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नक्सलियों की लेवी वसूली पर अंकुश लगाना आसान नहीं

नक्सलियों की लेवी वसूली पर अंकुश लगाना आसान नहीं

रांची। नक्सलियों की लेवी वसूली पर अंकुश लगाना आसान नहीं है। भले ही शीर्ष माओवादी अरविंद के हृदयाघात से मौत से और हाल में बड़े नक्सलियों की गिरफ्तारी से प्रसाशन चैन की सांस ले रहा हो, पर नक्सल प्रभावित गांवों कस्बों की और जिलों में उनका खौफ अभी भी कायम है। उनके एक इशारे पर लेवी वसूली का काम बखूबी अंजाम दे दिया जाता है। आज भी ज्यादतर जगहों पर नक्सलियों के लेवी के फरमान की अवहेलना करना किसी के बस की बात नहीं है। इस मामले में सबसे मुख्य बात यह है कि लेवी देने वाले भी अपनी जान माल के बचाव के लिये कभी भी सामने आकर इसका विरोध नहीं करते हैं। शायद ही कभी नक्सलियों के द्वारा लेवी मांगने की शिकायत दर्ज होती है। यही पुलिस की विफलता का कारण है। अगर पुलिस को लेवी की शिकायत की जाये तो लेवी वसूली का धंधा बंद हो सकता है।

नक्सलियों की लेवी वसूली पर अंकुश लगाना आसान नहीं

बता दें कि लेवी के मामले में हत्या होने पर या नक्सलियों द्वारा धमकी देने पर ही इस बात का खुलासा होता है कि लेवी की मांगी गयी थी। नक्सालियों की आमदनी का मुख्य स्त्रोत लेवी ही है और लेवी देने वालों में छोटे व्यवसायियों, ठेकेदारों से लेकर बड़े उद्योपति भी शामिल रहते हैं। लेवी के कारण नक्सलियों ने कई खतरनाक घटनाओं को अंजाम दिया है। झारखंड पुलिस के रिकॉर्ड के अनुसार 2011 में नक्सलियों ने लेवी न देने पर या लेवी के लिये भय का माहौल बनाने के लिये 145 घटनाओं को अंजाम दिया। इसमें हत्या, आगजनी जैसी घटनायें ज्यादा थीं | वाहन जलाने से लेकर ठेकेदारों, मजदूरों के साथ मारपीट और प्रतिरोध करने वालों की हत्या प्रमुख थीं।

वहीं बेशक हाल की घटनाओं में नक्सली वारदातों में कुछ कमी आयी है, पर लेवी वसूली पर नक्सलियों की पकड़ कभी भी कम नहीं हुयी है। यही कारण है कि 2017 में अक्टूबर तक 87 नक्सली वारदात सिर्फ लेवी वसूली को लेकर ही हुयी हैं। 2001 से लेकर 2006 तक लेवी वसूली को लेकर पुलिस के अनुसार नक्सली वारदातों का आंकड़ा 50 से कम है। जैसे 2001 में 27 फिर 2002 में भी 27, 2003 में 16, 2004 में 19, 2005 में 17, और 2006 में एकाएक बढकर 47 घटनाओं तक पहुंचना ये दर्शाता है कि पहले लेवी वसूली को लेकर नक्सली घटनायें कम हो रहीं थी, पर इन मामलों के जानकारों का कहना है कि ऐसा नहीं था कि, 2006 से पहले लेवी वसूली नहीं हो रही थी।

हकीकत में तो 2006 तक नक्सलियों द्वारा लेवी वसूली का काम और भी बिना किसी प्रतिरोध के होता था, तब इसके खिलाफ प्रतिरोध न के बराबर था, इस कारण से नक्सलियों ने लेवी के लिये कम घटनाओं को अंजाम दिया। 2006 के बाद लेवी वसूली पर नक्सलियों ने ज्यादा ध्यान केंद्रित किया और हर साल 50 से ज्यादा घटनाओं का अंजाम दिया। वर्ष 2007 में 71, 2008 में 88, 2009 में 52, 2010 में 132, 2011 में 145, 2012 में 120, 2013 में 117, 2014 में 77, 2015 में 96, 2016 में 91 2017 में 87और वर्ष 2018 में 10 वारदातों को नक्सलियों ने अंजाम दिया। कुछ घटनाओ में नक्सली पकड़े भी गए।

साथ ही पुलिस का कहना है कि ये संख्या केवल लेवी के लिये किये गये घटनाओं की है, न कि किसी और नक्सली वारदातों की। स्पष्ट है कि नक्सली खून-खराबा करने के बजाय भयादोहन कर अपना वर्चस्व कायम रखे हुये हैं। यही कारण है कि नक्सली घटनायें भले हाल के सालों में कम हुयी हों, पर लेवी वसूली अनवरत चल रहा है, नक्स‍ली मालामाल हो रहे हैं। बड़े नक्सलियों के बच्चे अच्छे स्कूलों और बड़े-बड़े संस्थानों में पढ़ते हैं।

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