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शर्तों के साथ निकलेगी जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा, जानें महत्व

jagannath rathyatra 2019 शर्तों के साथ निकलेगी जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा, जानें महत्व

12 जुलाई को पूरी धूमधाम के साथ जगन्नाथ यात्रा शुरू होने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार यह रथ यात्रा केवल पुरी में ही निकाली जाएगी। यात्रा निकालने का दायरा भी सीमित किया गया है। कोरोना को देखते हुए यह फैसला लिया गया।

हिंदू धर्म के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जगन्नाथ यात्रा

चार धामों में से एक भगवान जगन्नाथ धाम हिंदू धर्म के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यहां पर भगवान विष्णु के स्वरूप भगवान कृष्ण विराजमान हैं। इनके अगल-बगल में बलराम और सुभद्रा जी हैं। जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इस रथ यात्रा में भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा जी के रथ शामिल होते हैं, जिसे देखने के लिए देश के हर कोने से श्रद्धालु आते हैं। हर साल पुरी में इस रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस यात्रा में शामिल होने तीनों लोगों के रथ की अलग-अलग खासियत है। जानिए यात्रा में शामिल होने वाले रथों के नाम और रंग।

नंदीघोष रथ

भगवान जगन्नाथ यानि कृष्ण भगवान के रथ का नाम नंदीघोष है। इसके अलावा इसको कपि ध्वज के नाम से भी जाना जाता है। इस रथ को भगवान इंद्र ने भगवान कृष्ण को उपहार स्वरुप दिया था। यह रथ लाल और सुनहरे पीले रंग का है। भगवान जगन्नाथ को पिताबंर भी कहते हैं, इसीलिए इनके रथ का रंग सुनहरा पीला होता है।

तलध्वज रथ

भगवान बलभद्र यानि बलराम के रथ का नाम तलध्वज है। हम सभी जानते हैं कि बलभद्र भगवान जगन्नाथ के भाई हैं। जो अपने शत्रुओं को खत्म करने के लिए हल का इस्तेमाल करते थे। यह रथ हरे और नीले रंग का होता है। भगवान बलभद्र को नीलाबंर भी कहते हैं, इसलिए इनके रथ का रंग नीला और हरा है।

देवदलन रथ

भगवान जगन्नाथ और बलभद्र की बहन सुभद्रा के रथ का नाम देवलन है। इसे दर्प दलन भी कहते हैं। छोटी बहन होने की वजह से इस रथ की सुरक्षा भगवान कृष्ण का सुदर्शन करता है। इस रथ का रंग लाल है।

कोरोना के कारण लगानी पड़ी थी रोक

आपको बता दें कि ओडिशा सरकार ने कुछ दिन पहले कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए केवल पुरी में ही रथ यात्रा की अनुमति दी थी। बाकी सभी जगन्नाथ मंदिरों के मंदिर परिसर में अनुष्ठान की अनुमति दी थी। परन्तु जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा के भक्तों ने इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बारीपदा, सासांग और ओडिशा के अन्य शहरों में रथ यात्रा निकालने की अनुमति मांगी थी।

क्या होती है रथ यात्रा?

जगन्नाथ पूरी के मंदिर में श्री जगन्नाथजी, बलभद्रजी और सुभद्राजी की पूजा अर्चना की जाती है। वर्तमान मंदिर का निर्माण राजा चोडगंग देव ने 12वीं शताब्दी में करवाया था। मंदिर का स्थापत्य कलिंग शैली की है। रथ यात्रा के दौरान श्री जगन्नाथजी, बलभद्रजी और सुभद्राजी अलग दृअलग रथ में बैठकर अपनी मौसी के घर, पूरी मंदिर से तीन किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर जाते हैं. वहां 8 दिन रहकर वापस पूरी मंदिर में आते हैं।

आपको बता दें कि जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आरम्भ होती है और 8 दिन बाद दशमी तिथि को श्री जगन्नाथजी, बलभद्रजी और सुभद्राजी के वापस आने के साथ ही समाप्त होती है।

 

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