मोदी सरकार पर गहराया NPA का संकट,रघुराम राजन से कर रही मदद की उम्मीद। संसदीय आंकलन समिति चाहती है कि शीघ्र ही एनपीए से लड़ने की कोशिशों को उचित दिशा मिल जाए। आपको बता दें कि हाल ही में भारत सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम एनपीए समिति के सामने पेश हुए थे।उन्होंने कहा था कि रघुराम राजन से अच्छा एनपीए समस्या का समाधान और कोई नही कर सकता है।
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समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने पूर्व केन्द्रीय रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन को समिति के सामने पेश होने के लिए कहा है
वहीं संसदीय आंकलन समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने पूर्व केन्द्रीय रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन को समिति के सामने पेश होने के लिए कहा है। संसदीय समिति देश में गहराते एनपीए ‘नॉन परफॉर्मिंग एसेट’ की जांच कर रही है।जानकारी के अनुसार समिति के अध्यक्ष ने 7 अगस्त को राजन को पत्र लिखा है। और उम्मीद की है कि राजन जल्द ही समिति के सामने पेश होंगे। और समिति को एनपीए की समस्या और उससे लड़ने की कोशिशों की दिशा में पर अपनी राय रखेंगे।
रघुराम राजन का रिजर्व बैंक का कार्यकाल सितंबर 2016 में पूरा हुआ था
याद दिला दें कि रघुराम राजन का रिजर्व बैंक का कार्यकाल सितंबर 2016 में पूरा हुआ था। तब केन्द्र सरकार ने राजन के कार्यकाल को बढ़ाने की पहल नहीं की थी। जिसके बाद रघुराम राजन ने रिजर्व बैंक के कार्यकाल को खत्म करने के बाद अमेरिकी यूनीवर्सिटी में रीसर्च चुना।वहीं सरकार केन्द्र सरकार ने उर्जित पटेल को नया गवर्नर बनाया था।
समिति को रघुराम राजन की काबीलियत पर भरोसा है
खबर है कि समिति को रघुराम राजन की काबीलियत पर भरोसा है।और इसीलिए वह चाहती है कि जल्द से जल्द एनपीए से लड़ने की कोशिशों को सही दिशा पर आगे बढ़ाया जाए।गौरतलब है कि समिति के अध्यक्ष ने राजन से यह भी कहा है कि यदि वह व्यस्तता के चलते जल्द ही समिति के सामने पेश नहीं हो सकते तो वह मामले में अपना पक्ष लिखकर भी समिति को भेज सकते हैं।
एनपीए क्या है?
बता दें कि एनपीए का साधारण भाषा मतलब है कि बैंक का यह पैसा एक तरह से उसके पास से दूर चला जाना है।और बैंक को उस पैसे का कोई लाभ नहीं मिलना है। नियम के मुताबिक किसी भी लोन की किश्त, मूलधन और ब्याज यदि 90 दिन से अधिक तक बैंक को नहीं मिलता है तो उस अकाउंट को एनपीए में डाल दिया जाता है।हमारे देश में एनपीए समस्या ने गंभीरल रूप ले लिया है।अगर सरकार इससे निपटने में सफल नहीं होती तो सरकार को राजस्व की कम प्राप्ति होगी फलस्वरूप देश के विकास कार्य प्रभावित होंगे।