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अपराध में डूब रहा बचपन, ऐसे क्रिमिनल बन रहे मासूम   

अपराध में डूब रहा बचपन, ऐसे क्रिमिनल बन रहे मासूम   

लखनऊ: जिस उम्र में बच्चे पढ़ने-लिखने और मौज-मस्ती में व्यस्त में रहते हैं। उसी उम्र में कुछ नाबालिग शौक पूरा करने और जल्द अमीर बनने की चाहत में जरायम की दुनिया में उतर जाते हैं।

यूपी में नाबालिग द्वारा किए जा रहे अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है। हाल में राजधानी समेत कई जनपदों में कुछ घटनाएं सामने आई है। इनमें नाबालिगों ने पैसा कमाने के लिए अपहरण, चोरी, लूट, फिरौती, ऑटोलिफ्टिंग की वारदात को अंजाम दिया है। नाबालिग अपराधियों की बढ़ती संख्या को देख अपराध नियंत्रण का दावा करने वाली पुलिस भी परेशान है। वहीं, मनोचिकित्सक इसे सामाजिक समस्या बता रहे हैं।

इन घटनाओं को नाबालिगों ने दिया अंजाम

पहला केस: नादान उम्र को बनाया हथियार

जनवरी में गोमतीनगर पुलिस ने नाबालिगों से बाइक चोरी कराने वाले गैंग का खुलासा किया था। पुलिस ने गैंग चार के ऑटोलिफ्टिर सदस्य साथ नाबालिग को पकड़ा था। इनके पास चोरी की 15 बाइक बरामद हुई थीं। पुलिस के मुताबिक, आरोपित वीरान पार्किंग को चुनते थे। फिर वह कम उम्र के बच्चों को वहां भेजते थे। जिन बाइक का लॉक नाबालिग तोड़ लेते थे, उन बाइक को ढकेलते हुए कुछ दूर तक ले जाते थे। फिर गैंग के सदस्य वहां से बाइक स्टार्ट कर फरार हो जाते थे। अगर गाड़ी मालिक नाबालिग को बाइक उठाते पकड़ लेता था तो गैंग के सदस्य वहां पहुंचकर कम उम्र होने का हवाला देकर उन्हें छुड़ाने का काम करते थे।

दूसरा केस: घर में छिपा देते थे चोरी की बाइक

एक जून को चौक कोतवाली पुलिस ने बच्चों से बाइक चोरी करवाने वाले तीन ऑटोलिफ्टर का गिरफ्तार किया था। सटीक सूचना पर पुलिस ने सआदतगंज थानाक्षेत्र के मोहल्ला करीमगंज निवासी मोहम्मद सूफियान (गैंग लीडर) उसके साथी मोहम्मद आसिफ उर्फ मतीन अहमद और मोहम्मद सोहेल को धर दबोचा था। गैंग लीडर की निशानदेही पर पुलिस ने नाबालिगों के घर में छुपाई गई चोरी की बाइक बरामद की थी। इसके अलावा पुलिस ने तीन नाबालिग को गिरफ्तार किया था।

पुलिस के मुताबिक, गैंग लीडर मॉडल शॉप समेत सार्वजनिक स्थानों की रेकी करता था। फिर नाबालिगों को भेज बाइक का लॉक तोड़वा देता था। उसके बाद सूफियान और उसके साथी बाइक लेकर भाग जाते थे।

तीसरा केस: मंहगे शौक पूरा करने के लिए बना लुटेरा

बीती आठ जून को मड़ियांव थाना पुलिस ने एक गिरोह का पर्दाफाश किया था। इस गैंग का लीडर एक नाबालिग निकला था। गैंरग के सदस्य रेकी कर सड़क पर चलने वाली पब्लिक का मोबाइल और चेन छीनकर फरार हो जाते हैं। पुलिस ने गैंग के सरगना समेत पांच लोगों को अरेस्ट किया था।

असल में गैंग लीडर किराए पर बाइक देकर सदस्यों से लूट और चेन स्नेचिंग की वारदात को अंजाम दिलाता था। पड़ताल में पता चला कि आरोपित साथियों द्वारा लूटकर लाए गए माल को कम दाम में खरीद लेता था। फिर उन्हें ऊंचे दाम में बेच देता था। मंहगे शौक पूरा करने के लिए नाबालिग लुटेरा बन गया।

एनसीबी के आंकड़े बयां कर रहे हकीकत

एनसीबी (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) के मुताबिक, देश में हर साल अमूमन 34 हजार नाबालिग संगीन आरोप में अरेस्ट हो रहे हैं। इनमें करीब 2000 नाबालिग लड़कियां भी शामिल हैं। जबकि 29 हजार नाबालिगों पर आइपीसी यानि भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत कार्रवाई की गई। हालांकि, पांच हजार नाबालिग स्पेशल एंड लोकल लॉ में शामिल किए गए।

आश्चर्य कि बात यह है कि इन संगीन आरोप में अरेस्ट किए गए बच्चों की उम्र 16 से 18 साल की है। तो वहीं इनका औसत करीब 64 फीसदी है। देश में 12 से 16 साल तक बच्चों का औसत 34 फीसदी दर्ज किया गया है।

जरामय की जद में डूब रहा बचपन

एक्सपर्ट के अनुसार, जरायम की दुनिया की नाबालिगों की भूमिका यूपी के अपराध जगत की दूसरी तस्वीर पेश कर रही है। पहले नाबालिग छिनौती, पॉकेटमारी, चोरी जैसे छोटे-मोटे अपराध को अंजाम देते थे। अब संगीन अपराधों में लिप्त हार्डकोर क्रिमिनल्स नाबालिग को बहला-फुसला कर अपना मोहरा बनाते हैं और उनकी मासूमियत का इस्तेमाल करते हैं। आलम यह है कि कम उम्र के बच्चे हथियारों के साथ दूसरे गैंग का खतमा करने से भी नहीं डरते हैं।

आइपीएस अधिकारी रमेश भारतीय बताते हैं कि, पुलिस नाबालिग से साथ कभी सख्ती से पेश नहीं आती है। संवैधानिक तौर पर नाबालिग को सुधार गृह भेजा जाता है। भविष्य में वह कोई संगीन अपराध न करें। खासतौर पर लखनऊ, कानपुर, प्रयागराज, गाजियाबाद, मेरठ, मुज्जफरनगर, बागपत, बरेली, सुल्तानपुर, मिर्जापुर, गोरखपुर समेत कई जिले ऐसे हैं। जहां हार्डकोर क्रिमिनल्स के साथ नाबालिगों की बड़ी संख्या में तार जुड़े हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी के गिरोह में लगभग 500 से ज्यादा नाबालिग शामिल हैं।

दिशा से भटक रहे नाबालिग

उर्दू जुबां के मशहूर शायर प्रोफेसर वसीम बरेलवी साहब का कहना है कि अपराध में नाबालिगों की भूमिका एक सामजिक समस्या है। इन्हें देखकर ऐसे लगता है कि समाज के मूल्यों में कहीं न कहीं कमी आ रही है। नाबालिग अपनी दिशा से भटक रहे हैं, इस वजह से वह गलत रास्ते पर चल रहे हैं। गलत तालीम समाजिक मूल्यों की कमी के चलते वह अच्छे-बुरे की पहचान नहीं कर पा रहे हैं। लिहाजा नाबालिग जाने-अनजाने में जरामय के रास्ते को चुनकर इस गंदगी में प्रवेश कर रहे हैं।

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