‘पंख’ पिंजरे में बंद पंछियों को आजाद करने का एक मिशन हैं. इस मिशन को भोपाल में एक शख्स ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर बनाया. इस मिशन के तहत वो पिंजरे में बंद पंछियों को आजाद कराने का काम करते हैं. कई सालों से ये मिशन चल रहा हैं. जिसके तहत अब तक 20 हजार पंछियों को आजाद कराया जा चूका हैं. इसके लिए ये कहीं शिकायत नहीं करते बल्कि ऐसे घरों में जाते हैं जहां पर पंछियों को कैद करके रखा जाता हैं और लोगों को समझाते हैं. भोपाल में पेशे से व्यवसायी धर्मेंद्र शाह बीते 20 साल से तोतों को पिंजरों से मुक्ति दिलाने के काम में लगे हैं.
धर्मेंद्र शाह ने सुनाया पिंजरे का दर्द
एक दिन मिशन पंख से जुड़े धर्मेंद्र शाह, अशोक सिंह के घर आए और पिंजरे का दर्द बताया. इसके बाद अशोक सिंह ने उनकी बात समझी और मिठ्ठू को खुले आसमान में उड़ने का मौका मिल गया. अशोक सिंह ने कहा, “हमें बहुत अच्छा लग रहा है पिंजरे से पक्षी को मुक्त करवाया हैं. जब लेकर आए तो सर बहुत टकराता था, पंजे मारता था बहुत अजीब लगता था.”
धर्मेंद्र ने मां के काम आगे बढाया
अद्विका सिंह ने कहा, “मुझे बहुत अच्छा लगा, पहले मुझे मन नहीं था लेकिन जब उड़ते देखा तो बहुत अच्छा लगा. धर्मेंद्र शाह की मां, उषा शाह अपने पैसों से पक्षी खरीदकर उन्हें पिंजरे से आजादी दिलाती थीं, अब बेटा लोगों को जागरूक बना रहा है.”
कैद पक्षी की जीवनशैली पर पड़ता हैं बुरा प्रभाव
धर्मेंद्र शाह ने कहा, “एक कंठी तोता है उसकी नस्ल एकदम खत्म होने वाली है. हम नहीं चेते तो 2-4 साल में देखने को नहीं मिलेगा जैसे गौरेया खत्म होती गई.” धर्मेंद्र कहते हैं एक साल से पिंजरे में कैद पक्षी उड़ना भूल जाते हैं. ऐसे में फौरन आजादी से इन्हें खतरा हो सकता है. इसलिए पहले उन्हें बड़े पिंजरे में रखकर जीवनशैली बदली जाती है, फिर इनके झुंड के पास तोते को उड़ाते है और रोज जाकर देखते भी हैं. उम्मीद है इस मिशन से ऐसे ही मिठ्ठू खुले में उड़ते रहें. पंख फैलाए.”
पिंजरे के पंछी का दर्द
कवि प्रदीप ने लिखा हैं, ‘पिंजरे के पंछी तेरा दर्द ना जाने कोय, बाहर से खामोश रहे तू भीतर-भीतर रोय, तेरा दर्द ना जाने कोय, कह ना सके तू अपनी कहानी तेरी भी पंछी क्या जिंदगानी रे, विधि ने तेरी कथा लिखी आंखों में कलम डुबोय.’