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मंत्रिमंडल ने पनबिजली क्षेत्र को बढ़ावा देने के उपायों को मंजूरी दी

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संवाददाता, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्‍यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पनबिजली क्षेत्र को बढ़ावा देने के उपायों को मंजूरी दे दी है। गैर-सोलर अक्षय ऊर्जा क्रय बाध्यता (आरपीओ) के हिस्से के रूप में बड़ी पनबिजली परियोजनाओं की घोषणा इनमें शामिल है।

विवरणः
बड़ी पनबिजली योजनाओं की घोषणा अक्षय ऊर्जा स्रोत के रूप में की जायेगी (मौजूदा प्रचलन के अनुसार, केवल 25 मेगावॉट से कम क्षमता वाले पनबिजली परियोजनाओं को अक्षय ऊर्जा के रूप में श्रेणीबंध किया गया है)।

इन उपायों की अधिसूचना के बाद शुरू की गई बड़ी पनबिजली योजनाएं गैर-सोलर अक्षय ऊर्जा क्रय बाध्यता के तहत पनबिजली योजनाएं इन में शामिल होंगी (लघु पनबिजली परियोजनाएं पहले से ही इनमें शामिल हैं)। पनबिजली क्षेत्र में अतिरिक्त परियोजना क्षमता के आधार पर विद्युत मंत्रालय द्वारा बड़ी पनबिजली परियोजनाओं के वार्षिक लक्ष्यों के बारे में अधिसूचित किया जायेगा। बड़ी पनबिजली परियोजनाओं के संचालन के लिये शुल्क नीति और शुल्क नियमनों में आवश्यक संसोधन किये जायेंगे।

परियोजना काल को 40 वर्ष तक बढ़ाने के बाद शुल्क के बैक लोडिंग द्वारा शुल्क निर्धारित करने के लिये डेवलपरों को लचीलापन प्रदान करने, ऋण भुगतान की अवधि को 18 वर्ष तक बढ़ाने और 2 प्रतिशत शुल्क बढ़ाने सहित शुल्क को युक्तिसंगत बनाना।

मामले के आधार पर पनबिजली परियोजनाओं फ्लड मोडरेशन घटक वित्तपोषण के लिये बजटीय सहायता प्रदान करना ; और सड़कों और पुलों जैसी आधारभूत सुविधाओं के निर्माण में आर्थिक लागत पूरी करने के लिये बजटीय सहायता देना। मामले के आधार पर यह वास्तविक लागत, प्रति मेगावॉट 1.5 करोड़ रूपये की दर से अधितकम 200 मेगावॉट क्षमता वाली परियोजनाओं और प्रति मेगावॉट 1.0 करोड़ रूपये की दर से 200 मेगावॉट से अधिक क्षमता वाली परियोजनाओं के लिये हो सकती है।

रोजगार सृजन की संभावना सहित प्रमुख प्रभाव

जैसा कि अधिकांश पनबिजली परियोजनाएं हिमालय की ऊचाइयों और पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित हैं, इससे विद्युत क्षेत्र में प्रत्यक्ष रोजगार मिलने से इस क्षेत्र का सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित होगा। इससे परिवहन, पर्यटन और अन्य छोटे कारोबारी क्षेत्र में अप्रत्यक्ष रोजगार/उद्यमिता के अवसर भी उपलब्ध होंगे। इसका एक अन्य लाभ यह भी होगा कि सौर और पवन जैसे ऊर्जा स्रोतों से वर्ष 2022 तक लगभग 160 गीगावॉट क्षमता का एक स्थाई ग्रिड उपलब्ध हो जायेगा।

पृष्ठभूमि
भारत में लगभग 1,45,320 मेगावॉट पनबिजली क्षमता की संभावना है, किंतु अब तक केवल लगभग 45,400 मेगावॉट का ही इस्तेमाल हो रहा है। पिछले 10 वर्षों में पनबिजली क्षमता में केवल लगभग 10,000 मेगावॉट की वृद्धि की गयी है। फिलहाल पनबिजली क्षेत्र एक चुनौतीपूर्ण चरण से गुजर रहा है और कुल क्षमता में पनबिजली की हिस्सेदारी वर्ष 1960 के 50.36 प्रतिशत से घटकर 2018-19 में लगभग 13 प्रतिशत रह गयी है।

पर्यावरण अनुकूल होने के साथ-साथ, पनबिजली की अन्य कई महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं, जिनमें शीघ्रतापूर्वक रैम्पिंग, ब्लैक स्टार्ट, प्रतिक्रियात्मक अवशोषण आदि शामिल हैं। इन विशेषताओं के बल पर यह पीकिंग पावर, स्पीनिंग रिजर्व और ग्रिड संतुलन के लिये एक आदर्श है। इसके अलावा, पनबिजली क्षेत्र से रोजगार के अवसर मिलने और पर्यटन क्षेत्र का विकास होने से संपूर्ण क्षेत्र का सामाजिक-आर्थिक विकास होता है। साथ ही, इससे जल सुरक्षा, सिंचाई सुविधा और बाढ़ में कमी होने जैसे लाभ भी मिलते है। पनबिजली का महत्व और भी अधिक बढ रहा है, क्योंकि हमारे देश ने जलवायु परिवर्तन को लेकर राष्ट्र के लिये निर्धारित अपने योगदान का सम्मान करते हुए वर्ष 2022 तक सौर और पवन बिजली क्षमता में 160 गीगावॉट जोड़ने और वर्ष 2030 तक गैर-फोसाइल ईंधन स्रोतों से कुल क्षमता का 40 प्रतिशत जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

हालांकि, बिजली उत्पादन और वितरण कंपनियां, विशेषकर शुरूआती वर्षों में अधिक शुल्क होने के कारण, विद्युत क्रय समझौते (पीपीए) पर हस्ताक्षऱ करने के प्रति इच्छुक नही हैं। बाढ़ के दौरान किये जाने वाले उपायों पर आने वाली लागत और परियोजना में बुनियादी सुविधाओं की लागत के कारण पनबिजली क्षेत्र की शुल्क दरें उंची हैं। इसे ध्यान में रखते हुए, पनबिजली क्षेत्र को बढ़ावा देने के उपायों को लागू करने का निर्णय लिया गया है। शुल्क घटाकर उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ घटाने के उद्देश्य से बाढ़ के समय परियोजना सुरक्षा पर आने वाली लागत तथा आधारभूत सुविधाओं की लागत के लिये बजटीय सहायता प्रदान करना इनमें शामिल हैं।

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