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सूर्य को अस्ताचल अर्घ्य देने की तैयारी,देहरादून में छठ पूजा के लिए बनाए गए घाट

छठ12 सूर्य को अस्ताचल अर्घ्य देने की तैयारी,देहरादून में छठ पूजा के लिए बनाए गए घाट

छठ पूजा के लिए अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देने के लिए घाटों की साज-सज्जा और सफाई का काम अन्तिम दौर में है। सूबे की राजधानी देहरादून में छठ पूजा का अर्घ्य देने के लिए कई स्थानों पर घाटों का निर्माण किया गया है।सूबे में छठ पूजा की तैयारी को लेकर बिहारी महासभा ने कई स्थानों पर पूजा के लिए अर्घ देने की तैयारियां की है।देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में टपकेश्वर नाथ के घाट पर रंग रोगन के साथ साज-सज्जा का काम पूरा किया जा रहा है।

 

छठ12 सूर्य को अस्ताचल अर्घ्य देने की तैयारी,देहरादून में छठ पूजा के लिए बनाए गए घाट
सूर्य को अस्ताचल अर्घ्य देने की तैयारी,देहरादून में छठ पूजा के लिए बनाए गए घाट

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इस पर्व के जरिए जहां सदूर बिहार झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आए लोगों को अपनी मिट्टी से जुड़ने का अवसर मिलता है वहीं ये पर्व आस्था के साथ प्रकृति से भी सीधे तौर पर जोड़ता है।ये पहला पर्व है जहां पर डूबते सूर्य को अर्घ्य दे कर स्वस्थ जीवन की कामना आने वाले सूर्य से की जाती है।

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इस पर्व का पहला अर्घ अस्ताचलगामी सूर्य को देकर पूरा होगा। इसके बाद पूरी रात छठी मईया के गीतों को गाकर व्रती उपवास रखकर उगते सूर्य को अर्घ देगी।इसके साथ ये पर्व समाप्त होगा।लोकआस्था के साथ प्रकृति से जुड़ा ये पर्व प्रकृति की गोद में बसे देवभूमि में मनाया जा रहा है।इसके साथ ही इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है।

लोक आस्था का महा पर्व छठ पूरे देश में धूम-धाम और श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है।इस पर्व की धूम अब पहाड़ों पर भी साफ देखी जा सकती है।अपनी मिट्टी से दूर बिहार झारखंड और पूर्व उत्तर प्रदेश के लोग अपनी रोजी रोटी के लिए जहां बसे वहां पर इस लोक आस्था के पर्व को मनाया जाता है।इस पर्व को बिशेष तौर पर प्रकृति की पूजा का पर्व मना जाता है।इस पर्व को लेकर जहां शुद्धता का ध्यान रखा जाता है।

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छठ पर्व में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।जो कि पहला अर्घ्य अस्ताचलगामी सूर्य को आज मंगलवार को और दूसरा अर्घ्य उगते सूर्य को बुधवार को देकर इस पर्व का समापन होगा।इस व्रत में अर्घ देने के लिए घरो में बड़ी शुद्धता के साथ पकवान खास तौर पर ठेकुवा और खजूर बनाया जाता है।इस पकवान को घी में तला जाता है।साथ ही अलग-अलग डलिया या सूप में रख कर इसे घाट तक लेकर जाते हैं।जहां पर व्रती जल में खड़ी होकर सूर्य देव को अर्घ्य देती है।

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अजस्र पीयूष

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