नई दिल्ली। नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा (Maa Durga) के रूप ब्रह्मचारिणी (Brahmacharini) की पूजा की जाती है। मान्यता के अनुसार इन्हें तप की देवी कहा जाता है। क्योंकि इन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। वह सालों तक भूखे प्यासे रहकर शिव को प्राप्त करने के लिए इच्छा पर अडिग रहीं। इसीलिए इन्हें तपश्चारिणी के नाम से भी जाना जाता है। ब्रह्मचारिणी या तपश्चारिणी माता का यही रूप कठोर परिश्रम की सीख देता है, कि किसी भी चीज़ को पाने के लिए तप करना चाहिए। बिना कठिन तप के कुछ भी प्राप्त नहीं हो सकता।
जानिए ब्रह्मचारिणी माता की कहानी
बता दें कि माता ब्रह्मचारिणी पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। देवर्षि नारद जी के कहने पर उन्होंने भगवान शंकर की पत्नी बनने के लिए तपस्या की। इन्हें ब्रह्मा जी ने मन चाहा वरदान भी दिया। इसी तपस्या की वजह से इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। इसके अलावा मान्यता है कि माता के इस रूप की पूजा करने से मन स्थिर रहता है और इच्छाएं पूरी होती हैं।
माता ब्रह्मचारिणी को ऐसे पहचानें
वहीं मां दुर्गा के दूसरे रूप ब्रह्मचारिणी माता के एक हाथ में जप की माला और दूसरे में कमंडल रहता है। वह किसी वाहन पर सवार नहीं होती बल्कि पैदल धरती पर खड़ी रहती हैं। सिर पर मूकुट के अलावा इनका श्रृंगार कमल के फूलों से होता है. हाथों के कंगन, गले का हार, कानों के कुंडल और बाजूबंद सभी कुछ कमल के फूलों का होता है.