नई दिल्ली। अमेरिका की ओर से 66 साल पहले हुए जपान के हिरोशिमा हमले को आज तक लोग याद करके कांप जाते हैं। इस हमले में अमेरिका ने जापान पर लिटिल मैन नाम का एक युरेनियम बम गिराया था। इसके प्रभाव ने जापान में 13 वर्ग किलोमीटर तक ऐसी तबाही मचाई थी कि हिरोशिमा की 3.5 लाख की आबादी एक ही झटके में तबाह हो गई थी और एक लाख 40 हजार लोग लाशों के मलबे में तबदील हो गए थे। ये सब सैनिक नहीं बल्कि आम नागरिक थे जिनमें बच्चे बूढ़े और युवक शामिल थे। अमेरिका इतने पर भी शान्त नहीं हुआ और उसने तीन दिन बाद एक और फैट मैन नामक प्लूटोनियम बम के प्रभाव को आजमाने के लिए नागरिकों पर ये बम गिरा दिया। जिसके प्रभाव से फिर 74 हजार लोग विस्फोट और गर्मी का शिकार होकर मर गए। इन दोनों हमलों की खास बात ये है कि ये बम गलती से नहीं बल्कि जान बूझकर आम नागरिकों पर गिराए गए थे।
बता दें कि उन दिनों बमों के गैसों का प्रभाव 1800 किमी तक फैल गया था। जिससे ऐसी गर्मी पैदा हुई जिसके कारण हजारों लोग मौत की आगोश में सो गए। मकान कागज की तरह जलने लगे। हिरोशिमा में जो लोग बम के झटके में मरे उनको ज्यादा कष्ट नहीं उठाना पड़ा लेकिन उन लोगों के बारे में सोच कर आज भी रूह कांप जाती है जो जल कर मरे क्योंकि उनको घंटो तक जलने के दर्द को सहना पड़ा था। उस वक्त जापान की जनता उन हादसों से पूरी तरह टूट और बिखर गई थी लेकिन जापान की देशभक्ति ने ये साबित कर दिया कि अगर कोई भी अपनी पर आ जाए तो बड़ी से बड़ी आफत से लड़ सकता है। जैसा जापान के हिरोशिमा में रहने वाले लोगों ने किया। इतनी तबाही मचने के बाद भी जापान के लोगों ने खुद को संभाला और कुछ सालों बाद अपने को फिर से खुद के पांव पर खड़ा किया और फिर से एक शक्तिशाली देश के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुआ।
वहीं इस हमले से द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र सेनाओं की जीत और जर्मन की हार तय हो चुकी थी। इसका आज तक पता नहीं चल सका कि फिर अमेरिका ने ऐसा क्रुर रूप क्यों धारण किया। जब भी इस पर सवाल उठाया गया तो जवाब सिर्फ यही मिलता था कि अमेरिका अपने दोनों बमों के प्रभाव को आजमाना चाहता था। अपने प्रयोग को आजमाने के लिए अमेरिका ने करीब 2,40,000 लोगों की जान की बलि चढ़ाई थी। जापान पर हुए उस हमले को आज भी शायद जापान याद करता होगा तो उसकी रूह तक कांप जाती होगी। क्योंकि उन दो हमलों ने जापान को बूरी तरह हिला कर रख दिया था।