वैसे तो प्रेम और उमंग के सबसे बड़े त्यौहार होली से हर कोई भलि भाँति परिचित है। इस रंगों के त्यौहार की तो बात ही निराली है हर कोई अपनी धुन में मगन रहता है ।
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इस दिन सभी लोग एक दूसरे से गीले शिकवे मिटाकर होली के त्यौहार का आनंद लेते है और एक दूसरे को रंगो में सराबोर कर देते है।
अब अगर बात होली की हो और श्री कृष्णा की नगरी मथुरा का नाम न आये ऐसा कैसे हो सकता है । मथुरा में तो होली का सबसे अलग अंदाज देखने को मिलता है। यहां पर होली की शुरुवात बहुत पहले यानि बसंत पंचमी के दिन से ही होने लगती है । ऐसा मानना है कि जिसने भी एक बार श्री कृष्णा के सानिध्य में होली खेल ली वह बार बार मथुरा में होली मनाने को आतुर रहता है।
बात रंगों की चले और श्री कृष्ण जी का नाम ना लिया जाए ,तो बात अधूरी समझिये। क्योंकि भगवान कृष्ण का जीवन हर रंग से भरा हुआ है । जैसे उनका साँवला वदन और श्वेत निर्मल मन, उनका रंगीन मोरपंख आदि ।
राधा और श्री कृष्ण के प्रेम से शुरू हुई परंपरा
मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण रंग का सावला और राधा का रंग गोरा होने के कारण वह अपनी मां से लगातार शिकायत करते रहते थे। श्री कृष्ण अपनी माता से कहते थे कि मां मैं इतना काला हूं और राधा कितनी गोरी है यह सुनकर माता यशोधा हसंती थी। जिसके बाद उन्होंने श्रीकृष्ण को सुझाव देते हुए कहा कि वह राधा को जिस रंग में देखना चाहते है उसके मुंह पर वही रंग लगा दें। जिसके बाद श्री कृष्ण अपने दोस्तों के साथ राधा और उनकी सहेलियों पर रंग लगाने लगे। जिसे देख हर कोई पंसद करने लगा। उसके बाद से ही होली में रंगो को गुलाल खेलने की प्रक्रिया शुरू हुई। जिसे होली का नाम दिया गया।
होली का इतिहास
सबसे पहले होली की शुरुवात श्री कृष्णा नगरी मथुरा और उनके धाम वृंन्दावन से होती है और इसकी शुरुवात फरवरी यानि बसन्त पंचमी के दिन से होती है । यहां 45 दिन तक यह उत्सव उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस उत्सव के पहले दिन श्री बांकेबिहारी अपने भक्तों के साथ होली खलते है । ठाकुर जी को गुलाल लगाते हुए भक्तों पर भी उसे उड़ाया जाता है। केशर मिश्रित सूजी का हलुआ का प्रसाद और ठाकुर जी को पीली रंग की पोशाक पहनाई जाती है।
यहाँ की होली सबसे अनोखी होती है। यहाँ पर रंग गुलाल के आलावा और भी तरीको से होली मनाई जाती है। जैसे लड्डू होली लट्ठमार होली और भी भिन्न भिन्न तरह मनाई जाती है । लड्डू होली में सबसे पहले लड्डू का भोग श्री राधा रानी और श्री कृष्णा को लगया जाता है । उसके बाद सभी भक्तो में लड्डू का प्रसाद लुटाया जाता है । यहाँ की लट्ठमार होली सबसे ज्सादा प्रसिद्ध और विचित्र है। इस होली में महिलाये पुरषों पर लाठी डंडे से वार करती है और पुरुष सिर पर ढाल रखकर इसका बचाव करते है
वृंदावन से यानी श्री बाँके बिहारी जी मंदिर से जहाँ कृष्ण कन्हैया सबसे पहले अपने भक्तों के संग होली खेलते है । चूँकि कान्हा ने मथुरा में जन्म लिया और वृंदावन में अपनी अदभुत लीलाएँ की हैं । इसलिए इन दोनो जगह होली खास महत्व रखती है। अदबुध नजारा होता है जब प्रभु श्री कृष्णा अपने रंग में सभी भक्तो को रंग देते है । पूरा वातावरण सकारात्मकता प्रेम, हर्ष,व् उल्लास से भर जाता है और सिर्फ एक ही जयघोष सुनाई पड़ता है जय जय श्री राधे ।
यहां होने वाली विधवा होली सबसे अलग ही हटकर है। जो पूरी दुनिया की सोच को बदलने का काम करती ये होली उन लोगों के लिए वरदान की तरह जो लोग समाज से तृस्कृत है और लोग इनको अलग दृस्टि से देखते है विधवा होली की शुरुवात 2016 से हुई उन चेहरों पे भी खुशी और उत्साह देखने को मिलता है जो लोग अपने जीवन से हताश और परेशान है । साल का यह एक दिन सभी विधवाओं के लिए बहुत खास होता है ।
यह उत्सव होली के पाचवें दिन मनाया जाता है । इस त्यौहार को होली का आखरी उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। 45 दिनों तक चलने वाला होली का त्यौहार रंग पंचमी दिन समाप्त होता है। पहले के समय में होली का त्योहार कई दिनों तक मनाया जाता था और रंगपंचमी होली का अंतिम दिन होता था और उसके बाद कोई रंग नहीं खेलता था। ये परंपरा भारत की कई जगहों पर अब भी बरकरार है।