वृंदावन में ठाकुर जी को गर्मी से राहत दिलाने के लिए मंदिरों में तरह-तरह के फूल बंगले बनाने की अनूठी परम्परा है। और इस परंपरा के लिए विदेशों से भी फूल मंगाए जाते हैं। दरअसल इस परम्परा के जनक स्वामी हरिदास माने जाते हैं, जो बांके बिहारी को गर्मी से राहत दिलाने के लिये जंगलों से फूल चुनकर लाते थे। और फिर उन्हें कलात्मक तरीके से इस प्रकार लगाते थे कि सौन्दर्य के साथ-साथ शीतलता देने वाला वातावरण बन जाए।
बांके बिहारी मंदिर का फूल बंगला खास
ब्रज का शायद ही कोई ऐसा मन्दिर होगा जिसमें फूल बंगले न बनाए जाते हों। वृन्दावन के सप्त देवालयों, विशेषकर राधारमण मन्दिर में कुंज के रूप में फूल बंगला बनाने की परम्परा है। वहीं बांके बिहारी मन्दिर में भी फूल बंगला बनाने की परम्परा ने अपनी अलग पहचान बना ली है।
ये फूल बंगले कला, संस्कृति, भक्ति और पर्यावरण के समन्वय के अद्भुत नमूने हैं। इन बंगलों पर आने वाला व्यय ठाकुर बांके बिहारी महाराज के भक्त उठाते हैं। क्योंकि फूल बंगले का आयोजन भी अनूठी ठाकुर सेवा मानी जाती है।
पहले से बुकिंग करा लेते हैं भक्त
इस सेवा को करने के लिए भक्त इतने लालायित रहते हैं कि बहुत से भक्तों को पूरे मौसम फूल बंगला सेवा का मौका नहीं मिलता, जिसके कारण वे इसकी अग्रिम बुकिंग कराते हैं। बांके बिहारी मन्दिर में कामदा एकादशी से बंगलों का बनना शुरू हो जाता है। जो हरियाली अमावस्या तक अनवरत रूप से जारी रहता है। इस बीच केवल अक्षय तृतीया को फूल बंगला नहीं बनाया जाता है, क्योकि ठाकुर जी इसदिन गर्भगृह से ही दर्शन देते हैं।
रायबेल के फूलों का अधिक प्रयोग
फूल बंगले में ठाकुर जी जगमोहन में कलात्मक तरीके से बनाए गए बंगले में विराजमान होते हैं। साधारण बंगलों में लगने वाले फूलों की आपूर्ति मथुरा या वृन्दावन से ही हो जाती है। लेकिन बड़े बंगलों के लिए दिल्ली, अहमदाबाद, कोलकाता, बैंग्लोर तक से फूल मंगाए जाते हैं। अधिकतर बंगले में रायबेल के फूलों का प्रयोग किया जाता है। साथ ही केले के तने का अन्दर का मुलायम छिलका इस्तेमाल किया जाता है।
पांच दशक पहले शुरू हुआ था स्वरूप
फूल बंगले बनाने के लिए तरह-तरह के फ्रेम होते हैं। जिनमें बडे़ के पत्ते के ऊपर रायबेल, कनेर आदि की कोमल कलियों से तरह-तरह की मनमोहन आकृतियां बनाई जाती हैं। फूल पोशाक में साड़ी, लहंगा, ओढनी, पटुका जामा, पैजामा आदि काले कपडे़ पर कलियों के माध्यम से बनाए जाते हैं। धर्म-संस्कृति और कला के अनूठे संगम की पहचान बने इन फूल बंगलों का वर्तमान स्वरूप लगभग पांच दशक पहले शुरू हुआ था। जिसे छबीले महराज ने नवीनता दी क्योंकि वे फूल बंगलों एवं श्रृंगार के अद्वितीय कलाकार थे।
पर्यावरण के आदर्श बने फूल बंगले
बंगले की सभी टटियाओं में तरह-तरह के जाल तोड़ने में उन्हें प्रवीणता मिली थी।बाद में बाबा कृष्णानन्द अवधूत, सेठ हरगूलाल बेरीवाला, प्रताप चन्द्र चाण्डक, ज्वाला प्रसाद मण्डासीवाला, अर्जुन दास, राधाकृष्ण गाडोदिया आदि ने बंगला परम्परा में चार चांद लगाए। वर्तमान में बांकेबिहारी मन्दिर में बनने वाले फूल बंगले पर्यावरण के आदर्श बन चुके हैं।
मन्दिर के जगमोहन को जहां फूलों के महल का रूप दे दिया जाता है। वहीं मन्दिर के चौक को फूल और पत्तियों से कुंज का स्वरूप देने की कोशिश की जाती है। समय-समय पर इस कुंज में पानी के झरने भी चलते हैं। उधर मन्दिर के जगमोहन से सेवायत गोस्वामी बहुत ही कम समय के अंतराल में पिचकारी से भक्तों पर गुलाब जल डालते हैं जिसे भक्त प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
फूल बंगले वृन्दावन की अनूठी पहचान
ठाकुरजी के आसन में केले के कोमल तने पर जब बिजली का प्रकाश पड़ता है तो ऐसा लगता है कि चांदी के आभूषण लगा दिए गए हैं। अभी तक ये बंगले मन्दिर के अन्दर चौक तक ही सीमित थे, लेकिन अब मन्दिर के मुख्यद्वार के सामने बने चबूतरे तक बनाए जाने लगे हैं।
बंगले के दौरान जिस भक्त को जगमोहन से प्रसाद का किनका भी मिल जाता है वे धन्य हो जाते हैं। फूल बंगले में ठाकुरजी के जगमोहन में विराजने का लाभ यह होता है कि भक्तों को ठाकुरजी के दर्शन जिस प्रकार के हो जाते हैं वैसे वर्ष पर्यन्त नहीं मिल पाते। कुल मिलाकर ये फूल बंगले वृन्दावन की प्रेममयी दिव्य संस्कृति की अनूठी पहचान बन चुके हैं।