इस्लामाबाद। 26 नवंबर 2008 की वो काली रात आज भी हर किसी के सिने में जिंदा है, जिस दिन पाकिस्तान से समुद्र के रास्ते मुंबई आए 10 आतंकवादियों ने मुंबई की सड़कों को खून से लाल कर दिया था। इन आतंकवादियों ने 166 निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारकर मुंबई में गृहयुद्ध की स्थिति उत्पन्न कर दी थी। इस हमलें में आतंकवादियों का डटकर सामन करते हुए मुंबई पुलिस के 11 अधिकारी भी शहीद हो गए थे, हालांकि इन दस में से 9 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया गया था और एक आतंकवादी अजमल कसाब को गिरफ्तार कर लिया गया था, गिरफ्तार किए गए कसाब पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई और फिर हमले के चार साल बाद साल 2012 में कसाब को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया।
कसाब ने फांसी के फंदे पर झूलने से पहले जो खुलासा किया था वो चौकाने वाला था। उसने बताया था कि वो पाकिस्तान का रहने वाला है और मुंबई में आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने आया था। कसाब ने कहा था कि वो लश्कर-ए-तैयबा के संगठन से जुडा हुआ है और उसके आका हाफिज सईद ने ही मंबई हमलों का मास्टरप्लान बनाया था। कसाब के इस खुलासे के बाद भारत सरकार ने सीधे पाकिस्तान सरकार से संपर्क साधा और हाफिज को गिरफ्तार करने के लिए कहा, लेकिन पाकिस्तान के लिए तो हाफिज उनका माईबाप है इसलिए उसने अपने माईबाप को गिरफ्तार करने से इनकार कर दिया। यहां तक कि भारत सरकार ने उसके खिलाफ सबूत भी पाकिस्तान में पेश किए, लेकिन पाकिस्तान ने कहा कि ये सबूत किसी को भी दोषी ठहराने के लिए काफी नहीं है।
हाफिज सईद कि गिरफ्तारी की मांग करते-करते भारत में सरकार बदल गई और भारत की सत्ता पर मनमोहान सरकार की जगह मोदी सरकार विराजमान हो गई। मोदी सरकार जिस दिन से बनी है उसी दिन ये ये प्रयास कर रही है कि हाफिज सईद को शिकंजे में कैसे लिया जाए। एक तरफ भारत सरकार हाफिज को शिकंजे में लेने का प्लान बना रही है तो वहीं पाकिस्तान में राजनीतिक पार्टी बनाने का दम रखने वाला हाफिज सईद भारत के खिलाफ जहर उगलने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा। हालांकि मोदी सरकार ने हाफिज को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों कि सूची में शामिल करनावे के साथ बड़े पैमाने पर पाकिस्तान को भी संयुक्ता राष्ट्र संघ और दुनिया के हर देश के सामने आतंकवादी देश कहने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। भारत के इसी प्रयास के चलते अमेरिका ने हाफिज पर एक करोड़ डॉलर का इनाम रख दिया।
हाफिज के कारण दुनियाभर में हो रही पाकिस्तान की किरकिरी से वहां की सरकार ने दुनिया को दिखाने के लिए हाफिज के खिलाफ कदम उठाया और लाहौर हाईकोर्ट में उसके खिलाफ केस दायर कर दिया। हाईकोर्ट में केस दायर होने के बाद जनवरी 2017 में कोर्ट ने हाफिज सईद पर नजरबंदी लगा दी। बताया जा रहा है कि भारत द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने के बाद पाकिस्तान को ये डर सताने लगा कि भारतीय सेना उसकी सीमा में घुसकर हाफिज को मौत के घाट उतार सकती है। इसी के चलते पाकिस्तान ने दुनिया की नजरों में अच्छा बनने और हाफिज को बचाने के लिए उस पर जनवरी 2017 में नजरबंदी लगा दी।
हाफिज पर नजरबंदी लगाए जाने के बाद लाहौर हाईकोर्ट ने पाकिस्तान सरकार से कहा कि वो जल्द से जल्द हाफिज के खिलाफ सबूत जुटाए, वरना हम उसे रिहा कर देंगे। लाहौर हाईकोर्ट के इस आदेश से ये साफ हो गया कि पाकिस्तान दुनिया की नजरों में अच्छा बनने के लिए सबकी आखों में धूल झोंक रहा है। हुआ भी यहीं भारत का ये शक सही निकला और लाहौर हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए हाफिज सईद को रिह कर दिया। भारत का ये दुश्मन एक बार फिर पुलिस के चंगुल से निकल गया। बता दें कि पाकिस्तान के हाफिज सईद को रिहा करने के बाद अमेरिका ने भी दावा किया था कि हाफिज जमात-उद-दावा और लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा है, जिन संगठनों पर हमने साल 2002 में ही प्रतिबंध लगा दिया था। सईद की रिहाई के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते एक बार फिर बिगड़ गए हैं।
हाफिज कि रिहाई को लेकर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि भारत और पूरा अंतरराष्ट्रीय समुदाय नाराज है क्योंकि एक स्वघोषित और संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादी को पाकिस्तान ने रिहा कर दिया है। सईद ने बार बार भारत प्रशासित कश्मीर के मुस्लिम अलगाववादियों के लिए समर्थन दोहराया है। रिहाई के बाद भी सईद ने कश्मीर का जिक्र करते हुए कहा कि कश्मीर के लिए लड़ाई जारी रहेगी और हम पाकिस्तान की सारी अवाम को अपने साथ खड़ा करेंगे। गौरतलब है कि सईद की रिहाई पाकिस्तान की सरकार के लिए भी कोई अच्छी खबर नहीं हैं।
नजरबंदी के बावजूद हाफिज सईद की कथित चैरिटी संस्था, पाकिस्तान में कट्टरपंथी राजनीतिक पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग (एमएमएल) बना चुकी है। एमएमएल का समर्थन भी बढ़ता जा रहा है। पेशावर उप चुनावों में उसे हजारों वोट मिले, पाकिस्तान का चुनाव आयोग पार्टी का रजिस्ट्रेशन रद्द कर चुका है, लेकिन पाकिस्तान सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों और रिटायर्ड सेनाधिकारियों के मुताबिक सईद की पार्टी को पाकिस्तान की ताकतवर सेना का समर्थन प्राप्त है। हालांकि पाकिस्तान की सेना कई दशकों से राजनीति में दखल देने से इनकार करती आई है।