लखनऊ: राजधानी की शोभा बढ़ाने में आम नगरी मलिहाबाद क्षेत्र का विशेष योगदान है। विश्व के कई देशों को मलिहाबादी आम का इंतजार हर साल रहता है। आमों का सीजन आते ही क्षेत्र के किसानों के चेहरे खिलने लगते हैं।
मलिहाबाद के रामदत्त मौर्य कहते हैं कि आम की दावत की मेजबानी वही कर सकता है, जिसके बाग में कई किस्म के आम होते हैं। दशहरी, मलका, हुसनारा, खासमखास, चौसा, सफेदा, लंगड़ा, सुर्ख, आम्रपाली सहित सैकड़ों अन्य प्रजाति के आम एक बाग में दिखाई देते हैं। बाजार में बिकने वाले आम तो कोई भी खरीद कर खा सकता है पर आम की ऐसी सैकड़ों प्रजातियां हैं, जिन्हें लोग न जानते हैं न ही वे बाजार में आती हैं। बागवान उन्हें केवल अपने शौक के लिए ही उगाते हैं।
गोपेश्वर गौशाला में दावते आम
ऐसी किस्मों से मेजबानों को रूबरू करवाने के लिए दावतों का सिलसिला मलिहाबाद नई बस्ती धनेवा स्थित बाग जो करीब 17 बीघा में फैला हुआ है, जिसमें दर्जनों किस्म के आम होते है। आमों की सैकड़ों प्रकार की किस्मों का प्रदर्शन गोपेश्वर गौशाला में दावते आम रखते हैं।
मेजबान आम की दावत के साथ बागों में नमकीन व्यंजन, बेसन रोटी, चोखा बाटी सहित एक किस्म का आम खाने का बाद मुंह का जायका बदल कर दूसरी वैराइटी का लुफ्त लिया जाता है। आम के खाने में मेहमान सोचते हैं कि कौन से आम पहले खाया जाए…और कौन सा उसके बाद ये मेजबान की समझदारी पर निर्भर करता है।
पद्मश्री हाजी कलीमुल्ला आम की दावतों की बाबत बताते हैं कि ये सिलसिला कब से चल रहा है, सही-सही बताना तो मुमकिन नहीं है। पर ये काफी पुराना और पीढि़यों से चला आ रहा है। वे कहते हैं कि मेरे यहां होने वाली दावत में लोगों को अपने बाग का खास पेड़ (जिसमें लगभग 300 तरह के फल आते हैं) दिखाकर एकता का संदेश देता हूं।
बाग में आम खाने का अलग ही मजा
बागवान रामदत्त मौर्य का कहना है कि, आम खाने से ज्यादा लोगों को आम खिलाने में अधिक प्रसन्नता होती है, जिसके बाग में आम नहीं उनको आम खिलाते हैं। प्रतिवर्ष सैकड़ों लोगों को आम की दावते खास का आयोजन करके लोगों के साथ बाग में बैठकर आम खाने का अलग ही मजा आता है। जब बरसात हो रही हो और पके आमों की बागों में झड़ी लगी हो तो आम के खाने की स्वाद ही अलग रहता है। आम खाने के बाद लोगों को घर ले जाने के लिए देते हैं तो उनके चेहरे पर दोहरी खुशी दिखाई पड़ती है।