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गोरखपुर में होली पर नानाजी देशमुख ने डाली थी नई परंपरा, आप भी जान लें, गजब का है इतिहास

गोरखपुर में होली पर नानाजी देशमुख ने डाली थी ये परंपरा, आप भी जान लें, गजब का है इतिहास

गोरखपुर: भगवान शिव के प्रतीक बाबा गोरखनाथ की नगरी में होली का नजारा मदमस्त कर देने वाला होता है। होली पर गोरखपुरवासी मस्ती करते हुए नजर आते हैं। इस दौरान एक शोभायात्रा का आयोजन किया जाता है, जिसमें स्वयं गोरखनाथ मंदिर के मुख्य पीठाधीश्वर इसमें भाग लेते हैं।

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वहीं बड़ी संख्या में स्थानीय लोग और भक्त इसमें कार्यक्रम में भाग लेते हैं। गोरखनाथ मंदिर के महंत शोभायात्रा में शामिल रथ पर सवार होते हैं, उनके आगे पीछे बड़ी संख्या में लोग होली खेलते हुए दिखाई देते हैं।

रंगों में सराबोर हो जाती है गोरखनाथ की नगरी

गोरखपुर में हवा में उड़ते अबीर-गुलाल का दृश्य देखते ही बनता है। पूरी की पूरी सड़क रंगों से सराबोर हो जाती है। ऐसा लगता है कि प्रकृति स्वयं इस त्यौहार का स्वागत कर रही है। वहीं आसमान का रंग भी नीले की जगह रंगीला हो जाता है।

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इस होली में 1980 से गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर भाग ले रहे हैं। इस बार का नजारा ज्यादा मजेदार होगा क्योंकि इस बार गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री के रूप में होली में शामिल हो सकते हैं। इससे पहले भी वो मुख्यमंत्री के रूप में यहां के लोगों के साथ होली खेल चुके हैं। सीएम योगी को लेकर गोरखपुरवासियों में वैसे भी बहुत उत्साह रहता है। लोग उन्हें प्यार करते हैं और एक संत के रूप में उनको इज्जत देते हैं।

नानाजी देशमुख ने शुरू की थी नई परंपरा

गौरतलब है कि गोरखपुर में होली के नए रूप की शुरुआत नानाजी देशमुख ने की थी। उन्होंने कीचड़ और कपड़े फाड़ने के साथ-साथ मुंह को काला कर देने वाली परंपरा को बंद करवाया था। उन्होंने लोगों से आह्वान किया था कि वो इस तरीके से होली न खेलें।

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उन्होंने लोगों से कहा था कि ये होली खेलने का सभ्य तरीका नहीं है। इस गलत परंपरा को बंद करवाने के लिए उन्होंने एक नायाब तरीका निकाला था जिसके तहत 1940 में होली पर निकलने वाली भगवान नरसिंह की शोभायात्रा में हाथियों को लगवा दिया था। उन्होंने महावत से कह दिया कि जब भी कोई काले या हरे रंग का ड्रम दिखे तो हाथी के पैर से गिरवा दें।

महावत से कहकर गिरवा दिया काला रंग

नानाजी देशमुख के आदेश के बाद होली के दिन जहां-जहां महावत को सड़क पर काले या हरे रंग का ड्रम दिखा उसने उसको हाथी के पैर से गिरवा दिया।

ये काम करीब चार साल तक चलता रहा और धीरे-धीरे लोग कीचड़ और काले रंग को भूलने लगे और इस तरीके से उन्होंने रंगभरी होली खेलने की नई परंपरा की शुरूआत की। तब से लेकर आज तक नानाजी देशमुख की शुरू की गई परंपरा अब भी चल रही है।

होली के दिन प्रतिबंधित रहता है कपड़े फाड़ना

होली के दिन गोरखपुर में नरसिंह भगवान की एक शोभायात्रा निकाली जाती है। इस शोभायात्रा की अगुवाई गोरखनाथ पीठ के पीठाधीश्वर करते हैं। होली के दिन कीचड़ और काले रंग के अलावा कपड़े फाड़ना प्रतिबंधित रहता है।

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इस दिन लोग अपने घर के सामने खड़े होकर इस शोभायात्रा पर फूल और अबीर-गुलाल बरसाते हैं और शोभायात्रा का स्वागत करते हैं। वहीं होली में यहां की औरतें शोभायात्रा में शामिल लोगों के लिए पानी और गुझिये का इंतजाम करती हैं और खूब जमकर होली खेलती है। इस दौरान कहीं भी असभ्यता के दर्शन नहीं होते। नानाजी देशमुख के बताए रास्ते पर गोरखपुरवासी आज भी चल रहे हैं।

मुस्लिम समुदाय भी होता है शरीक

गोरखपुर के विभिन्न सड़कों से निकलने वाली ये शोभायात्रा करीब पांच किलोमीटर लंबी होती है। ये यात्रा घंटाघर स्थित चौराहे से शुरू होती है और जाफराबाजार से लेकर घासीकटरा, आर्यनगर और बक्शीपुर, रेतीचौक होते हुए घंटाघर पर जाकर समाप्त हो जाती है।

इस दौरान शोभायात्रा के मार्ग में बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी भी पड़ती है। जो इसको बड़े प्यार से निहारा करती है और कहीं कहीं इस पर फूलों की बारिश भी करती है। इतिहास से लेकर आज तक गोरखपुर में होली के दिन कहीं भी कोई दंगे नहीं हुए हैं। ये यहां की महान परंपरा को भी दर्शाता है।

 

 

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