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हिजयात्रा पर्व को बढाने की कवायद में जुटे मंत्री सतपाल महाराज और सचिव मीनाक्षी सुन्दरम

uttarakhnad Turist हिजयात्रा पर्व को बढाने की कवायद में जुटे मंत्री सतपाल महाराज और सचिव मीनाक्षी सुन्दरम

पिथौरागढ़। देवभूमि उत्तराखंड पर्वों और त्योहारों के साथ पर्यटन का बड़ा केन्द्र है । यहां पर हर पर्व के साथ एक मान्यता जुड़ी होती है। इसको पूरा करने के लिए होने वाले आयोजन पर्यटन का बड़ा केन्द्र बन जाते हैं। ऐसा ही एक खेल और आयोजन पिथौरागढ़ में हिन्दी माह के भादों माह में मनाया जाता है। ये उत्तराखंड का प्रमुख पर्व भी है, इसको हिजयात्रा के नाम से जाना जाता है। पिथौरागढ़ में मनाया जाने वाला ये पर्व उत्तराखंड का प्रमुख मुखौटा नृत्य से भी जुड़ा है। अब इस मुखौटा नृत्य का मंच केवल उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि देश और विदेशों तक होता है।

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उत्तराखंड में मनाई जाने वाली हिजयात्रा का शाब्दिक अर्थ है कीचड़ में खेले जाने वाला खेल। क्योंकि इसका आयोजन जिस माह में होता है वह माह बारिश से जुड़ा है। इसीलिए इस हिजयात्रा का मतलब है कि दलदल यानी पानी वाली भूमि पर होने वाला खेल या तमाशा । यह देवभूमि उत्तराखंड के सोरघाटी और बजेटी गांव में इसको उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। इसके साथ ही ये पर्व भुरमुनी, बलकोट, मेल्टा, खतीगांव, बोकटा, पुरान, हिमतड़, चमाली, जजुराली, गनगड़ा, बास्ते, भैंस्यूड़ी, सिल चमू, अगन्या, उड़ई, लोहाकोट, सेरा, पाली, डुंगरी, अलगड़ा, रसैपाटा, सुरौली, सतगड़, देवलथल, सिनखोला, कनालीछीना में पूरे सबाब से मनाया जाता है। लेकिन हर जगह पर इस पर्व में अंदाज अलग-अलग ही देखने को मिलता है।

यह पर्व वर्षा ऋचु की समाप्ति और शरद ऋतु के आगमन का द्योतक है, क्योंकि यह पर्व हिमालय से जुड़े इलाकों में पूरे उल्लास से मनाया जाता है। इस पर्व के अन्तगर्त होने वाला मुखौटा नृत्य हिमालयी राज्यों में बहुत प्रसिद्ध है। इस नृत्य की परम्परा सिक्किम, लेह लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, नेपाल, तिब्बत के अलावा चीन जापान और भूटान तक फैली हुई है। उत्तराखंड में यह पर्व पिथौरागढ़ में मुख्य रूप से मनाया जाता है। यहां पर यह पर्व सातू आंठू पर्व की समाप्ति के बाद मनाया जाता है। मान्यता है कि यह पर्व माता सती को समर्पित होता है। इस पर्व को देवभूमि उत्तराखंड में कृषि पर्व के तौर पर जाना जाता है। चूंकि यह पर्व ग्रामीण परिवेश के साथ कृषि को प्रधान मानता है। इस पर्व में कृषि से जुड़े क्रियाकलापों को प्रदर्शित किया जाता है। इसमें प्रयुक्त नृत्य और नाट्य शैली अनोखी है, मुखौटों का प्रयोग कर इस उत्सव को आस्था और हास्य में प्रदर्शित किया जाता है।

इस उत्सव में होने वाले इस मुखौटे के नृत्य में मुख्य भूमिका पुरूष ही निभाते हैं। लखिया भूत इस पर्व का मुख्य पात्र होता है मान्यता है कि वह भगवान शिव के 12 वे गण का स्वरूप होता है। मैदान में होने वाले इस पर्व के सबाब पर आते आते पूरा परिवेश आस्था में बदल जाता है। 2 से 3 घंटे तक चलते वाले इस पर्व के दौरान पूरा वातावरण शिवमय हो जाता है। अब इस यात्रा को देखने के लिए बड़े पैमाने पर पर्यटक आते हैं। इस यात्रा को अब सूबे का पर्यटन विभाग नये तर्ज पर लाने की कवायद कर रहा है। इसके लिए नये इन्वेस्टर तलाशे जाता रहे हैं। जो इस यात्रा और इस नृत्य को प्रमोट कर इस विश्व में व्यापक और बड़ा स्थान दे सकें। इसके लिए सूबे के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज और पर्यटन सचिव मीनाक्षी सुन्दरम के साथ पयर्टन निदेशक विवेक सिंह चौहान लगातार प्रयत्नशील हैं।

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