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मैसूर युद्ध में अंग्रेजों की दोहरी नीति ने मराठा,निजाम और अंग्रेजों को ला दिया था एक मंच पर

पहली बार दक्षिण में मुगल शासक ने अंग्रेजों से युद्द में सफलता प्राप्त की थी मैसूर युद्ध में अंग्रेजों की दोहरी नीति ने मराठा,निजाम और अंग्रेजों को ला दिया था एक मंच पर

मैसूर का युद्ध हैदर को अली और टीपू सुल्तान द्वारा अंग्रेजों से लड़ा गया था। जिसमें निजाम और मराठा का कभी अंग्रेजों की तरफ झुकाव देखने को मिलता है। तो कभी हैदर की और लेकिन स्पष्ट है कि हैदर से निजाम,अंग्रेज और मराठा तीनों ईर्ष्या करते थे।बताते चलें कि मैसूर का प्रथम युद्ध हैदर बनाम निजाम, मराठा,अंग्रेज था।गौरतलब है कि 1612 ई0 में ओडियार नाम के राजा ने मैसूर राज्य की स्थापना की थी। बाद में मुगल शासक 1761 ई.में हैदर अली ने मैसूर में हिन्दू शासक के ऊपर नियंत्रण स्थापित कर लिया।

 

पहली बार दक्षिण में मुगल शासक ने अंग्रेजों से युद्द में सफलता प्राप्त की थी मैसूर युद्ध में अंग्रेजों की दोहरी नीति ने मराठा,निजाम और अंग्रेजों को ला दिया था एक मंच पर

मैसूर राज्य में दो प्रमुख शासक हुए जिनके नाम क्रमशःहैदर अली एवं टीपू सुल्तान हैं

समय बीतने के साथ मैसूर राज्य में दो प्रमुख शासक हुए जिनके नाम क्रमशःहैदर अली एवं टीपू सुल्तान हैं।मालूम हो कि टीपू सुल्तान हैदर अली के पुत्र थे।इन दोनों बाप-बेटे ने अंग्रेजों से जंग को लंबे समय तक लड़ा।टीपू,हैदर अली दक्षिण भारत का पहला शासक था जिसने अंग्रेजों को पराजित करने में सफलता प्राप्त हुई थी। ज्ञात हो कि दक्षिण में मैसूर राज्य और अंग्रेजों के बीच कुल चार युद्ध हुए। 32 वर्षों (1767 से 1799 ई.) के मध्य में ये युद्ध छेड़े गए थे।

हैदर अली पढ़ा लिखा नही होने के बावजूद भी हैदर की सैनिक एवं राजनीतिक योग्यता अद्भुत थी

गौरतलब है कि हैदर अली पढ़ा लिखा नही होने के बावजूद भी हैदर की सैनिक एवं राजनीतिक योग्यता अद्भुत थी। मालूम हो कि हैदर कुशल कूटनीतिज्ञ के साथ समन्वयकारी नीति काज्ञाता था।हम आपको उसके फ़्रांसीसियों से अच्छे सम्बन्ध थे जो कि उसकी कुशल नेतृत्व क्षमता और समन्वय नीति का साक्ष्य है। हैदर अली की योग्यता, कूटनीतिक सूझबूझ एवं सैनिक कुशलता से मराठे, निज़ाम एवं अंग्रेज ईर्ष्या करते थे।मैसूर राज्य और अंग्रजों के बीच हए युद्धों की एक खास विशेषता यह थी कि इसमें ‘मराठे और हैदराबाद के निजाम’ अंग्रेजों द्वारा बनाये गये त्रिगुट के भाग थे।

अप्रैल, 1967 में निजाम, मराठा और अंग्रेज़ों की सेना ने मिलकर हैदर अली पर आक्रमण किया

प्रथम युद्ध-अप्रैल, 1967 में निजाम, मराठा और अंग्रेज़ों की सेना ने मिलकर हैदर अली पर आक्रमण किया। परन्तु कुछ समय बाद ही निज़ाम हैदर अली की ओर आ गया। अब यह युद्ध अंग्रेज़ों और हैदर अली के मध्य लड़ा गया। अंग्रेज़ों की प्रारम्भिक सफलता के कारण निज़ाम दुबारा अंग्रेज़ों की ओर चला गया। हैदर अली ने उत्साहपूर्वक लड़ते हुए मार्च, 1768 में मंगलौर और बम्बई पर दुबारा अधिकार कर लिया। मार्च, 1769 ई. में उसकी सेनायें मद्रास तक जा पहुंची। अंग्रेज़ों ने विवशता में हैदर अली की शर्तों पर 4 अप्रैल, 1769 को मद्रास की संधि की।

मैसूर युद्ध का द्वितीय-

अंग्रेज़ों ने 1769 ई. की संधि की शर्तो के अनुसार आचरण न किया और 1770 ई. में हैदर-अली को, समझौते के अनुसार उस समय सहायता न दी जब मराठों ने उस पर आक्रमण किया। अंग्रेज़ों के इस विश्वासघात से हैदर-अली को अत्यधिक क्षोभ हुआ था। उसका क्रोध उस समय और भी बढ़ गया, जब अंग्रेज़ों ने हैदर-अली की राज्य सीमाओं के अंतर्गत माही की फ्रांसीसी बस्तीपर आक्रमण कर अधिकार कर लिया। उसने मराठा और निज़ाम के साथ 1780 ई.में त्रिपक्षीय संधि कर ली जिससे द्वितीय मैसूर-युद्ध प्रारंभ हुआ।

मैसूर युद्ध तृतीय-

तीसरा युद्ध 1790 ई. में शुरू हुआ था। जब गर्वनर-जनरल लॉर्ड कॉर्नवॉलिस ने टीपू का नाम कंपनी के मित्रों की सूची से हटा दिया था। तृतीय मैसूर युद्ध का कारण भी अंग्रेज़ों की दोहरी नीति थी। 1769 ई. में हैदर-अली और 1784 ई. में टीपू सुल्तान के साथ की गयी संधि की शर्तों के विरुद्ध अंग्रेज़ों ने 1788 ई. में निज़ाम को इस आशय का पत्र लिखा कि हम लोग टीपू सुल्तान से उन भूभागों को छीन लेने में आपकी सहायता करेंगे जो निज़ाम के राज्य के अंग रहे है। अंग्रेज़ों की इस विश्वासघाती नीति को देखकर टीपू सुल्तान के मन में उनके शत्रुतापूर्ण अभिप्राय के संबंध में कोई संशय न रहा। अत: 1789 ई. में अचानक ट्रावनकोर (त्रिवंकुर) पर आक्रमण कर दिया, और उस भू-भाग को तहस-नहस कर डाला।

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मैसूर युद्ध चतुर्थ-

चौथा युद्ध गर्वनर-जनरल लॉर्ड मॉर्निंग्टन (बाद में वेलेज़ली) ने इस बहाने से शुरू किया कि टीपू को फ़्रांसीसियों से सहायता मिल रही है।अल्पकालिक, परन्तु भयानक सिद्ध हुआ। इसका कारण टीपू सुल्तान द्वारा अंग्रेज़ों के आश्रित बन जाने के संधि प्रस्ताव को अस्वीकार कर देना थ।तत्कालीन गवर्नर- जनरल लॉर्ड वेलेज़ली को टीपू की ब्रिटिश- विरोधी गतिविधियों का पूर्ण विश्वास हो गया था।

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उसे पता चला कि 1792 ई. की पराजय के उपरांत टीपू ने फ़्रांस, कुस्तुनतुनिया और अफ़ग़ानिस्तान के शासकों के साथ इस अभ्रिप्राय से संधि का प्रयास किया था कि भारत से अंग्रेज़ों को निकाल दिया जाय।प्रथम मैसूर युद्ध 1767 से 1769 ई. तक लड़ा गया। 1761 के आस-पास एक शाही मुसलमान हैदर अली, जो पहले से ही प्रधान सेनापति था, मैसूर राज्य का स्वयंभु शासक बन गया और अपने प्रभुत्व क्षेत्र का विस्तार करने लगा। प्रथम मैसूर युद्ध 1667 से 1669 ई. तक हुआ,जिसका कारण मद्रास में अंग्रेज़ों की आक्रामक नीतियां थीं।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने हैदर अली के विरुद्ध उत्तरी सरकारों के समर्पण के लिए हैदराबाद के निज़ाम से गठबंधन कर लिया

मालूम हो कि 1766 ई. में जब हैदर अली मराठों से एक युद्ध में उलझा था।मद्रास के अंग्रेज़ अधिकारियों ने निज़ाम की सेवा में एक ब्रिटिश सैनिक टुकड़ी भेज दी थी, और ईस्ट इंडिया कंपनी ने हैदर अली के विरुद्ध उत्तरी सरकारों के समर्पण के लिए हैदराबाद के निज़ाम से गठबंधन कर लिया। जिसकी सहायता से निज़ाम ने मैसूर के भू-भागों पर आक्रमण कर दिया था।

आक्रमण कर दिया।ज्ञातब्य है कि 1768 ई. में निज़ाम युद्ध से हट गया

अंग्रेज़ों की इस अकारण शत्रुता से हैदर-अली को बड़ा क्रोध आया। उसने मराठों से संधि कर ली। अस्थिर बुद्धि निज़ाम को अपनी ओर मिला लिया और निज़ाम की सहायता से कर्नाटक पर, जो उस समय अंग्रेज़ों के नियंत्रण में था।आक्रमण कर दिया।ज्ञातब्य है कि 1768 ई. में निज़ाम युद्ध से हट गया और उसने अकेले हैदर अली को अंग्रेज़ों का सामना करने के लिए छोड़ दिया। इस प्रकार प्रथम मैसूर युद्ध का सूत्रपात हुआ। यह युद्ध दो वर्षों तक चलता रहा और 1769 ई. में जब हैदर अली का अचानक धावा मद्रास के क़िले की दीवारों तक पहुंच गया। उसका अंत हुआ,मद्रास कौंसिल के सदस्य भयाकुल हो उठे और उन्होंने हैदर-अली द्वारा सुलह की शर्तें स्वीकार कर लीं।

अंग्रेजों और हैदर अली के बीच संधि की शर्तें-

संधि की शर्तों के अनुसार दोनों पक्षों ने जीते गए भू-भाग लौटा दिए और अंग्रेज़ों ने विवशता में हैदर अली की शर्तों पर 4 अप्रैल, 1769 को ‘मद्रास की संधि’ कर ली। संधि की शर्तों के अनुसार यह एक प्रतिरक्षात्मक संधि थी। दोनों पक्षों ने एक दूसरे के जीते हुए क्षेत्रों को वापस किया।परन्तु हैदर अली ने ‘करुर’ के क्षेत्र को वापस नहीं किया। अंग्रेज़ों ने हैदर अली पर किसी और के आक्रमण के समय रक्षा करने का वायदा किया।

महेश कुमार यदुवंशी

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