नई दिल्ली। भारत विविधताओं का देश है, संविधान में सभी को समान अधिकार और समान न्याय व्यवस्था का अधिकार प्राप्त है। ऐसे में किसी के साथ किसी तरह का न्याय होने की कोई संभावना नहीं है। भारत में इस न्याय प्रक्रिया के तहत महिला और पुरूष दोनों को ही समान अधिकार प्राप्त है । महिलों के अधिकारों और उनकी सुऱक्षा के लिए कोर्ट और कानून दोनों ही काफी संजीदा है।
हाल के दिनों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा आदि के मामले में कोर्ट ने कई कानूनों में संसोधन भी किए हैं। इसके साथ ही न्यायिक प्रक्रिया को भी काफी सहज बनाया है। आज कल देश में एक नये विषय और एक नये कानून की मांग बढ़ने लगी है। ये विषय है भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध के तौर पर सजा के प्राविधान में लाने की और देश में वैवाहिक बलात्कार के संदर्भ में कानून बनाने की।
इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई बार याचिकाएं आई हैं। मामला संसद के पास तक इस पर विचार कर कानून बनाने के लिए गया संसद में इस पर कई बार तीखी बहस तक चली लेकिन आखिरकार संसद ने कहा कि हमारे देश में विवाह एक समझौता नहीं बल्कि एक संस्कार है। अगर इस विवाह के बाद पति और पत्नी के बीच होने वाले संबंधों को वैवाहिक बलात्कार के तौर पर देखा गया तो ये संस्था या ये संस्कार खत्म करने जैसा होगा। क्योंकि अगर ये हथियार बना तो क्रूर पत्नी के हाथ में निर्दोष पतियों के खिलाफ बड़ा अस्त्र मिल जाएगा।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में तल्ख टिप्पणी देते हुए साफ किया कि जबरन वैवाहिक यौनसंबंध बलात्कार में शामिल किया जाये या नहीं इस पर काफी बहस पहले हो चुकी है। इसको भारतीय परिवेश में आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता है।अदालत ने साफ कहा कि इस पर संसद में काफी बहस हो चुकी है। इसे आपराधिक कृत्य की श्रेणी में लाने से विवाह की संस्था पर असर पड़ सकता है। इसे किसी भी हाल में आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता है।
अब एक बार फिर ये जिन्न बाहर आया है दिल्ली हाईकोर्ट में फिर इसको लेकर अपील हुई है। दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार से इस पर उसका रूख जानना चाहा तो साफ तौर पर सरकार ने एक हलफनामा देते हुए कहा कि
अगर वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किया गया तो विवाह जैसी परम्परा और संस्था ढह सकती है। इसके साथ ही पतियों को परेशान करने का आसन हथियार भी मिल सकता है। कानून बनाने का मतलब ये नहीं कि किसी के हाथ में सत्ता दे दी जाए। क्योंकि पति और पत्नी के बीच बने यौन संबंध का कोई विशिष्ट सबूत नहीं है जो साबित करे कि ये बलात्कार है।
केन्द्र सरकार ने अपने हलफनामे को दिल्ली हाईकोर्ट की मुख्य कार्यवाहक न्यायधीश गीता मित्तल और न्यायधीश सी. हरिशंकर की खंडपीठ के सामने पेश करते हुए साफ किया कि वैवाहिक बलात्कार कोई परिघटना ना बन पाये ये सुनिश्चित करना होगा। क्योंकि अगर इस दुष्कर्म की श्रेणी में माना गया तो इस मामले में फैसला सिर्फ पत्नी के बयान पर निर्भर होकर रह जायेगा। ऐसे में अदालत किन सबूतों को आधार बनायेगी पति को दोषी साबित करने के लिए क्योंकि पति और पत्नी के बीच यौन संबंध का बनना स्वाभाविक और लाजमी है।
केन्द्र सरकार ने अपने हलफनामे में साफ किया है कि कानून में वैवाहिक बलात्कार को किसी भी हाल में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में दुष्कर्म को परिभाषित किया गया है। वैवाहित बलात्कार को इसके अन्तगर्त लाने के लिए वृहत सहमति की आवश्यकता है। दुनियां के अन्य देशों में खासकर पश्चिमी देशों में वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किया जा चुका है। इसका कोई मतलब नहीं कि भारत में भी इसे लागू करना अनिवार्य है।
इस मामले में भारतीय जनता पार्टी की सांसद और केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी ने कुछ दिनों पहले ही एक बयान देते हुए साफ किया था कि वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा भारतीय संदर्भ में लागू नहीं की जा सकती। उन्होने साफ कहा था कि अगर कानून भी बन जाए तो महिलाएं इसके तहत अपनी शिकायतें कम करेंगी। लेकिन मेनका गांधी के इस बयान ने बड़ा विवाद पैदा कर दिया था। जिसके बाद उन्होने अपने बयान में सुधार करते हुए कहा था कि देश में महिलाओं के संरक्षण के अन्य कानून मौजूद हैं जिस फोरम पर वो इस बारे में अपनी शिकायत कर सकती हैं। इसके साथ ही इस मामले में अगर कानून बने तो कोई हर्ज नहीं है। क्योंकि इस देश में इस सन्दर्भ में शिकायतें आने की संभावना कम दिखती है।
इस मामले को लेकर भारत खबर ने पूर्व राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा ममता शर्मा से बात की तो उन्होने केन्द्र सरकार के हलफनामें का समर्थन करते हुए साफ कहा कि इस देश में विवाह एक संस्कार है । पति पत्नी के बीच अगर कुछ भी ऐसा हो संविधान में भी ये है कि कोई भी पुरूष किसी भी महिला के साथ कुछ भी उसकी इच्छा के बिना नहीं कर सकता लेकिन अगर बार शादी के बाद बलात्कार की हो तो इसकी कोई संभावना ही नहीं होती है। या शादी के बाद पति-पत्नी के बीच ऐसी कोई संज्ञा होती है।
वहीं महिलाओं के विकास और उत्थान और महिला उत्पीडन के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाली लखनऊ की डॉ शालिनी माथुर का माना है कि अगर विश्व में इसे अपराध माना जा रहा है तो भारत में भी इसे अपराध की संज्ञा में लाना चाहिए लेकिन हमारे देश में मौजूदा कानूनों में इसकी व्यवस्था है जैसे घरेलू हिंसा और 498 अ तो अलग से इस बारे में कानून बना कर कोर्ट में नये केसों को बढ़ाने का कोई मतलब नहीं है।
अजस्र पीयूष