आदित्य मिश्र, लखनऊ: कांवड़ यात्रा में गंगाजल भरकर महादेव का जलाभिषेक करने की परंपरा बड़ी पुरानी हैं। अक्सर सड़क पर कांवड़िए महादेव का ध्यान करते हुए जाते दिखते हैं। इसके पौराणिक महत्व के बारे में आचार्य राजेंद्र तिवारी जी ने विस्तृत जानकारी और कथा बताई।
तीर्थों का जल होता है अर्पण
कांवड़िए अपने पात्र में अलग-अलग तीर्थों से गंगाजल लेकर महादेव पर अर्पण करते हैं। पहले गोमुख से जल लाया जाता था लेकिन कई बार दूरी ज्यादा होने के कारण तीर्थों से गंगाजल लाया जाता है। भगवान शंकर का जयकारा लगाते हुए कांवड़िए मंदिर की तरफ बढ़ते जाते हैं। इसे एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है। जिसमें एक पूरा समूह नाचते गाते आगे बढ़ता रहता है।
पौराणिक कथाओं में है जलाभिषेक का जिक्र
आचार्य राजेंद्र तिवारी जी ने इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले हलाहल विष निकला था। इसकी एक भी बूंद पूरी सृष्टि को नष्ट करने के लिए पर्याप्त थी। ऐसी स्थिति में भगवान शंकर ने इसे पीने का निर्णय लिया। इसके पीते ही उनका शरीर गर्मी के ताप से जलने लगा।
महादेव का कंठ भी नीला पड़ गया था, इसीलिए उन्हें नीलकंठ के नाम से जाना जाता है। महादेव की पीड़ा को कम करने के लिए देवताओं ने उन पर तीर्थों का जल अर्पित किया, इसके बाद तपन कम हो गई। तभी से अलग-अलग जगह में विराजमान महादेव के शिवलिंग पर गंगाजल से जलाभिषेक किया जाता है।
सावन का महीना है कांवड़ यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त
सावन के महीने को भगवान शंकर का मास कहा जाता है। इस दौरान सभी भक्त अलग-अलग तीर्थों से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं, प्रमुख तीर्थ प्रयागराज, काशी और हरिद्वार हैं। गंगाजल लाने के लिए कांवड़ का इस्तेमाल किया जाता है और इसे लाने वाले कांवड़िए कहलाते हैं।
महाशिवरात्रि के अवसर पर भी अब जलाभिषेक करने की परंपरा शुरू हो गई है। इस वर्ष भी 11 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन भारी संख्या में कांवड़िए महादेव का जलाभिषेक करेंगे। माघ के महीने में भी कुछ भक्त कांवड़ में जल भरकर मंदिरों तक जाते हैं।
जलाभिषेक के लिए केवल पुरुषों को है मान्यता
शास्त्र यह कहता है कि कांवड़ यात्रा महादेव का जलाभिषेक सिर्फ पुरुषों के द्वारा किया जाना चाहिए। आचार्य जी ने बताया कि इसका अपना अलग महत्व है लेकिन आज के समय में महिलाएं और लड़कियां भी कांवड़ में जल भरकर जलाभिषेक करती दिखाई देती हैं, शास्त्रों के हिसाब से यह गलत है।
पवित्र मन से ही होता है जलाभिषेक
कांवड़िए सबसे पहले तीर्थों में पहुंच कर स्नान करके साफ कपड़े पहनते हैं। इसके बाद गंगाजल पात्र में भरकर भगवान के मंदिर की ओर बढ़ते हैं। इस प्रक्रिया में भगवान की आराधना और पवित्र मन सबसे जरूरी होता है।
अगर आपका मन साफ नहीं है तो पात्र का गंगाजल भी पवित्र नहीं रह जाता है। इसीलिए सभी कांवड़ियों को ईश्वर की आराधना करते हुए पवित्र मन के साथ जलाभिषेक करना चाहिए।