नई दिल्ली। माता के नवरात्रे चल रहे हैं, भक्तों की आमद से मंदिर और माता के दरबार भरे पड़े हैं नौ दिनों तक माता के अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है। तीसरे दिन माता के दिव्य स्वरूप जिनको चंद्रघण्टा के नाम से जाना जाता है। इनकी आराधना की जाती है। माना जाता है कि ये देवी शुक्र ग्रह पर अपना आधिपत्य रखती हैं। इसलिए सुख वैभव और ऐश्वर्य के लिए इनकी आराधना की जाती है।
इसके साथ ही माता के इस स्वरूप की आराधना प्रेम के लिए भी की जाती है। वैसे तो मां का हर स्वरूप शक्तिशाली और वैभवशाली बनाने के लिए पूजा जाता है। लेकिन माता के इस स्वरूप का पूजन इन चीजों में विशेष सफलता के लिए किया जाता है।
माता अपने तृतीय चंद्रघण्टा स्वरूप में अनेक रत्नों से सुशोभित सिंह के पर सवार अपने दस भुजाओं में खड्ग, अक्षमाला, धनुष-बाण, कमल, त्रिशूल, तलवार, कमण्डल, गदा, शंख, आदि लिए हुए हैं। साधना की दृष्टि से माता चंद्रघण्टा का संबंध अग्नि तत्व से जुड़ा हुआ है। इनकी वास्तुदिशा दक्षिण-पूर्व की है। माता की पूजा के लिए श्रेष्ठ समय सूर्यअस्त की बेला जिसको गौधूलि बेला कहते हैं। माता के पूजन में गुलाबी रंग के फूलों के साथ भोग के लिए दूध और चावल की बनी खीर के साथ इनको श्रृंगार के सामानों अलावा सुगंधित द्रव्य और इत्र लगाया जाता है।
साधकों की मानो तो इनकी उपासना सुख-संपदा के साथ सुखी ग्रहस्थ जीवन और अविवाहितों के लिए शीघ्र विवाह हेतु की जाती है। माता की उपासना प्रेम प्रसंग में पड़े प्रेमी और प्रेमिकाओं द्वारा अपने प्रेम में सफलता के लिए भी की जाती है। चूंकि देवी चंद्रघण्टा शुक्र ग्रह पर अधिकार रखती हैं। इसके साथ ही वैवाहिक जीवन में मधुरता के लिए भी माता की उपासना की जाती है। इसके उपासना और पूजन के बाद साधक को इस मंत्र… पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुत…का जाप करना चाहिए।