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पृथ्वी से टकराएगा उल्कापिण्ड ,क्या करेगा तबाह ?

esteroid to earth पृथ्वी से टकराएगा उल्कापिण्ड ,क्या करेगा तबाह ?

एक सितंबर को एक अजीब खगोलीय घटना होने वाली है जिसमें तकरीबन 20 से 40 मीटर चौड़ा एस्टेरॉइड (उल्कापिण्ड)  2011ES4 धरती के करीब से गुजरेगा  लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि इसके धरती से टकराने की संभावना न के बराबर है। धरती से इसकी दूरी 1.2 किलोमीटर आंकी गई है यानी एक सितंबर को यह यह धरती और चांद के बीच में काफी करीब होगा।

 2011 में खोजे गए इस एस्टेरॉइड  2011ES4 को 1.14 साल में एक चक्कर लगाना पड़ता है, इसकी कक्षा सिर्फ 9 साल में एक बार हमारे करीब लाती है। लेकिन एक सितंबर की होने वाली घटना से पृथ्वी की किसी आर्टिफिशियल सैटेलाइट को इससे बिल्कुल भी खतरा नहीं है।

पृथ्वी के वायुमंडल के संपर्क में आते ही इस एस्टेरॉइड  2011ES4 के टूट कर बिखर जाने की पूरी संभावना जताई जा रही है और अगर परसेंटेज में बात करें कि 0.41 फीसद संभावना ही धरती से टकराने की है।

 जानें क्या होता है ऐस्टरॉइड्स

एस्टेरॉइड  ऐसी चट्टान होती जो किसी ग्रह की तरह ही सूर्य के चक्कर काटती हैं लेकिन इनका आकार बहुत छोटा होता है। सोलर सिस्टम में ज्यादातर ऐस्टरॉइड्स मंगल ग्रह और बृहस्पति यानी मार्स और जूपिटर की कक्षा में ऐस्टरॉइड बेल्ट में पाए जाते हैं। इसके अलावा भी ये दूसरे ग्रहों की कक्षा में घूमते रहते हैं और ग्रह के साथ ही सूरज का चक्कर काटते हैं।

पृथ्वी पर विनाश के लिए सिर्फ इनका आकार अहम नहीं होता। अगर किसी तेज रफ्तार चट्टान के धरती से करीब 46 लाख मील से करीब आने की संभावना होती है तो उसे स्पेस ऑर्गनाइजेशन्स खतरनाक मानते हैं। साल 2880 में न्यूयॉर्क की empire state building जितना बड़ा ऐस्टरॉइड 29075 (1950 DA) के पृथ्वी की ओर की आने की आशंका है। वैज्ञानिकों का मत है कि आने वाले वक्त में Planetary Defense System विकसित कर लिया जाएगा।

करीब 4.5 अरब साल पहले जब हमारा सोलर सिस्टम बना था, तब गैस और धूल के ऐसे बादल जो किसी ग्रह का आकार नहीं ले पाए और पीछे छूट गए, वही इन चट्टानों यानी ऐस्टरॉइड्स में तब्दील हो गए। ब्रह्मांड में कई ऐसे ऐस्टरॉइड्स हैं जिनका डायमीटर सैकड़ों मील का होता है और ज्यादातर किसी छोटे से पत्थर के बराबर होते हैं।

ऐस्टरॉइड्स की बनावट भी अलग होती है जैसे कई चट्टानी होते हैं, तो कोई क्ले या Nickel और लोहे जैसे मेटल से बना होता हैं। हमारा सोलर सिस्टम और ग्रह कैसे बने, इस राज की तह तक जाने के लिए ऐस्टरॉइड्स की स्टडी बेहद अहम होती है। तो वैज्ञानिक इन विशाल, खतरनाक चट्टानों को स्टडी कैसे कर पाते होंगे? इसका जवाब है उल्कापिंड- दरअसल, उल्कापिंड ऐस्टरॉइड का ही हिस्सा होते हैं। किसी वजह से ऐस्टरॉइड के टूटने पर उनका छोटा सा टुकड़ा उनसे अलग हो जाता है जिसे उल्कापिंड यानी meteoroid कहते हैं। जब ये उल्कापिंड धरती के करीब पहुंचते हैं तो वायुमंडल के संपर्क में आने के साथ ये जल उठते हैं और हमें दिखाई देती एक रोशनी जो शूटिंग स्टार यानी टूटते तारे की तरह लगती है लेकिन ये वाकई में तारे नहीं होते। और ये Comet यानी धूमकेतु भी नहीं होते।

जरूरी नहीं है कि हर उल्कापिंड धरती पर आते ही जल उठे। कुछ बड़े आकार के उल्कापिंड बिना जले धरती पर लैंड भी करते हैं और तब उन्हें meteorite कहा जाता है। NASA का जॉन्सन स्पेस सेंटर दुनिया के अलग-अलग कोनों में पाए गए meteorites का कलेक्शन रखता है और इन्हीं की स्टडी करके ऐस्टरॉइ़ड्स, planets और हमारे सोलर सिस्टम की परतें खोली जा जाती हैं।

धूमकेतु भी ऐस्टरॉइड्स की तरह सूरज का टक्कर काटते हैं लेकिन वे चट्टानी नहीं होते बल्कि धूल और बर्फ से बने होते हैं। जब ये धूमकेतु सूरज की तरफ बढ़ते हैं तो इनकी बर्फ और धूल वेपर यानी भाप में बदलते हैं जो हमें पूंछ की तरह दिखता है। खास बात ये है कि धरती से दिखाई देने वाला कॉमट दरअसल हमसे बेहद दूर होता है जबकि अगर उल्कापिंड देख पा रहे हैं तो इसके मतलब वह धरती के वायुमंडल में दाखिल हो चुका है।

नासा कैसे करता है इनकी निगरानी

नासा की सेंट्री रिस्क टेबल में ऐसे खतरनाक Asteroids पर नजर रखी जाती है ताकि भविष्य में इनसे होने वाले खतरे से बचा जा सके। इसमें आने वाले 100 सालों के लिए फिलहाल 22 ऐसे ऐस्टरॉइड्स हैं जिनके पृथ्वी से टकराने की थोड़ी सी भी संभावना है। धरती को सबसे ज्यादा खतरा अगर किसी ऐस्टरॉइड से होने वाला है, तो वह है 29075 1950 DA। यह Asteroid एक किलोमीटर चौड़ा है जिसे Potentially Hazardous Asteroids (PHA) की श्रेणी में रखा गया है।

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