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मोदी की विदेश यात्राः देश पांच, सफलताएं अनेक

Modi 1 मोदी की विदेश यात्राः देश पांच, सफलताएं अनेक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब अपनी 5 दिन के विदेश यात्रा की शुरुआत की थी तो इसके मायने तलाशने की काफी कोशिश की जा रही थी। विरोधी मोदी की इस यात्रा को भी हवाई सैर कहने से नहीं कतराए। लेकिन यात्रा के अंतिम पड़ाव पर जब मोदी पांचवें देश मेक्सिको पहुंचे तो उनके खाते में ढेरों उपलब्धियां थी जो इस यात्रा के क्रम में उनके हाथ लगीं। इस यात्रा से पहले विदेश मंत्रालय की तरफ से मिले अपडेट में कहा गया था कि इस यात्रा का मुख्य मकसद ऊर्जा, पर्यावरण, रक्षा और सुरक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में हुई प्रगति का जायजा लेना और भविष्य में आपसी सहयोग की गति तेज करना है। प्रधानमंत्री मोदी अपने सरकार के गठन के बाद से ही पिछले दो वर्षों में जिस तरह अपने पड़ोसियों के साथ संबंध के बेहतर विकास को लेकर काम कर रहे हैं शायद उनकी इस यात्रा का एक पड़ाव यह भी था।

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भारत की विदेश नीति को तेज रफ्तार देने के साथ ही शेष विश्व के साथ संतुलन के साथ आगे बढ़ने की उनकी कोशिशों को इससे भरपूर बल मिला। हालांकि निवेश और तेज रफ्तार विकास एजेंडे में था लेकिन इस बार तो पूरी यात्रा में विशेष ध्यान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता, एनएसजी की सदस्यता और एमटीसीआर की सदस्यता को लेकर मित्र देशों के सहयोग पर टिका था। जानना जरूरी है कि क्या यह सब इस यात्रा से हासिल हुआ?

भारतीय विदेश नीति में लंबे समय से स्थिरता का दोर चल रहा था दो साल पहले जब प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने कामकाज संभाला तो ऐसा नहीं लगता था कि इस कार्यक्रम में कोई खास परिवर्तन होनेवाला है, शायद इसलिए मोदी के शुरुआती तूफानी दौरों की खूब आलोचना हुई। आलोचना तो मोदी के दौरे की अभी भी होती है। लेकिन देश की अपेक्षाएं नई सरकार से कुछ अधिक थीं और मोदी ने उन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए सशक्त कदम उठाया।

हालांकि मोदी के प्रयास ने देश के नागरिकों अपेक्षाओं पर शत-प्रतिशत खरा उतरने में सफलता तो नहीं हासिल की है, लेकिन कूटनीतिक सक्रियता से मिले परिणामों को अनदेखा भी नहीं किया जा सकता। इस बार प्रधानमंत्री मोदी के इस 5 दिवसीय विदेश दौरे की बात करें तो इसके दो मुख्य उद्देश्य थे। पहला आर्थिक और दूसरा सामरिक। मोदी की इस यात्रा ने अफगानिस्तान, कतर, स्विट्जरलैंड और अमेरिका के साथ भारत का जो सांस्कृतिक, आर्थिक, सुरक्षात्मक और सामरिक संयोजन किया है, उसे प्रथमदृष्टया सामरिक कूटनीति के लिहाज से लाभदायक माना जा सकता है।
अपनी यात्रा के शुरुआत में अफगानिस्तान में सलमा बांध का उद्घाटन कर पड़ोसी के साथ सांस्कृतिक जीवंतता को सार्थक करते हुए प्रधानमंत्री जब कतर पहुंचे तो वहां भारत और कतर के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। भारत और कतर ने वित्तीय खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान, धन शोधन और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने तथा गैस संपन्न् खाड़ी देश से बुनियादी ढांचे में विदेशी निवेश आकर्षित करने सहित 7 समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

स्विट्जरलैंड में पहुंचते ही मोदी ने एक ऐसी आवाज को तेज स्वर दे दिया जिसके बाद से तो दुश्मन देश भी चैन की सांस लेने में घबराने लगे शुरुआत इसी देश से हुई। न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत के शामिल किए जाने के लिए स्विटजरलैंड समर्थन को राजी हो गया। कई और मुद्दे थे जिनमें कालाधन विशेष था लेकिन उसपर कुछ खास बात नहीं बन पाई। लेकिन भारत ने अपने पड़ोसी दुश्मन पाक और चीन को पहली बार गच्चा जरूर दिया था। पाक और चेहरे पर सिकन साफ नजर आने लगी। फिर क्या था एनएसजी की सदस्यता के लिएस समर्थन जुटाने का दो अगला पड़ाव अमेरिका और मेकिस्को भी मोदी ने कुशलता पूर्वक पार कर लिया और खुशी-खुशी अपने वतन के लिए निकल पड़े।

इस यात्रा में एक और उपलब्धि मोदी की झोली में आया। अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी संसद को संबोधित कर भारतीय लोकतंत्र की समृद्धता और गतिशीलता की अनुभूति कराई और मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था में प्रवेश पाकर ग्लोबल स्ट्रेटेजिक आर्म्स व्यवस्था का हिस्सा बना। विशेष बात यह कि मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) में भारत के शामिल होने के बाद अब भारत अपनी ब्रह्मोस जैसी उच्च तकनीकी मिसाइलें मित्र देशों को बेच सकेगा, अमेरिका से ड्रोन विमान खरीद सकेगा जैसा कई और बंधनों से भारत को मुक्ति मिल गई।

मोदी की इन पांच देशों की यात्रा ने सबसे ज्यादा अगर किसी देश को बेचैन किया तो वह चीन है वह एनएसजी के लिए भारत को मिलनेवाले समर्थन को लेकर ही घबरा गया। वह इस समूह में भारत की सदस्यता का विरोध कर रहा है। चीन का तर्क है कि भारत एनएसजी में प्रवेश पाने की योग्यता नहीं रखता, क्योंकि उसने एनपीटी (परमाणु अप्रसार संधि) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

फिलहाल भारत वैश्विक बैलिस्टिक मिसाइल प्रसार व्यवस्था में शामिल हो गया। इसमें प्रवेश पाकर भारत ने एक सामरिक उपलब्धि तो हासिल कर ली है, लेकिन अभी एनएसजी और सुरक्षा परिषद में प्रवेश का प्रश्न बरकरार है, जो भारत की अंतरराष्ट्रीय हैसियत के लिए अहम है।

एनएसजी में शामिल होने के की फायदे हैं। सबसे पहले तो ऐसा होने पर भारत को न्यूक्लीयर टेक्नोलॉजी मिलने में सहूलियत होगी। परणाणु रिएक्टरों के लिए न्यूक्लीयर फ्यूल मिलने में आसानी होगी। न्यूक्लीयर पावर के बारे में पूरी सूचना मिलेगी। पाकिस्तान और चीन की पावर का अंदाजा लगेगा। न्यूक्लीयर पावर के रूप में देश की विश्वसनीयता बढ़ेगी। न्यूक्लीयर पावर जनरेशन में इजाफा होगा। देश स्वच्छ एनर्जी के जरिए कार्बन उत्सर्जन घटाने के वादे को पूरा कर पाएगा। सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी मजबूत होगी और न्यूक्लीयर पावर से जुड़े कारोबार को बढ़ावा मिलेगा।

आगे अफगानिस्तान की यात्रा

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