- भारत खबर || धार्मिक डेस्क
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि Padmini Ekadashi Vrat को बहुत ही खास माना जाता है और ऐसे में मत है कि इस दिन विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना करने से ईश्वर की उपासना में वह सब कुछ मिल जाता है जिसकी आप उम्मीद भी नहीं कर सकते।
क्योंकि इस समय अधिकमास या मलमास का वक्त चल रहा है और ऐसे में पद्मिनी एकादशी Padmini Ekadashi Vrat का व्रत बेहद मायने रखता है इस व्रत को अधिक मास एकादशी का व्रत भी कहते हैं।
आपको बता दें कि यह अधिक मास एकादशी या पद्मिनी एकादशी Padmini Ekadashi Vrat 27 सितंबर रविवार को पड़ रही है। इस एकादशी के दिन जगत के पालनहार साक्षात स्वामी विष्णु जी की आराधना की जाती है। कथाओं में वर्णन मिलता है कि भगवान कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से पद्मिनी एकादशी के व्रत के बारे में बात की है और इसके महत्व को बताया है।
ऐसा माना जाता कि जो व्यक्ति अधिक मास में भगवान विष्णु की पूजा और उपासना करता है उसे सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। इस महीने भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन के सभी प्रकार के कष्ट मिट जाते हैं।
पद्मिनी एकादशी Padmini Ekadashi Vrat रखने का परिणाम
भारत खबर आज आपको पद्मिनी एकादशी की व्रत पूजा कैसे करें, और कैसे इस व्रत को विधि विधान पूर्वक संपन्न करें इस बारे में बताने जा रहा है-
- पद्मिनी एकादशी Padmini Ekadashi Vrat 26 सितंबर को सुबह 6:29 से प्रारंभ होगा और 27 सितंबर को सुबह 7:16 तक रहेगा। इस तरह से देखें तो 27 सितंबर का व्रत रखना उचित होगा।
- जो व्यक्ति पद्मिनी एकादशी का व्रत धारण करते हैं उन्हें सूर्योदय के बाद पारण करना चाहिए ध्यान रहे कि व्रत में पारण जिस दिन आप व्रत है उसके अगले दिन करना है।
- तो पंचांग के अनुसार 28 सितंबर को सुबह 6:19 से 8:30 तक पारण का समय है और जो भी व्यक्ति पद्मिनी एकादशी का व्रत रख रहे हैं उन्हें नियमों का पालन करते हुए इसी समय के मध्य पारण करना चाहिए।
- कहते हैं कि पद्मिनी एकादशी का व्रत धारण करने वाले व्यक्ति को समाज में यश कीर्ति तो मिलते ही मिलती है साथ ही साथ उन्हें वैभव और संपदा का भी अकूत भंडार मिलता है।
- कहते हैं कि Padmini Ekadashi Vrat को विधि-विधान पूर्वक करने से शारीरिक स्वच्छता और रुके हुए कार्यों में गति प्रदान होती है जिससे व्यक्ति अपने जीवन काल में उन सभी ऊंचाइयों को छू लेता है जिनको आम व्यक्ति छूने के लिए परेशान रहते हैं। इस व्रत को करने से जातक को कीर्ति प्राप्त होती हैं और मृत्यु के बाद बैकुंठ को जाता हैं।
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