नई दिल्ली। देश के नये उपराष्ट्रपति एम वेकैंया नायडू ने आतंकवाद को लेकर साफ करते हुए कहा कि इसे किसी मजहब या धर्म से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता है। क्योंकि आतंकवाद का कोई मजहब या धर्म नहीं होता है। इस वक्त इसे किसी धर्म और मजहब से जोड़कर देखने का खेल चल रहा है। लोगों को इसके प्रति जागरूक होना होगा। आतंकवाद का कोई मजहब भाषा और इलाका नहीं होता है। ये बात उप राष्ट्रपति नायडू ने इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में आयोजित डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम स्मृति व्याख्यान समारोह में बतौर अतिथि कही।
उन्होने साफसाफ कहा कि हमारा देश विविधताओं का देश है । कई हिन्दू मुस्लिमो से बेहतर उर्दू बोलते हैं। हम ये नहीं कह सकते कि भाषा किसी वर्ग विशेष की है। हमें सबसे पहले अपना मातृभाषा को सीखने पर जोर देना चाहिए। हम किसी धर्म जाति के बाद में हैं सबसे पहले भारतीय हैं। आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता है, ये बात हम सभी को साफ-साफ समझनी चाहिए। लेकिन कुछ संकीर्ण मानसिकता वाले लोग आतंकवाद को किसी धर्म और जाति से जोड़ते हैं। ये समाज में एक बड़ी और भयावह समस्या के तौर पर सामने आ रही है।
कुछ लोग आतंकवाद को धर्म के साथ जोड़ते हैं। लोगों को भ्रमित कर आपसी सदभाव खत्म कर देश में अराजकता का माहौल बना रहे हैं। हमें इन समाज के खतरनाक लोगों से सतर्क रहने की जरूरत है। क्योंकि कोई भी धर्म मजहब के नाम पर दहशत फैलाने की बात नहीं करता है। इसके साथ ही उन्होने संसद में मौजूद सांसदों को देश और संसद का वक्त बर्बाद करने के बजाय देश और समाज को एक बेहतर दिशा और अच्छे कानून देने की वकालत भी की है। उन्होने का कि हमें रचनात्मक कामों को करना चाहिए, विध्वंसात्मक और बाधाकारी कामों से देश का माहौल खराब होता है।