डॉ ध्रुव कुमार की पुस्तक “दीनदयाल उपाध्याय का शिक्षा- दर्शन” का उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने किया लोकार्पण
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित विद्वान चिंतकों के कुल 23 आलेख पुस्तक में हैं संकलित
● अतीश दीपंकर पटना ।
उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के ” एकात्म मानव-दर्शन ” में जगत का कल्याण निहित है। वे आधुनिक भारत के उन विचारकों में एक हैं जिन्होंने अपनी मौलिक और सार्वभौमिक चिंतन से समाज, राष्ट्र और विश्व को एक नवीन और समरस मार्ग प्रशस्त किया और जगत कल्याण के लिए ” एक नई विचारधारा दी।
वे आज शुक्रवार को पं. दीनदयाल की 105वीं जयंती के अवसर पर डा. ध्रुव कुमार की पुस्तक ” पंडित दीनदयाल उपाध्याय का शिक्षा-दर्शन ” के लोकार्पण के पश्चात विचार व्यक्त कर रहे थें।
श्री मोदी ने कहा कि पंडित दीनदयाल जी की स्पष्ट मान्यता थी कि भारतीय संस्कृति एकात्म मानववादी है और इसके अनेक प्रत्यय है। धर्म, चिति और विराट आदि प्रत्ययों को सहज तरीके से विश्व के सामने प्रस्तुत करना उनकी क्रांतिकारी पहल थी। आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने भी इन भारतीय प्रत्ययों का सफलतापूर्वक उपयोग किया था। वे एक लोक कल्याणकारी राष्ट्र के निर्माण के लिए राजनीतिक शुचिता को परम आवश्यक मानते थें।
श्री मोदी ने कहा कि पंडित दीनदयाल यह भी मानते थे कि ” मानव ” केवल व्यक्ति व समाज के रूप में ही एकात्म नहीं है बल्कि वह इस संसार यानी प्रकृति का भी अविभाज्य अंग है। भारतीय परंपरा प्रकृति को ” माता ” का दर्जा देती है। प्रकृति को प्रदूषित करना पाप माना जाता है। उप मुख्यमंत्री ने उनके विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता जताई ।
पटना विवि शिक्षा संकायाध्यक्ष और पटना ट्रेनिंग कॉलेज के प्राचार्य डॉ आशुतोष कुमार ने कहा कि पंडित दीनदयाल एक समावेशित विचारधारा के समर्थक थे जो एक मजबूत और सशक्त भारत चाहते थे । उनके जीवन दर्शन का प्रथम सूत्र था -” भारत में रहने वाला मानव समूह एक जन है। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। ”
उन्होंने देश की स्वतंत्रता के बाद भारतीय संस्कृति को पश्चिम देशों के प्रत्ययों से अक्षुण्ण बनाए रखने के उद्देश्य से महत्त्वपूर्ण कार्य किए।
पुस्तक के लेखक डॉ ध्रुव कुमार ने कहा कि व्यक्ति और समाज का पहला संबंध शिक्षा के रूप में ही सामने आता है, इसे पहली बार पंडित दीनदयाल उपाध्यय जी ने दुनिया के समक्ष रखा। व्यक्ति के पैदा होते ही समाज शिक्षा देना प्रारंभ कर देता है। शिक्षा और संस्कार से ही बच्चा समाज का अभिन्न घटक बनता है। बच्चे को शिक्षा देना समाज के हित में है। वे नि:शुल्क शिक्षा व्यवस्था के पक्षधर थे। उनकी नजर में राष्ट्रीयता कोई कृत्रिम वस्तु नहीं है, यह स्वाभाविक होती है।
डॉ कुमार ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय की राष्ट्र और मानव – कल्याण संबंधी चिंतन- धारा को पाठ्यक्रमों में शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया।