सिंधु जल संधि पर पाकिस्तान ने वर्ल्ड बैंक का दरवाजा खटखटाया है, लेकिन अब यहां भी उसे निराशा ही हाथ लगी है। बतां दें कि पाकिस्तान सिंधु जल संधि को लेकर भारत से नाराज चल रहा है। 21 मई और 22 मई को सिंधु जल संधि पर चार सदस्यीय पाकिस्तानी प्रतिनिधि और वर्ल्ड बैंक के बीच हुए बैठक में कोई समझौता नहीं हो सका। इस बात की जानकारी खुद वर्ल्ड बैंक ने दी है। इस मीटिंग के दौरान विश्व बैंक ने पाकिस्तानी प्रतिनिधियों से कहा कि इस मसले पर उनकी भूमिका सीमित और प्रक्रियात्मक है।
वर्ल्ड बैंक ने इस दौरान जम्मू कश्मीर के बंदीपोरा जिले में किशनगंगा हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट के हालिया उद्घाटन पर भी चिंता व्यक्त की। इसके पहले 18 मई को पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने भारत के दिवारा निर्माण किये जा रहे हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट को लेकर चिंता जताई थी और भारत पर ये आरोप लगाया था कि वह जल संधि का उल्लंघन कर रहा है।
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बता दें कि भारत ने सिंधु जल संधि के तहत झेलम और चेनाब नदी पर रैट्ल हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट (850 मेगावाट) और किशनगंगा (330 मेगावाट) के निर्माण की अनुमति दी है। पाकिस्तान ने किशनगंगा प्रोजेक्ट पर भी आपत्ति दर्ज की थी। भारत ने तर्क दिया था कि संधि में जल के दूसरे इस्तेमाल की भी अनुमति है जिसके तहत भारत इस प्रोजेक्ट का निर्माण कर रहा है।
किशनगंगा संयंत्र नदी पर बनाए जा रहे जलविद्युत योजना का एक हिस्सा है जिसे किशनगंगा नदी से पानी को झेलम नदी बेसिन में एक बिजली संयंत्र में बदलने के लिए बनाया गया है। किशनगंगा नदी पाकिस्तान में भी फैली हुई है, जिसे वहां नीलम नदी के नाम से जाना जाता है।
भारत ने 2009 में किशनगंगा परियोजना पर काम करना शुरू किया था। हालांकि, पाकिस्तान ने परियोजना के निर्माण के खिलाफ विरोध किया और इस मामले को द हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तक लेकर गया जहां तीन सालों तक के लिए परियोजना पर रोक लगा दी गई।
आखिरकार 2013 में, अदालत ने फैसला सुनाया कि किशनगंगा का पानी डायवर्ट कर भारत इस परियोजना पर काम कर सकता है। मई 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने परियोजना पर तेजी से काम करना शुरु किया।
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच एक जल वितरण समझौता है जिसके तहत दोनों देशों के लिए प्रभावी जल प्रबंधन की बात करता है। आपको बता दें कि, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा 19 सितंबर, 1960 को कराची में इस संधि पर हस्ताक्षर किया गया था।