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की पूरी कोशिश की।

वहीं लेकिन, क्योंकि यथास्थिति बरकरार रखी गई थी, 18 दिसंबर 1961 को भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव पर चढ़ाई कर दी। इसे ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। पुर्तगाली सेना को यह आदेश दिया गया कि या तो वह दुश्मन को शिकस्त दे या फिर मौत को गले लगाए। पुर्तगाली सेना भारतीय सेना के सामने बेहद कमजोर साबित हुई। उनके पास भारी हथियारों की कमी थी।आखिर पुर्तगाल की 3,300 की संख्या वाली सेना भारत की 30,000 की संख्या वाली सैन्य टुकड़ी का कैसे मुकाबला करती? आखिरकार सीजफायर का ऐलान हो गया। भारत ने अंततः पुर्तगाल के अधीन रहे इस क्षेत्र को अपनी सीमा में मिला लिया। पुर्तगाल के गवर्नर जनरल वसालो इ सिल्वा ने भारतीय सेना प्रमुख पीएन थापर के सामने सरेंडर कर दिया।

लड़ाई के दौरान 18 दिसंबर को कैनबेरा बमवर्षकों ने डाबोलिम हवाई पट्टी पर बमबारी की लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखा कि टर्मिनल व एटीसी टॉवर को बर्बाद ना किया जाए। ताकि बाद में इसका फायदा उठाया जा सके। भारत ने लड़ाई के दौरान दो पुर्तगाली यातायात विमान को छोड़ दिया था ताकि उन पर कब्जा किया जा सके लेकिन पुर्तगाली पायलट उन्हें क्षतिग्रस्त हवाई पट्टी से उड़ा ले जाने में सफल हुए जिसके जरिये वे पुर्तगाल भाग निकले। गोवा के सैनिकों ने सरेंडर से पहले अपने कई साजो सामान को भी नष्ट कर दिया जिससे वह भारत के हाथ नहीं लग सके। 30 मई 1987 को गोवा को राज्‍य का दर्जा दे दिया गया जबकि दमन और दीव केंद्रशासित प्रदेश बने रहे। ‘गोवा मुक्ति दिवस’ प्रति वर्ष ’19 दिसम्बर’ को मनाया जाता है।

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