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लोकगीतों का पर्याय बनी अवध की मालिनी अवस्थी

lokgeet02 लोकगीतों का पर्याय बनी अवध की मालिनी अवस्थी

नई दिल्ली। जब मौसम में सर्दी हो और देश की राजनीति गरम हो तो ऐसे में आमजन सुकून और मनोरंजन ढूंढता है। लेकिन सुकून की तलाश के लिए गांवों और छोटे शहर में सिनेमाघरों और चौपालों की ओर लोग जाते थे। लेकिन वक्त बदला तो सिमेनाघरों की जगह मल्टीफ्लैक्स आ गए और चौपालें खत्म हो गईं। गांवों और छोटे शहर से लोग रोजी-रोजगार के लिए बड़ी संख्या में महानगर और फिर विदेशों तक पहुंच गए। फिर भी गांव की याद उनके जहन में ताजा है। इसलिए तो लोकगीत और लोक संगीत के कार्यक्रमों की ओर लोगों का रूझान बढ़ने लगा है। क्योंकि जहां एक तरह अपनी माटी और पहचान से आप रूबरू होते हैं वहीं तनाव भरी इस जद्दोजहद में लोक संगीत एक राहत भरी फील दे जाता है।

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लोकगीतों में बसता है भारत

यूं तो लोकगीतों की शुरूआत कब और कैस हुई इस बारे में कई तर्क हैं। लेकिन अगर इस विधा के मर्मज्ञों से जाने तो वो साफ कहते हैं कि लोकगीतों का उद्भव तो हमारी सनातन संस्कृति का अंग था। जैसे फागुन में फगुवा और चेत में चेती तो सावन में कजरी इनके अलावा हमारे पर्वों त्यौहारों पर घरों में गाए जाने वाले लोकगीत इस परम्परा के उद्भव और विकास की कहानी कहते हैं। शादी-ब्याह, गौना-थौना, पगफेरा, महुं दिखाई जैसे अनैक संस्कारों में गीत संगीत में लोकगीत की महत्ता साफ नजर आती है। हमारे भारतीय रिवाजों और रीतियों का महत्वपूर्ण हिस्सा हमारे लोकगीत रहे हैं। लेकिन समय काल परिस्थितियों ने इस विधा को लगभग खत्म कर दिया था। कुछ वक्त पहले लोकगीतों के नाम पर फूहड़पन और अश्लील गीतों का चलन भी बाजार में आया सस्ती लोकप्रियता के चलते कुछ लोगों से इसे खत्म तक कर दिया था। लेकिन वहीं कुछ ऐसे कलाकार भी हैं जिन्होने भारतीय लोकगीतों की इस परम्परा का डंका भारत ही नहीं बल्कि विदेशी धरती पर भी फैलाया है।

लोकगीतों का दूसरा नाम मालिनी अवस्थी है

जी हां हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश की माटी में जन्मी उस अद्भुत कलाकार की जिसने लोकगीत की इस परम्परा को जीभर के जीने के साथ बढ़ाया और सम्मान भी लिया है। कन्नौज की धरती में एक डॉक्टर के घर एक नन्ही सी परी आयी जिसका नाम दुलार से मालिनी रख दिया गया। यूं तो मालिनी जी की शिक्षा भोजपुरी बेल्ट के गोरखपुर में हुई लेकिन इनकी माता जी का सपना था, कि उनकी बेटी लोकगीतों के लिए कुछ करे इनकी माता जी की प्रेरणा और लोकगीतों के प्रति शुरूआत से इनके रूझान ने इन्हे लोकगीतों की उस्ताद कलाकार का सफर तय करने के लिए आगे बढ़ाया। बकौल मालिनी जी इस बारे में कई बारे अपने इन्टव्यू में भी इस बात का जिक्र कर चुकी हैं। इसके साथ ही इन्होने इस सफर में अपने हमसफर यानी पतिदेव की महत्वपूर्ण भूमिका का भी जिक्र किया है।

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