किसानों के लंबे संघर्ष के आगे मोदी सरकार को आखिरकार झुकना पड़ा। किसान आंदोलन ने हर मुश्किल को पार कर एक नया इतिहास लिख दिया है। लेकिन किसानों की आज की इस खुशी की राह आसान नहीं थी।
सालभर के संघर्ष के बाद जीत गया किसान
किसानों के लंबे संघर्ष के आगे मोदी सरकार को आखिरकार झुकना पड़ा। किसान आंदोलन ने हर मुश्किल को पार कर एक नया इतिहास लिख दिया है। लंबे समय से तीन कृषि कानूनों के विरोध में बैठे किसानों ने आखिरकार संघर्ष की जंग जीत ली है। केंद्र सरकार ने किसानों की मांगों को मानते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान कर दिया है। जिसके बाद से देशभर में एक बार फिर दीपावली मनाई जा रही है। लेकिन किसानों की आज की इस खुशी की राह आसान नहीं थी। लगभग एक साल से किसान इस दिन के लिए संघर्ष कर रहा था। इस बीच किसान ने पुलिस की लाठियां खाईं, नुकीली कीलों के बीच से रास्ता बनाया।
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किसानों के संघर्ष और आत्मबल की जीत
इस एक साल में किसानों ने कई तरह के दुख झेले। कभी तप्ती गर्मी में बदन जलाया। तो कभी कड़कड़ाती ठंड का सामना किया। हालात हर महीने बदले। परिस्थितियां हर पल बदलीं, और चुनौतियां बढ़ रही थीं। लेकिन इन सब के बीच कुछ नहीं बदला तो वो था किसानों का इरादा। कुछ नहीं बदला तो वो था किसानों का संघर्ष। देश का अन्नदाता रास्ते में आती बड़ी-बड़ी चुनौतियों को पार कर गया और आज उसी संघर्ष और आत्मबल की जीत हुई।
इस पल की खुशी के लिए किया सालभर कड़ा संघर्ष
शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुबह-सुबह देश के नाम संबोधन दिया। गुरुपर्व की बधाई दी और इसके साथ ही किसानों को तोहफा देते हुए कृषि कानूनों वापस लेने का एलान कर दिया। इसके बाद से देशभर में मानों फिर से दीपावली मन रही थी। खुशी की तमाम रंग किसानों के चेहरे पर साफ झलक रहे थे। कहीं मिठाईंयां बांटी जा रही थीं तो कहीं गले लगकर खुशी का इजहार किया जा रहा था। ऐसा लग रहा था मानों लंबी समय से चल रही एक जंग पूरे देश ने जीत ली है।
व्यर्थ नहीं गया किसानों का बलिदान
इस पल की खुशी के लिए किसानों को एक साल का लंबा संघर्ष करना पड़ा है। कई किसानों को दिल्ली के बॉर्डर पर जान गंवानी पड़ी है। लाखों किसानों को सालभर अपने परिवार से दूर रहना पड़ा है। पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं हैं। ट्रॉले में रात गुजारनी पड़ी है और भी बहुत कुछ करना पड़ा है। किसानों की इस एक दिन खुशी को अगर आप महसूस करना चाहते हैं तो आपको किसानों के पिछले एक साल के हर दर्द को महसूस करना पड़ेगा। उस तप्ती गर्मी को महसूस करना पड़ेगा जिसमें किसान सड़कों पर बैठकर अपने हक की लड़ाई लड़ रहे थे। उस कड़ाके की ठंड को महसूस करना पड़ेगा जिसके वार से बचने के लिए किसानों के पास कोई हथियार नहीं थे। लेकिन उसके बाद भी किसान दिल्ली बॉर्डर पर डटे रहे।