नई दिल्ली। केन्द्र ने उच्चतम न्यायलय से कहा है कि चूंकि निजता के कई आयाम हैं इसलिए इसे मूलभूत अधिकार के तौर पर नहीं देखा जा सकता अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने प्रधान न्यायधीश जे ए खेहर की अध्यक्षता वाली नौ जजों की पीठ के समक्ष दलीले पेश करते हुए कहा कि निजता कोई मूलभूत अधिकार नहीं है। वेणुगोपाल ने पीठ से कहा निजता का कोई मूलभूत अधिकार नहीं है और यदि इसे मूलभूत अधिकार मान भी लिया जाए तो इसे कई आयाम हैं हर आयाम को मूलभूत अधिकार नहीं माना जा सकता। सूचना संबंधी निजता का अधिकार नहीं माना जा सकता और इसे मूलभूत अधिका भी नहीं माना जा सकता।
निजता का मूलभूत अधिकार है या नहीं यह मुद्दा वर्ष 2015 में एक वृहद पीठ के समक्ष भेजा गया था इससे पहले केन्द्र ने उच्चतम न्यायल. के वर्ष 1950 और 1962 के दो फैसलों को रेखांकित किया था जिनमें कहा गया था कि यह मूलभूत अधिकार नहीं है।
उन्होंने जवाब में कहा कि आम कानूनी अधिकार दीवानी मुकदमा दायर करके लागू किया जा सकता है और यदि इसे मूलभूत अधिकार माना जाता है तो अदालत इसे किसी अन्य रिट की तरह लागू कर सकती है।
गैर-भाजपा शासित राज्यों- कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, पंजाब और पुडुचेरी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कल कहा था कि ये राज्य इस दावे का समर्थन करते हैं कि प्रौद्योगिकी की प्रगति के इस दौर में निजता के अधिकार को मूलभूत अधिकार के तौर पर देखा जाना चाहिए।
याचिकाओं में दावा किया गया था कि आधार योजना की अनिवार्यता के तहत बायोमैट्रिक जानकारी एकत्र एंव साझा किया जाना निजता के मूलभूत अधिकार कास हनन है।