कुछ दिनों से नेपाल लगातार भारत पर दबाब बनाने के कोशिश कर रहा है। जो कि अपने आप में काफी चौंकाने वाला भी है। क्योंकि आज से पहले नेपाल ने भारत को कभी भी आंखें दिखाने की कोशिश नहीं की है। यही कारण है कि, भारत हर कदम पर नेपाल की मदद करता आया है। लेकिन अचानक से नेपाल के बिगड़े सुरों ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
जानकारों का कहना है कि, नेपाल ये सब चीन के इशारों पर कर रहा है। लेकिन सोचने की ये बात है कि, आखिर नेपाल किस डर से चीन के चिन्ह पदों पर चलकर भारत से दुश्मनी मोल ले रहा है। चलिए आपको बताते हैं नेपाल की तरफ से उठ रहे इन बागी सुरों के पीछे का क्या कारण है?
आपको बता दें, नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने नेपाल के नए नक्शों संबंधी विवाद खड़ा कर लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को अपनी सीमा में दिखाने संबंधी अपनी चाल चल दी।
इससे पहले पिछले महीने ओली ने भारत विरोधी रुख साफ कर रखा था। उनके बयान बताते हैं कि ओली ने भारत के खिलाफ कैसे ज़हर उगला। कोविड 19 के समय में ओली ने कहा, ‘चीन से आए वायरस’ की तुलना में ‘भारतीय वायरस’ ज़्यादा खतरनाक है।
नेपाल की तरफ से आ रहे इन बयानों से साफ झलका है कि, वो भारत से अपने रिश्ते खराब करने के लिए ये सब कर रहा है।
नेपाली लेखक सुजीव शाक्य के हवाले से एक अंग्रेजी अखबार दावा करता है कि, मार्च 2016 में नेपाल ने चीन के साथ एक संधि पर दस्तखत किए जिससे नेपाल को शुष्क बंदरगाहों, रेल सहित चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत सड़क ट्रांसपोर्ट के ज़रिये चीनी इलाकों के साथ जुड़ने का सीधा रास्ता मिला। इसके बाद फिर ओली के सामने संकट खड़ा हुआ जब प्रचंड यानी पीके दहाल के धड़े ने ओली सरकार के खिलाफ बगावत की।
2017 में ओली ने फिर जीत हासिल की और इस बार खुलकर भारत विरोधी छवि के साथ। जिससे साफ दिखता है कि, नेपाल के प्रधानमंत्री अपनी गद्दी बचाने के लिए ये सब कर रहे हैं।
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सीधे शब्दों में अगर कहा जाए तो नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा अपनी कुर्सी बचानें के लिए ये सब कर रहे हैं। ये ही कारण है कि, उन्होंने भारत के हिस्सों को अपने नये नक्शे में दिखाकर अपने माहौल में करने की कोशिश की है। लेकिन के.पी शर्मा का ये कदम नेपाल को मुसीबत में डाल सकता है। क्योंकि चीन अपने मतलब के लिए उसका इस्तेमाल कर रहा है।