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फांसी की जगह मौत की सजा के लिए विकल्प बताए केंद्र: सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली। फांसी की सजा की जगह मौत की सजा के लिए किसी दूसरे विकल्प को अपनाने की मांग करनेवाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि दूसरे देशों में क्या व्यवस्था है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से चार हफ्ते में बताने का निर्देश दिया। पिछले 6 अक्टूबर को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि मौत की सजा के लिए फांसी की सजा को हमने 1983 में सही ठहराया था। लेकिन इसके 34 साल बाद काफी कुछ बदलाव हुआ है और जो हम पहले सही ठहराते हैं बाद में वो गलत भी हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि भारत का संविधान काफी बदलाव वाला और दयालु किस्म का है।

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बता दें कि पिछले 20 सितंबर को वकील ऋषि मल्होत्रा ने याचिका दायर कर कहा है कि जीवन के मौलिक अधिकारों में सम्मान से मरने का अधिकार शामिल किया जाए। याचिका में कहा गया है कि फांसी की जगह मौत की सजा के लिए किसी दूसरे विकल्प को अपनाया जाना चाहिए। याचिका में फांसी को मौत का सबसे दर्दनाक और बर्बर तरीका बताते हुए जहर का इंजेक्शन लगाने, गोली मारने, गैस चैंबर या बिजली के झटके देने जैसी सजा देने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है फांसी से मौत में 40 मिनट तक लगते हैं जबकि गोली मारने और इलेक्ट्रिक चेयर पर केवल कुछ मिनट में जान चली जाती है।

वहीं मल्होत्रा ने कहा है कि लॉ कमिशन ने भी यही कहा है कि विकासशील और विकसित देशों ने फांसी की बजाय इंजेक्शन या गोली मारने के तरीकों को अपनाया है। किसी कैदी को कम से कम दर्द और सहने का आसान मानवीय और स्वीकार्य तरीका है। लॉ कमिशन ने 1967 में 35 वीं रिपोर्ट में कहा था कि ज्यादातर देशों ने बिजली करंट, गोली मारने या गैस चैंबर को फांसी का विकल्प चुन लिया है। याचिका में मांग की गई है कि अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 354 (5) के तहत ये कहा गया है कि मौत होने तक लटकाया जाए| इसलिए इसे संविधान के जीने के अधिकार का उल्लंघन करार दिया जाना चाहिए। साथ ही सम्मानजनक तरीके से मरने को मौलिक अधिकार का दर्जा दिया जाए।

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