लद्दाख क्षेत्र में ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का सिलसिला लगातार जारी है। ग्लेशियरों के पिघलने से केदारनाथ जैसे विनाश का खतरा बना हुआ है। यहां 1990 के बाद से अब तक ग्लेशियर कवर का 6.7% हिस्सा पिघल चुका है।
लद्दाख में तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर
लद्दाख क्षेत्र में ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का सिलसिला लगातार जारी है। ग्लेशियरों के पिघलने से केदारनाथ जैसे विनाश का खतरा बना हुआ है। यहां 1990 के बाद से अब तक ग्लेशियर कवर का 6.7% हिस्सा पिघल चुका है। ग्लेशियरों के पिघलने से झीलों के फटने का खतरा बढ़ गया है। अगर ऐसा होता है तो पानी बाढ़ का रूप ले लेगा। ग्लेशियरों के पिघलने से पैंगोंग समेत कई झीलों का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। इससे झीलें फैल रही हैं और उनके फटने का खतरा बढ़ता जा रहा है।
ग्लेशियर में हर साल आ रही 0.23% की कमी
वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लेशियरों के सिकुड़ने की दर सालाना 0.23% है। 30 वर्षों में इनमें 6.7% की कमी आई है। ग्लेशियर में हर साल 0.23% की कमी आ रही है। लद्दाख में पहले से ही पानी की कमी है। अगर, ग्लेशियर भी कम हो गए तो डर है कि पानी की किल्लत कई गुना बढ़ जाएगी। ग्लेशियरों के पिघलने से पर्यावरण और लद्दाख की अर्थव्यवस्था को भी खतरा है, जो पिछले कई दशकों से पर्यटकों पर निर्भर रही है।
4,350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है पैंगोंग झील
बता दें कि पैंगोंग झील 4,350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह दुनिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। जिसकी सुंदरता लोगों को आकर्षित करती है। लगभग 160 किमी तक फैली, पैंगोंग झील का एक तिहाई हिस्सा भारत में और अन्य दो-तिहाई चीन में स्थित है। हर साल कई सैलानी सिर्फ इसे ही देखने लद्दाख आते हैं।