पटना। दहेज प्रथा और बाल विवाह जैसी कुप्रथा को खत्म करने के लिए बिहार सरकार द्वारा बनाई जाने वाली मानव श्रृंख्ला को लेकर पटना हाईकोर्ट ने सरकार को तगड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने सरकार को आदेश देते हुए कहा है कि ऐसी मानव श्रृंख्ला बनाने के लिए सरकार बच्चों का इस्तेमाल बिना उनके माता-पिता की अनुमति के नहीं कर सकती है। इसी के साथ कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार द्वारा किसी भी तरह की कार्रवाई करने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। पटना हाईकोर्ट के जज राजेंद्र मेनन ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान ये फैसला सुनाया कि राज्य सरकार बच्चों को मानव श्रृंख्ला बनाने के लिए उन पर किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं कर सकती।
आपको बता दें कि इसके आयोजन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को पटना हाईकोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था और इस पर आज सुनवाई हुई। याचिका नागरिक अधिकार मंच की ओर से अधिवक्ता रीतिका रानी ने हाईकोर्ट में दायर की है। याचिकाकर्ता का कहना है कि 11 जनवरी को बिहार के शिक्षा विभाग के डिप्टी सेक्रेटरी ने पहली से पांचवी तक के बच्चों को छोड़कर शिक्षक और बाकी छात्र-छात्राओं को दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ मानव श्रृंख्ला बनाने का आदेश दिया था और 21 जनवरी को बिना किसी न नुकर के मानव श्रृंख्ला बनाने के लिए पेश होने को कहा था।
याचिकाकर्ता ने पूछा है कि इस कड़ाके की सर्दीे में बच्चों को घर से निकलने के लिए कैसे बाध्य किया जा सकता है। छात्र-छात्राओं को को नये सत्र के लिए किताबें नहीं दी गई है। इन्हें गर्म कपड़े भी नहीं दिये गये हैं। शिक्षकों से पठन पाठन के अलावा अन्य कार्य लिया जाना भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है। याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा है कि बाल विवाह अधिनियम 1973 और दहेज उन्मूलन एक्ट 1961 का है। इसमें नया क्या है? इसे राजनीतिक लाभ के लिए नाहक नई बात बनाई जा रही है। बताते चलें कि पिछले साल भी शराबबंदी कानून के समर्थन में मानव श्रृंखला का आयोजन किया गया था।