नई दिल्ली। मोदी सरकार इस साल के शीत सत्र में कई बड़े कानून ला सकती है। तीन तलाक के साथ-साथ मोदी सरकार शीतकालिन सत्र में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए संसद में बिल पेश कर सकती है। सरकार के इस बिल को लेकर शीर्ष अधिकारियों ने कहा कि ये कदम राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के ओबीसी के हितों की रक्षा के लिए पूर्ण अधिकार प्रदान करने में मददगार साबित होगा। एक अधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया कि सरकार ओबीसी के लिए समानता और समाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है और संसद के आसन्न सत्र में इस विधेयक को संसद के पटल पर रखने का निर्णय लिया गया है।
गौरतलब है कि प्रत्तावित विधेयक को अोबीसी समुदाय के मतदाताओं पर पकड़ मजबूत बनाने के लिए बीजेपी के राजनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है। अधिकारियों का कहना है कि पिछड़ा वर्ग आयोग को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग के समक्ष दर्जा प्रदान करने के लिए सरकार ने पहले भी एक विधायक पेश किया था। प्रस्तावित संविधान संशोधन विधेयक पहले लोकसभा में पेश किया गया जहां ये पारित हो गया है, लेकिन राज्यसभा में ये कुछ संशोधनों के साथ पारित हुआ। इसके कारण विधेयक के दो तरह के प्रारूप दोनों सदनों से पारित हुए। ऐसे में अब विधेयक को लोकसभा में फिर से पेश किया जायेगा।
आपको बता दें कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1993 में बना था। ये जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे भारत में लागू है। इस आयोग का काम नागरिकों के किसी वर्ग के सूची में पिछडे़ वर्ग के रूप में शामिल किए जाने के अनुरोधों की जांच करना है। ये किसी वर्ग की सूची में किसी पिछड़े वर्ग के अधिक शामिल किए जाने या कम शामिल करने की शिकायतों की सुनवाई करता है। साथ ही ये केंद्र सरकार को ऐसे सुझाव देता है जो उसे उचित लगता है।
आयोग को 6 शक्तियां मिली हुई हैं। उनमें वो देश के किसी भी हिस्से से किसी व्यक्ति को समन करने और हाजिर कराने का अधिकार रखता है। किसी भी दस्तावेज को प्रस्तुत करने को कह सकता है। आयोग का एक अध्यक्ष होता है, जो सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का न्यायाधीश हो या रहा हो। अध्यक्ष के अलावा चार अन्य सदस्य होते हैं, उनमें एक समाज विज्ञानी, पिछड़े वर्गों से संबंधित मामलों का विशेष ज्ञान रखने वाले दो व्यक्ति और एक भारत सरकार के सचिव स्तर का अधिकारी हो या रहा हो, होते हैं।