समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने बुधवार को विधानसभा चुनावों के रण में उतरने के लिए 325 प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी है। पार्टी द्वारा जारी गई सूची का अगर से अध्ययन किया जाए तो साफ पता चलेगा कि इस बार मुलायम सिंह यादव ने 57 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव खेला है। मुलायम सिंह यादव ने इस बार महिलाओं को आकर्षित करने के लिए 49 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया है। इसके अलावा पार्टी का वोट बैंक मानी जाने वाली यादव बिरादरी के 30 लोगों को उम्मीदवार बनाया गया है।
मुलायम सिंह यादव की ओर से जारी की गई सूची को एक संतुलित सूची कहा जाए तो गलत नहीं होगा क्योंकि इस सूची में सभी वर्गों के साथ महिलाओं पर भी ध्यान दिया है। इसके अलावा इस सूची में जिताऊ प्रत्याशियों का विशेष ध्यान रखकर टिकटों का वितरण किया है। प्रदेश के सियासी माहौल को जरा गौर से देखा जाए तो प्रदेश में सपा ने एक तरफा दांव खेलते हुए सपा और मुस्लिमों को निशाना बनाकर टिकट बांटे है। जबकि सपा से पहले बसपा मुस्लिमों को आकर्षित करने में लगी हुई थी।
बसपा के लिए परेशानी
57 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट देकर सपा ने बसपा के लिए परेशानी खड़ी कर दी है। दरअसल सपा से पहले बसपा मुस्लिमों पर चुनावी दांव खेलने की तैयारी कर रही थी। मायावती को पूरा विश्वास था कि इन चुनावों में दलितों और मुस्लिमों का गठजोड़ उन्हें सत्ता की कुर्सी दिलवा देगा। सपा के मुकाबले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की बात करें तो उसने भी मुस्लिम वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए 128 मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया है। पार्टी अध्यक्ष मायावती का दावा है कि उन्होंने सबसे ज्यादा मुसलमानों को उम्मीदवार बनाया है।
क्या कहता है मुस्लिम मतदाताओं का समीकरण
प्रदेश में मुस्लिमों की जनसंख्या 19 फीसदी के करीब है। लगभग 140 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 10 से 20 फीसदी तक है। 70 सीटों पर 20 से 30 फीसदी और 73 सीटों पर 30 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है। जाहिर है मुस्लिम मतदाता 140 सीटों पर सीधा असर डालते हैं। यही वजह है कि सियासी दलों में चुनाव के समय मुस्लिम वोटरों को अपनी ओर खींचने की स्पर्धा होती है। इतिहास का जिक्र करें तो प्रदेश में बाबरी कांड के बाद मुस्लिमों में सबसे ज्यादा सपा का साथ दिया है। साल 2002 के विधानसभा चुनाव में सपा को 54 फीसदी मुस्लिम वोट मिला था, लेकिन 2007 के विधानसभा चुनाव में यह प्रतिशत घटकर 45 रह गया।
सपा का दिया साथ
इसके बाद साल 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को सबसे बड़ी जीत मिली, लेकिन उसे मिलने वाले मुस्लिम मत का प्रतिशत घटकर 39 पर आ गया। आंकड़े पर नजर डालें तो मुस्लिमों का रुझान धीरे-धीरे बसपा की तरफ बढ़ा है। साल 2002 में बसपा को 09 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिले थे, जबकि 2007 के चुनाव में यह बढ़ कर 17 फीसदी हो गया।
इसके बाद साल 2012 के विधानसभा चुनाव में हालांकि बसपा हार गई लेकिन उसे मिलने वाला मुस्लिम वोट 17 से बढ़ कर 20 प्रतिशत हो गया। इसके अलावा मुसलमानों ने कांग्रेस के प्रति भी नरम रवैया अपनाया है। साल 2002 के चुनाव में कांग्रेस को 10 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे जो 2012 में बढ़ कर 18 फीसदी हो गया। यही वजह है कि यूपी की सियासत में मुसलमानों को अपने पक्ष में करने के लिए बसपा, सपा के साथ-साथ कांग्रेस भी कोशिश में लगी रहती है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में सपा का अगर किसी पार्टी से गठबन्धन नहीं होता है, तो शेष 78 सीटों में कुछ और मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जा सकते हैं। इसके अलावा कांग्रेस की सूची में भी मुसलमान प्रत्याशियों को अहमियत मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
आशु दास