नई दिल्ली। मुस्लिम महिलाओं को बड़ी राहत देते हुए केंद्र सरकार ने तीन तलाक के कानून पर मुहर लगा दी है। अब बस इसे संसद के पटल पर चर्चा के लिए रखा जाना है। उसके बाद इस राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद इसे कानून बना दिया जाएगा। मोदी कैबिनेट ने इस बिल को मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों का संरक्षण) बिल-2017 नाम दिया है। इस बिल के तहत मुस्लिम महिला को उसका पति जुबानी, लिखित या फिर इलेक्ट्रॉनिक तरीके से तीन तलाक देता है तो उसे तीन साल के कठोर कारवास की सजा सुनाई जाएगी। शुक्रवार को दोनों सदनों में जोरदार हंगामे के बाद इस बिल को हरी झंडी दिखाई गई।
सरकार से पहले इस बिल को आठ राज्य मंजूरी दे चुके हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, झारखंड, असम,मणिपुर और अन्य छह राज्य शामिल है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 22 अगस्त को दिए अपने एक फैसले में मुस्लिम समाज में सदियों से चले आ रहे तीन तलाक के कानून को अयोग्य घोषित कर दिया था, लेकिन इसके बावजूद भी देश में तीन तलाक दिए जाने की रिपोर्ट्स आ रही हैं। तीन तलाक की शिकायतें मिलने के मद्देनजर केंद्र ने इसका समाधान निकालने का उपाय सुझाने के लिए एक कमिटी बनाई थी। कमिटी में होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह, फाइनैंस मिनिस्टर अरुण जेटली, लॉ मिनिस्टर रवि शंकर प्रसाद, माइनॉरिटी अफेयर्स मिनिस्टर मुख्तार अब्बास नकवी और दो राज्यमंत्री शामिल रहे।
प्रस्तावित बिल में अपनी पत्नियों को एकसाथ तीन बार ‘तलाक’ बोलकर तलाक देने की कोशिश करने वाले मुस्लिम पुरुषों को तीन वर्ष की कैद की सजा देने और पीड़ित महिलाओं को कोर्ट से गुहार लगाकर उचित मुआवजा और अपने नाबालिग बच्चों की कस्टडी मांगने की अनुमति देने का प्रस्ताव है। आधिकारिक डेटा के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के अगस्त के फैसले के बाद देश भर से तीन तलाक देने के 67 मामलों की रिपोर्ट्स मिली हैं। इनमें से अधिकतर मामले उत्तर प्रदेश के हैं। हालांकि, यह कानून बनने के बाद भी जम्मू और कश्मीर में लागू नहीं होगा।