भोपाल। तीन दशक से भोपाल लोकसभा सीट पर विजयी पताका फहराने के लिए तरस रही कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी घोषित कर अपना तुरुप का इक्का चल दिया है। भाजपा संगठन में अब इस सीट को लेकर नए सिरे से पुनर्विचार शुरू हो गया है।
यह माना जा रहा है कि पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर दांव खेलने की तैयारी में है। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती पहले ही चुनाव न लड़ने का एलान कर चुकी है, इसलिए मुकाबले के लिए भाजपा के पास बहुत सीमित विकल्प बचे हैं।
दिग्विजय की उम्मीदवारी के बाद मौजूदा सांसद आलोक संजर सहित अन्य कई दावेदारों के नाम स्वमेव पीछे हो गए हैं। हालांकि भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के यह कहने के बाद कि दिग्विजय सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने में मजा आएगा, ऐसा लगने लगा है कि वे खुद भी यहां से चुनाव लड़ने की दिलचस्पी रखते हैं।
राजधानी भोपाल की सीट पर चुनावी मुकाबला रोचक और चुनौतीपूर्ण बनाने की रणनीति में कांग्रेस सफल रही। पार्टी का चुनावी गणित यह है कि इससे आसपास और प्रदेश की अन्य सीटों पर भी अनुकूल असर पड़ेगा। कांग्रेस के कार्यकर्ता भी ‘चार्ज” होकर काम पर लग जाएंगे। दिग्विजय 16 साल बाद अपने लिए वोट मांगने निकलेंगे।
2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उनसे मुकाबला करने शिवराज को ही राघौगढ़ भेजा था, शिवराज की उस समय भी राघौगढ़ से चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं थी, लेकिन पार्टी का निर्णय मानना पड़ा। ठीक यही स्थिति इस बार भी बन रही है। केंद्र की राजनीति में जाने से शिवराज पहले ही इनकार कर चुके हैं।
ऐसा माना जा रहा है कि इसका फैसला अब भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति और संसदीय बोर्ड की बैठक में लिया जाएगा। सोमवार को दिल्ली में केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक बुलाई गई है। इसमें मप्र की बाकी सीटों पर निर्णय होने की संभावना है। इनमें इंदौर, विदिशा और ग्वालियर सीट पर प्रत्याशी को लेकर सस्पेंस बना हुआ है।